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रामचरित मानस म दुरगा

locationरायपुरPublished: Oct 09, 2018 07:26:46 pm

Submitted by:

Gulal Verma

परब बिसेस

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रामचरित मानस म दुरगा

वेद पुरान म एक बच्छर म चार नवरात बताय हे। जेमा चइत अउ कुवांर नवरात ल जादा फल देवइया बताय हे। ए दूनों नवरात ह भगवान रामचंंदर ले जुड़े हवय। चइत नवरात पाछू रामनवमीं, रामजनम मनाय जाथे। वइसने कुंवार नवरात के पाछू दसहरा। वेद उपनिसद म बताय हे कि सारदीय नवरात पूजा के सुरुआत भगवान राम ह समुंदर के तीर म करे रहिन अउ दसवां दिन लंका विजय बर आघू बढ़े रहिन। ऐकरे सेती नवरात म जगा-जगा मानस पाठ होथे।
तुलसीदासजी ह रामचरित मानस म दुरगा के जतका नांव ल बउरे हे, सीता माता के छोड़ अउ ककरो नांव ल नइ बउरे हे। दुरगा ह परमसक्तिहरय। मानस म सतरूपा कौसिल्या, कैकई, सुमित्रा, उरमिला, मांडवी, रुतिकीरति अनुसुईया, अहिल्या, रति, सबरी, त्रिजटा, मंदोदरी, मंथरा नांव के नारी पात्र के महिमा बताय हवय।
दुरगा के सहस्त्र नांव म सती, पारबती, उमा, भवानी, गौरी, महागौरी, गिरिजा, सक्ति, माता, जगदंबा, माया महामाया, अंबिका, जगदंबिका, रिद्धीसिद्धि, इंदिरा, विधात्री, बनदेवी, सैलपुत्री, गिरिनंदनी, दक्छसुता, दच्छकुमारी नांवमन घलो आथे। रामचरित मानस म तुलसीदासजी ह ए नांव ल रामकथा म स्लोक, दोहा, चउपई, छंद म बउरे हवय। रामचंदरजी के नांव ल भोलेनाथ ह महामंत्र मान के जाप करथे। सती, उमा, पारबती, गौरी, भवानी नांव ल वोकर अरधांगिनी रूप म बताय हवय।
तुलसीदासजी ह मानस के शुरुआत ही भवानी के बंदना से करे हवय।
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरुपिणौ।
भवानी सब्द ल अउ बहुत जगा म अपन स्लोक, दोहा, चउपई, छंद म बउरे हवय। जइसे –
कीन्ह प्रश्न जेहिं भाँति भवानी।
जद्यपि प्रकट न कहेउ भवानी।
यह प्रसंग मै कहा भवानी।
गई भवानी भवन बहोरी।
सुमिरि भवानी संकरहि,
कह कबि कथा सुहाई।
दुरगा अउ राम म एक समानता घलो हवय। दूनोंझन अतियाचारी राक्छसमन ल मारिन हे। दुरगा माता ह चंड, मुंड, सुंभ, निसुंभ, महिसासुर जइसन राक्छस ल मारिस। भगवान राम ह मारीच, सुबाहू, ताड़का, कुंभकरन, रावन ल मारिस। मानस म अइसने उमा, गिरजा नांव ल अड़बड़ अकन पद म बउरे हे। जइसे-
बहुरी कृपा करि उमहिं सुनावा।
उमा महेश बिवाह बाराती।
जब ते उमा शैलगृह आई।
उमा राम गुन गुढ़।
नाथ उमा मम प्राण सम।
उर धरि उमा प्राण प्रिय चरना।
यह इतिहास पुनीत अति,
उमहिं कही वृषकेतु।
कलि विलोकि डाग हित हर गिरजा।
जौ न मिलहिं बरु गिरिजहिं जोगू।
सुन गिरिजा हरि चरित सुहाए।
राम कथा गिरजा मैं बरनी।
रामचरित मानस म सती परसंग के विसेस महत्तम बताय हवय। सती ह सीता रूप धर के राम के परीच्छा लेइस। ऐकर सेती भोलेनाथ घुसियागे अउ रिसागे। बोलचाल बंद होगे। समाधी ले लीस। आखिर म दक्छ के बेटी ह पति के हिनमान ल नइ सह सकिस अउ अग्नि समाधी ले लीन। पाछू उंकर जनम गिरिराज हिमांचल के बेटी के रूप म होइस। ऐकर सेती वोला बनदेवी, सैलसुता, सैलकुमारी, गिरिनंदिनी, दच्छसुता, तपस्वनी कहे जाथे। दुरगा के पहिली दिन के पूजा सैलपुत्री के रूप मा होथे। मानस म दुरगा के इही नांवमन आय हवय। जइसे –
दच्छ सुता कहूँ नहिं कल्याणा।
कलिमल तृण तरु मूल निकंदनी।
बनदेवी बनदेव उदारा।
धन्य धन्य गिरीराज कुमारी।
सीता माता ह गौरी के भक्तिन आय । रोज वोकर मंदिर जाके पूजा करथे। धनुस जग के बेरा मानस म गौरी पूजा के बखान हवय। बिहाव म गौरी गनेस के पूजा के बखान हवय। अइसे तो दुरगा के एक रूप महागौरी घलो हरय। एहूू मानस म हवय।
रिबिन गौरी देखी तह कैसी ।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिंय।
संसार म दुरगा दुरगा ल जगत जननी माता कहे जाथे। रिद्धि सिद्धि दात्री, पारबती नांव ले घलो जाने जाथे। तुलसीदास के मानस म एहूमन ल जगा मिले हवय।
पारबती भल अवसर जानू।
पारबती सम पति प्रिय होऊ।
जब हरि माया दूर निवारी।
माता सुनी बोली सोमति डोली।
हे गज बदन षडानन माता।
रिद्धि सिद्धि सिर धरि मुनिबर बानी ।
राम के सुरुआत करे परंपरा ह आज हिन्दू संस्करीति म रच बस गे हवय। न माता के मान कम होय, न राम के परभाव मिटय। जब तक दुरगा के पूजा होही तब तक राम जन्म अउ दसहरा होही। अइसने जब- जब राम कथा होही, दुरगा माता के रूप भवानी, गौरी, उमा, गिरजा के बंदना होही।
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