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रायपुर

भासा हे जिनगी के सार

बिचार

रायपुरFeb 06, 2019 / 07:23 pm

Gulal Verma

cg news

भासा हे जिनगी के सार

बिकास अउ बुद्धिजीविता के परयाय कहुं बिदेसी भासा म पारंगत होय बर हे त फेर का काम के हमर आत्मसम्मान अउ स्वाभिमान के ढोंग। भासा ह मनखे बर मनखे ले जुड़े के माध्यम हे, न के अपन योग्यता साबित करे के हथियार। वाह! हमर लइका ह त अंगरेजी म गिटिर- पिटिर करथे। भारी पढ़े लिखे हे, गो।
हत रे, जकला! होही भारी पढ़े-लिखे। फेर, अब वोहा तोर हाथ ले निकल गे हे। कइसे? ए दइसे। अब वोला अपन संगी-साथी अउ बइठका म तोर परिचय कराए म लाज लागथे। हमन जउन ल नइ कर सकन तेन ल हमर लइका करथे त बड़ गरब लागथे। फेर, जब हमरे लइकामन अपन छद्म योग्यता के आगू अपने सिरजक ल तुच्छ समझे लगथे, अपने माटी ले मुंह लुकाए लगथे, तहां वोकर योग्यता अउ बिसेसता सब खातू हो जाथे।
आज गांव-सहर सब जगा अपन लइकामन ल अंगरेजी माध्यम म पढ़ाय -लिखाय म गरब जनाथे। ठीक हे, बेरा के मांग हे। लइका विस्वभासा ल जानही तभे तो विस्वस्तर म नाव कमाही। फेर, वोला अपन माटी ले अलगिया के, हमिचमन अपन बर अपमान के रद्दा गढ़त हन। काली जुवर हमर लइका दिल्ली, मुंबई या हो सकथे बिदेस म जाही। जावत घलो हें अउ आवत नइये। काबर के वोला अपन माटी ले मोह नइये। अउ रइही घलो काबर, वोला तो आप पहिलीच ले अलगिया राखे रहेव।
आज जरूरत सुरू ले ही अपन भासा, संस्करीति अउ तीज- तिहार के संग अवइया पीढ़ी ल जोड़े के हे। तभे तो वोहा अपन अवइया पीढ़ी ल ए धरोहर ल सौंपही। हमर देस-परदेस के गौरवसाली इतिहास, परंपरा अउ तीज-तिहार ह चिरकाल तक बनाय रइही।

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