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गोमती के परन

locationरायपुरPublished: Jan 14, 2019 06:40:49 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहिनी

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गोमती के परन

सोनसाय अपन गांव के बड़का किसान आय। ऐकरकन सब्बो खार म खेत अउ बोर रिहिस। बड़ घमंडी, घुस्सेलहा, कपटी रिहिस। नान -नान बात म छोटे किसानमन बर भड़क जाय। भड़के त वोकर आंखी ललिया जाय। कररा-कररा मेछा ल अइठंत रेंगय। नौकर- चाकर, बड़े-बड़े घर रहय। गांव म कोनो किसान सोनसाय ल पूछे बिना काम नइ कर सकय।
करजा बोड़ी म गांव के छोटे किसानमन बोजावत रिहिस। समारू बड़ मेहनत करइया, गुनी छोटे किसान आय। वोकर खेत ह सोनसाय के खेत कना हावय। सोनसाय ह समारू ले बड़ जलय, काबर कि वोहा किसानी काम ल सुग्घर ढंग ले करय। कोनो-कोनो बछर एकात पानी टोर दय त सोनसाय के भाग जाग जाय। एहू बछर एक पानी टोर दे हे। मेछा अइठत, पान खावत सोचत हावय। अब छोटे किसानमन मोर कन ले पानी मांगहीं।
समारू मुधरहा ले उठ जाय। संगे-संग वोकर बेटी गोमती तको उठय। समारू अपन बेटी ल कहिस -बेटी गोमती झटकुन चाय बना दे। चाय पीके सोनसाय कना जाहू। गोमती चाय बना के अपन ददा ल दिस। एक पानी पलोय ल लागही का ददा, गोमती पूछिस। हव बेटी, सोनसाय कना जात हंव, पानी मांगे बर।
टीबी म गाना देखत सोनसाय ह चाय पियत, झुमत अपनो गात हवे। सोनसाय घर म हावस का जी, समारू चिल्लाइस। मोला कोन चिल्लावत हावय रे जा तो देख, सोनसाय अपन नौकर ल कहिस। समारू हरे मालिक, नौकर बताइस। वोला बैठक खोली म बैठार रे,सोनसाय कहिस।
समारू बैठक खोली म गुनत रहय कि एहू बछर एक पानी टोर दे हे। ए बछर मोला सोनसाय पानी दिही के नइ दिही। एके पानी लागही मोला। का सोचत हस समारू? काबर आ हस, तेन ल झटकुन बता। मोरकन अड़बड़ बुता-काम हावय, सोनसाय कहिस। पानी मांगे बर आ हो जी। खेत म एक पानी पलोय ल लागही। तेहा एक पानी पलो देबे त मोर धान ह सोला आना हो जही, समारू बोलिस।
सोनसाय मेछरावत कहिस- पानी पलोय बर पलोहू, फेर एकड़ पाछू चार हजार रुपिया लेहूं। अरे ददा रे! समारू सोचित मन म। गांव म ठेका लेके पलोय के कीमत चार हजार चलत हावय। वोकर हिसाब से एक पानी के पइसा जादा ले जादा चार-पांच सौ रुपिया होही जी सोनसाय।
त तोला पानी नइ पलोय. बर हे सोनसाय कहिस। मरइया का नइ करय। आंसू डबडबाय समारू राजी हो जथे। गोमती पढ़ई-लिखई म होसियार रहय। हर बछर अपन कक्छा म पहली नम्बर ले पास होवय। समारू अपन बेटी गोमती ल पानी पलोय के दाम ल बताइस त गोमती दंग रहिगे। उही दिन ले परन करथे कि मेहा ए गांव म नहर लाय के उदिम करहूं।
गोमती बीए म पूरा कालेज म पहली आइस। गांवभर म गोमती के सोर होगे। गोमती अब दुख ल धर के नहर लाय के उदिम म लग जथे। बार-बार कलेक्टर कन आवेदन देवय, फेर आवदेन के सुनवाई नइ होय। नेतागिरी करके सोनसाय आवेदन ल दबवा दय। गोमती तभो ले हिम्मत नइ हारिस। कहे गे हे न कि घुरवा के दिन तको बहुरथे। नवा कलेक्टर मैडम आइस। वोहा ईमानदार रिहिस। सासन के योजना ल पूरा करे के उदिम करय। वोकर ले नेतागिरी कोसो दूर भागे।
गोमती के आवेदन ल देखिस अउ नहर बनाय बर सरवे करे के अधिकारीमन ल आदेस दिस। सोनसाय नेतागिरी करे के उदिम करिस, फेर नवा कलेक्टर कर काम नइ आइस। सोनसाय अब गांव के छोटे-छोटे किसानमन ल भड़काय के चालू कर दिस कि तोर खेत ह नहर- नाली म निकल जही त तेहा कामे खेती-बाड़ी करबे जी।
सोनसाय कोती अब्बड़झन छोटे किसानमन खड़ा होगे। अपन कोती खड़ा होत देख के मेछा ल अइठन लागिस। संजू कहिथे- हमर गांव म नहर नइ चाही। नहर बनाही त हमर गांव के कतको खेत नाली म निकल जाही। बिहान दिन गोमती बुगरु बबा के चौरा म सब्बो किसानमन ल बलाइस अउ समझाइस कि जेन कोती सरवे होय हावय वो कोती सबले जादा खेत तो सोनसाय के हावय। इहां नहर झन बने कहिके तुमन ल भड़कात हावय। तुमन बने सोचव हर बछर एक-दू पानी टोरथे ताहन सोनसाय एकड़ पाछू चार हजार रुपिया लेथे। सासन ह हमर जमीन के मुआवजा तको दिही। का पूरा जिनगी ल गरीबी म बिताय बर हे।
संजू कहिस- मेहा अपन खेत म नहर-नाली दे बर राजी हंव। संजू के संगे-संग सब्बो किसान राजी हो जथे। किसानमन के गोठ ल सुन के गोमती के आंखी डबडबा गे। वोकर खुसी के ठिकाना नइ रिहिस। वोकर परन पूरा होगे। दू-चार महीना म नहर बन गे। गांव म खुसहाली छागे। सोनसाय के अकड़ टूटगे। समारू कहिस – गोमती असन बेटी, हर गांव म जनम धरे।

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