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गोरसी आगी के ताव

locationरायपुरPublished: Jan 15, 2019 09:05:02 pm

Submitted by:

Gulal Verma

सुरता म

cg news

गोरसी आगी के ताव

बिक्कट धुकत हावे, काबर पानी ह गिर के जाड़ ल अउ बड़हा दिस। घाम ह घलो सितहा बरोबर हावे। तेकर सेती आन बछर ले ए बछर ह हाड़-गोड़ ल कंपा दिस। अइसन बखत म जुन्ना दिन के सुरता ह अंतस म घुमड़ गे।
हमन ह नान-नान रहान, सब्बो भाई-बहिनी संझाकुन खेल के आन। तहान दाई ह पढ़े बर बइठे ल कहाय। रंधनी कुरिया ले सटे कुरिया म बीच म गोरसी ल रख दे। वोमे चूल्हा ले अंगरत कोयला ल डार दे। वोकर ऊपर अउ कोयला। तहान गोरसी ह ताते-तात ताव फें के के चालू कर देय। हमन गोरसी के चारों मुड़ा बइठ के अपन नकल करन अउ पढऩ घलो। एकोकनिक हमन ल जुड़ नइ लागे। हाथ-गोड़ दू मिनिट म तात हो जाय। बीच-बीच म कोनो भाई ह गोरसी के आगी ल हूदन दे, तहान दूसर भाई ह दाई ल सिकायत कर दे। दाई साग रांधत-रांधत ऊंहिचे ले चिल्लाय- रहा, मेहा आवत हंव। तहान बदमासी ल छोर, सब्बोझन सोज हो जान। अइसन पढ़त ृ हांसत रतिहा हो जाय, बाबू ह घलो बजार डहर ले आ जाए। हाथ-गोड़ धो के सब्बो कोई खाय बर बइठन। दाई ह गोरसी ल हमर सुते के खटिया तरी रख दे। खाय के बाद फे र बाबू संग गोरसी तापन। जादा जुड़ रहाय त हथेरी ल गरम करके तरपांव ल घलो सेंकन।
बाबू ह आगी तापत-तापत कहिनी घलो हमन ल सुनाय। कभु-कभु कभू खुदे ह रेडियो घलो सुने। रात ह बाढ़त जाय तहान दाई ह चिल्लाय, तुमन ल बिहनिया उठई बर नइये का। कुरिया म एक कोनटा म, नइते परछी म गोरसी ल रख दय दाई ह। हमर कथरी ह बिक्कट गरम हो जाय रहाय गोरसी के आगी ले। रातकिन सुते म अब्बड़ मजा आय।
पहाती बाबू-दाई ह उठ जाय। हमन ह थोरकुन बेर म उठन। उठके सब्बो कोई गोरसी के चारोंमुड़ा बइठ के दतौन करन। रातभर गोरसी के आगी ह बुझाय नइ, थोरकुन जुड़ाय रहाय। उही म चिल्फा, नइते कोइला डार के फे र सुलगा देन। मुखारी घसत बड़ बेर हो जाय, तहान नहाय बर बारी डहर चल देन।
गोरसी ह डोकरा बबा-दाईमन ल अब्बड़ भाए। सियनहा मनखेमन ल जुड़ जादा लागथे। गोरसी ह वोमन ल तात राखय। गोरसी ल खटिया तरी रख देय ले गोरतरिया ह घलो गरम हो जाय। कुरिया ल गरम करे के जतन करे बर रहाय तभो गोरसी सुलगा दे जाए। फेर एकठन गोठ के धियान रखे बर परे कि कुरिया म खिरकी रहई जरूरी रहाय, नइते सांसा भारी हो जातिस।
गोरसी ह माटी के बनाय जाए। बने चिक्कट माटी में पेरोसी डार के पानी मिला के वोला साने जाए। वोकर बाद करसा ल उल्टा राख के वोकर पेंदी म गोरसी थाप के सूखाय बर छोड़ दंय। बने घाम रहाय त दू दिन म सूखा जाय। गोरसी ल बना पठउंआ म जाड़ दिन बर रख दंय।
लइका के जनम हो वोकर नरवा ल गोरसी म जलावंय। लइकोरी दाई अउ लइका ल गरम रखे बर हो, सब्बो बुता म गोरसी काम आय। नानचुक ल पेट सेकें बर गोरसी के उपयोग करे जाए। अब नवा जमाना म गोरसी नदावत हे।

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