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माटीपुत्र या माटी के पुतला!

locationरायपुरPublished: Nov 27, 2018 08:03:28 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

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माटीपुत्र या माटी के पुतला!

ह मर इहां कोनो भी मनखे ल मूल निवासी के रूप म चिन्हारी कराए खातिर एक सहज सब्द के उपयोग करे जाथे, ‘माटी पुत्रÓ। खास कर के राजनीति म। चाहे कोनो पारटी के मनखे होय, कोनो पद म बइठे नेता होय सबके एके चिन्हारी. ‘माटी पुत्रÓ।
‘माटी पुत्रÓ कहाय के अधिकार हर कोई ल नइ मिले बर चाही। भलुक वोकर ‘माटीÓ खातिर ‘मयाÓ अउ वोकरो ले बढ़ के माटी के पहचान जेला हमन भाखा, संस्करीति या अस्मिता के रूप म चिन्हारी करथन, ऐमा वोकर कतका अकन योगदान हे, एहू ल देखे बर चाही। काबर ते सिरिफ इहां पैदा होय भर म या सिरिफ इहां के भाखा.संस्करीति के गोठभर कर दे म कोनो ल ‘माटी पुत्रÓ के चिन्हारी नइ मिल जाए। भलुक ऐकरमन के करम ल या कहिन बुता ल घलो देखे बर चाही।
आज छत्तीसगढ़ ल अलग राज बने अट्ठारा बछर उरकगे हवय। फेर इहां के भाखा के, संस्करीति के, मूलधरम के अलगे चिन्हारी नइ बन पाए हे। ताज्जुब तब होथे जब नेतागिरी करइयामन के बोली म इहां के भाखा, संस्करीति अउ संपूरन अस्मिता खातिर भारी अकन कारज करे के सेखी सुने बर मिलथे! अरे भइया! भारी अकन कारज करे हावव त वोहा कोनो मेर दिखय काबर नइ? आज तक इहां के भाखा ह सिक्छा अउ राजकाज के भाखा काबर नइ बन पाए हे? जेमन अपन भाखा, बोली, धरम, संस्करीति अउ इतिहास के गौरव ल नइ गोठिया सकंय, इंकर बढ़वार अउ रखवारी खातिर कुछु ठोस उदिम नइ कर सकंय, उन ‘माटी पुत्रÓ कइसे हो सकथे? ऐमन तो ‘माटी के पुतलेचÓ कहाहीं।
अस्मिता के चारोंखुंट बगरे अइसन रखवारमन घलो ‘माटी के पुतलेचÓ कस हें जेमन भासा, संस्करीति के बात ल, अस्मिता के गोठ ल सिरिफ मंच म माला पहिरे खातिर करथें। एकादठन सरकारी सम्मान ल अपन टोटा म ओरमाय खातिर करथें। जबकि ठोस भुइंया म इंकरमन के कारज सून्य होथे।
छत्तीसगढ़ी भाखा, संस्करीति खातिर कतको अकन सरकारी, असरकारी आयोजन होवत रहिथे। फेर, ऐकरमन के मंच म अतिथि-सतिथि के रूप म जेमन टोटा म माला ओरमा के बइठे रहिथें, बड़े-बड़े पदवी ले सम्मानित होवत रहिथें, वोमा के जादाझन के योगदान छत्तीसगढ़ी भाखा, संस्करीति अउ अस्मिता खातिर ठोसलगहा नइ रहय। अइसन म जब तक ललचिहा, ढोंगी, पाखंडी अउ फरजी किसम के मनखेमन मंच म सम्मान पाहीं अउ ठोसहा बुता करइयामन उपेक्छित रइहीं, तब तक छत्तीसगढ़ी के न तो बिकास हो सकय, न तो वोकर अस्तित्व बांच सकय।
का ए सब हमर माटीपुत्रमन के आंखी म नइ दिखय, अउ नइ दिखय त उन माटीपुत्र कइसे हो सकथें? जेकरमन के आंखीं म अंधरौटी छागे हवय, जेकरमन के मती ल लकवा मार देय हवय, जेकरमन के हाथ-गोड़ ह सिरिफ नेतागिरी करइयामन के जोहार-पैलगी करे खातिर हालथे-डोलथे, वोमन सिरिफ ‘माटी के पुतलाÓ हो सकथें। जेन कठपुतली नाच बरोबर नाचे के छोड़ अउ कुछु नइ कर सकंय।
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