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लोकखेल नदावत हे

locationरायपुरPublished: Sep 17, 2018 07:07:26 pm

Submitted by:

Gulal Verma

संस्करीति

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लोकखेल नदावत हे

छत्तीसगढ़ म लोकखेल म लेके सासन-परसासन म बइठे जिम्मेदार नेता, अधिकारी अउ समाज के करताधरतामन गोठ-बात करथें, फिकर तको जताथें, फेर वोला बचाय-बढ़ाय खातिर सुध नइ लेवंय। दरअसल म परदेस म लोकखेलमन के अइसे बिकास नइ होवत तेकर बर सरकार अउ समाज ह गरब कर सके। उल्टा कतकोन लोकखेल नदा गे हे अउ कतकोन ह नदाय के तीर म पहुंच गे हे। लोकखेलमन के संरक्छक, संवरधन अउ सुरक्छा खातिर जल्दी सरकारी नियम-कानून बनाय बर चाही। समाज ल घलो आगू आय बर चाही।
लोकखेल ह लोकसंस्करीति के अंग ए। ऐला बचई ह महतारी के लाज बचई बरोबर ए। समाज अउ देस के सेवा करे जइसे घलो ए। लोकखेल के बिकास खातिर इस्कूलमन म खेल के कक्छा जरूरी हे। पढ़ई के संग लोकखेल खेले से लइकामन के सारीरिक अउ मानसिक फायदा घलो होही।
वइसे तो छत्तीसगढ़ के बने बिकास होवत हे। फेर, अपन संस्करीति ल बिसरा के बिकास करई ह बिकास नइ, बिनास हरे। लोकखेल के नंदई ल बड़ चिंता के बात ए। आजकाल के लइकामन लोकखेल के नांव घलो नइ जानंय। लोकखेलमन ल कइसे खेलथे, तोने ल नइ जानंय। अइसन म वोकरमन से लोकखेल खेले के उम्मीद कइसे करे जा सकथे। आपस म खेल नइ खेले से लइकामन म मया-दुलार, अपनापन अउ सहयोग के भावना घलो कमतियावत हे। लोकखेल खेले से आपसी भाईचारा, दुख-सुख म सहयोग, समानता, एकता के बंधन म बंधाथें। फेर, आजकल कम्प्यूटर, मोबाइल, टीवी म लइकामन भुलाय रहिथें। ऐकर से लइकामन के सारीरिक, मानसिक, नैतिक, बौद्धिक बिकास म फरक परथे।
लोकखेलमन के दुरगति अउ नंदई ल देख के नेतेच अउ साहेबेचमन ल का, सबो छत्तीसगढिय़ा ल सरम आय बर चाही। फेर, सासन-परसासन म बइठे जिम्मेदारमन ल जिम्मेदारी के अहसास पहिली होय बर चाही। जम्मो इस्कूलमन म लोकखेल के कक्छा सुरू करे अउ मइदान तइयार करे बर चाही। वोकर बाद म लोकखेल के नांव घरोघर लिहीं। गली-गली म लइकामन लोकखेल खेलहीं। हमर लोकखेल संस्करीति के चंदा-सुरूज ह फेर चमकहीं।
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