सवनाही
रायपुरPublished: Aug 07, 2018 08:01:13 pm
संस्करीति
छत्तीसगढ़ के माटी परब तिहार अउ मनौती के माटी आय। इहां सब के सुनता सुमत अउ खुसाली बर कतकोन उदिम ले सिरजन होथय। गांव के भुइंया म सक्तीपीठ के रूप म सीतला, भूमियरिंन, भईसासुर, सतबहिनी, राउतराय, लिंगो, संहड़ा गउरागुड़ी असन कतको ठउर रहिथे। जिकर पूजा-पाठ अउ मनोउती ले मनखे के मन म धीरज आथे। गांव के पुजारी जेला बइगा कहिथें हुम, धूप अउ पूजा-पाठ ले गांव म कोनो बिपदा झन होवय एकर कामना करथे।
रथदुज के बाद आसाढ़ के आखिरी नइ त सावन के पहिली इतवार के दिन सवनाही मनाय के चलन हावय। सवनाही म गांव के काम-काज बंद रहिथे अउ बइगा ह पूजा पाठ करके सब देवी-देवता के सुमिरन कर के गांव के धन-जन बर मनउती मांगत गांव के खल्हउस (उतार) म सवनाही रेगांथे। नान्हे नांगर गडिय़ा के निमऊ, बंदन, नरियर, हुम, धूप, धजा, फीता, कारी कुकरी, मरकी, मन्द पूजा सामान के रूप म रहिथे।
पूजा म फोरे नरियर ल पूजा म सामिल मनखेमन परसादी पाथं। गांव के मोड़ो ले बाहिरकुकरी ल छोड़थे अउ ऐला पाछु लहुट के नइ देखंय। गांव ल भूत, परेत, जादू-टोना ले बचाय के उदिम करें जाथे।
मानथें के, सावन के सिमसीमात दिन -बादर म जादू-टोना के परकोप बढ़ जाथे। जिकर ले गांव के सुरक्छा, रोग-रार्ई ले बचाव मनखे के संग-संग गाय-गरुवा, गाय खेती-बारी के सुरक्छा के भाव ऐमा रहिथे। गांव-गांव म घर के मोहाटी कोठ म जादू-टोना ले बांचे खातिर गोबर के पुतरी (सवनाही) बनाथें। कहे जाय त धरती म आए बदलाव बर मनखे ल मानसिक रूप ले तैयार करे के भाव ए तिहार म होथे। नवा जग म कतकोन बदलाव होवत हे, फेर गांव के गुड़ी -चउपाल ह हमर परब ल सिरजा के रखे हें।
खेती किसानी म भुलाय मनखे ल आराम कहां!इही सवनाही तिहार के दिन ले किसानी के काम म भुलाय, जांगर तोड़ कमइया किसान बर हफ्ता म एक दिन इतवार के छूट्टी रखे जाथे। जेहा दसेराा के आवत के चलथे। ये दिन म माइलोगिनमन घर-अंगना के जतन, कपड़ा-लत्ता के साफ-सफई, चाउर- दार के बूता ल करथे ं। बाबूमन गांव के गुड़ी म सकला के सियानी-गंवारी के गोठ करत समसिया निपटाय के उदिम करथें। रामधुनी, रमायन ले गांव के मनोरंजन करथें।
हमर ये परब ल भला हमन कुरीति मानथन, फेर हमर पुरखामन ह बिग्यान के जानकार रहिन। उकर उही गियान के दरसन ह हमर तीज-परब म होथे। धरती म आय बदलाव ले चउमासा म रोग-राई,जर जुड़ बढ़ जाथे। गुंगुर-धूप ल घर म गुंगवाथे। हमन भला जादू- टोना के रूप म मानथन, फेर जीवानुनासी के रूप म ऐला बउरथें। तीज-तिहार म रोटी-पीठा मेहनत कस जिनगी म पोसन के पुरती करथे। हमर ये रीत, परब, तीज-तिहारमन हमर चिन्हारी आय जउन ह माटी अउ धरती के रूप ले जुड़े हावय।