script

कुछु छोड़े के दिखावा करइयामन के जमाना हे!

locationरायपुरPublished: Feb 19, 2019 07:25:35 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

cg news

कुछु छोड़े के दिखावा करइयामन के जमाना हे!

दे-दे राम, देवा दे राम, देवइया हे दाता राम…। हमरो पूछइया भइया कोनो नइये गा, हमरो देखइया भइया कोनो नइये गा…। भगवान ह जनम देय हे त वोहा जीये-खाय के बंदोबस्त घलो करबेच करही। धीरज रख ! कन-कन म भगवान हे अउ दाना-दाना म खवइया के नांव लिखाय रहिथे। अइसन कहइया, बतइया, सोचइया, मनइया, गुनइया कहुं एक-दूझन नइये, बल्कि हर गांव-सहर म एक खोजबे त दस मिल जहीं।
अइसने ‘ए कर-वो कर, ए झन कर -वो झन कर, ऐला छोड़- वोला छोड़, ऐला धर- वोला धरÓ कहइया, टोकइया, बरजइया, गियान बघरइया, परवचन, सिक्छा, दिक्छा देवइया सबो घर, परिवार, समाज म मिलथे।
अपन परवचन म एकझन बाबा ह ए मानुस जिनगी म तियाग करे बर कहिथे अउ वोकर तरीका घलो बताथे। वोहा कहिथे- दस बछर के होगेव त अपन महतारी के अंगरी ल धरके रेंगे बर छोड़ दव। बीस बछर के होय ले खिलौनामन से खेले बर छोड़ दव। तीस बछर के हो जहू त ऐती-वोती आंखीं किंजारे-मटकाय बर छोड़ दव। चालीस बछर के हो जाव त रातकुन जेवन करे बर छोड़ दव। पचास बछर के हो जाय ले होटलमन म जाय बर छोड़व। साठ बछर के होय ले नउकरी-चाकरी-बेपार छोड़ दव। सत्तर बछर के होय ले दसना (बिस्तर) म सुते बर छोड़ दव। अस्सी बछर के होय ले लस्सी पीये बर छोड़ दव। नब्बे बछर के हो जहू त जीने के आस छोड़ दव अउ सौ बछर के हो जाव त ए दुनिया ल छोड़ दव।
ए बाबा के बात तो बने हे, फेर ए सब ल छोड़त कोनो मनखे नइ दिखय। इहां तो उलटा हाल हे। जइसे-जइसे मनखे के उमर बाढ़त जाथे, वोकर धरे म मन बाढ़त जाथे। नानपन म खिलौना से खेलथे त जवान होथे त ‘तन-मनÓ से खेले बर सुरू कर देथे। आधा उमर आथे त ‘तोर-मोरÓ ल धर लेथे। बुढ़ाय लगथे त हरदफे ‘का कमाएंव- का खाएंवÓ के राग धर लेथे। निच्चट बुढ़वा हो जथे त अपने बखान करत रहिथे, जइसे जिनगी म जउन कुछ करे हे, सिरिफ उहीच ह करे हावय। बाकीमन तो कुछु करबेच नइ करंय।
मनखे ह बड़ बिचित्र हे। चिरई से लेके सेर तक ल देख लव। जवान होथे तहां अपन लइकामन ल हरहिंचा जिनगी जीये बर छोड़ देथें। फेर, मनखे ह जिनगीभर अपन औलादमन ल धरे रहिथे। ‘धरेचÓ भर नइ रहंय, बल्कि कटकटा के ‘कबियायÓ रहिथे। का मजाल के छोकरा-छोकरी जवान होय ले अपन पसंद से बिहाव कर सकंय। अपन पसंद के काम-बुता कर सकंय। कतकोन घर म तो घरवाली ह साग घलो ल घरवाले के पूछे बिना नइ बनाय सकय।
वइसे घलो छोड़ई ह हर मनखे के बस के बात नोहय। फेर, जेन छोड़थे, वोमन कमाल करथें। राम ह हांसत-हांसत राजमुकुट छोड़ दिस। किरिस्न ह मथुरा छोड़के दुवारिका चल दिस। सिद्वारथ ह राजपाट, सुग्घर घरवाली अउ नानकीन बेटा ल छोड़के जंगल चलदिस। गांधी ह वकालत छोड़के देससेवा म जुट गे। जउनमन ‘छोड़थेंÓ उहीचमन ‘पाथेंÓ।
जब हमर देस-समाज म अइसन मनखे के कमी नइये, जउनमन अधरम, पाप, लालच, बेईमानी छोड़े के दिखावा करथें, फेर छोडय़ नइ, त अउ का-कहिबे।

ट्रेंडिंग वीडियो