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बहुरिया

locationरायपुरPublished: Feb 28, 2019 07:35:40 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहिनी

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बहुरिया

समेरी काकी के नांव गांव भर मं मंथरा काकी के नांव ले जाने जाय। काबर कि, जहां समेरी तहां हमेरी। एखर लागा, वोकर बोहाता। सब के बरोबर खभर राखे। त तो मंथरा अपन पाठ मं पाके राहय। फेर घर-बार के थोरिक चिनता-फिकर नइ करय। फकत गांव-गोदही के चिनता डाटे राहय। फलानी के बहू, ते ढेकानी के दमाद, त काखर गरवा, काखर छेरी-बरई अउ रंग-रंग के अमका-ढमका ताय।
गांव म एकझन सुकालु नांव के ठेठवार राहय। वोकर एकझिन बेटा रिहिस। बड़ सिधवा-सुजानिक। पढ़ई के बारा पुरिस, ताहन ले तीर के गंवई ले बहुरिया लालिन। बड़ सुग्घर चंदैनी कस बहु के नांव सिमरन रिहिस। जस नाव तस गुन। त ठेठवार पारा म बहुरिया मन के चलती राहय। दूध-दही लेवइय्या काकी-दाई अउ जहुरिया के बिकट मान-मरजादा करय। तभे तो गांव भर उखर सनमान मं कोनहो किसम के टिपा-टिपली नइ बाजय। फकत गुन गावत राहय।
मंथरा काकी के करिया छांव का परिस, ठेठवार के घर अउ पारा-परोस मं हांव-हांव करई चालू हो गे। साल भर होय नइ होय हे फेर सिमरन के देह गरु नइ होवत हे कहिके गांव भर गोहार परइया मंथरा काकी आय। का नइ केहे होही माइलोगन के जात ला, फेर अपन भुला जथय के बहू ह कोनहो दाई के बेटी आय। नवा बहुरिया मन के तरिया म नहवउ मुसकिल होगे। गांव-गली म निगलंय तभो डरत राहंय के कोनो मंथरा काकी मत अभर जाय। काबर के जेन मिलही तेकर करा दू के चउदह बतइया आय। कोनो नइ मिलही त वोकरे सात पुरखा ल नइ चुरो दिस त अपन बाप के बेटी नोहे मंथरा काकी ह। ऐसे के असाड़ मां सरलग पनदरही पानी के गिरई अउ झड़ी करई मं सबो के जांगर टूट गय तइसे लागय। एक दिन गांव मं देखो-देखो होगे। मंथरा काकी के हाथ-पांव जुड़ होगय। जीभ हर एकंगू निकल गे राहय। आंखी ह बोड़बोटाय, खटिया मं बेसुध परे राहय। कोनो डाक्टर बाबू के दवई अउ गुलूकोज के बाटल हर काट नइ करत रिहिस। तभे सिमरन ला जानबा होइस। त तुरते मंथरा काकी के सुध लेवत, उंकर घर गीस। देखते भार जन डारिस के काकी ल एकंगू लकवा मारे हावय। सिमरन हर नरस बाई के पढ़ई घला करे रिहिस। अउ डाक्टर तीर साल-दू साल रहिके सीखे घला रिहिस। डाक्टर के सुजी -पानी देवई अउ गंवई के मरीज के तुरते इलाज करई ल। सिमरन ह गुलूकोज ल तुरंते हेरके हाथ-पांव ल बढिय़ा मालिस करे के उदिम करिस, मंथरा कानी के थोरको सुध लागिस अउ हुद करइस पानी-पानी।
सहर के बड़का अस्पताल लेगे बर मंथरा काकी ल सरकारी जीप म बइठइन। फेर सरकारी डरावल ह आने गांव के रिहिस। सांझ कुन गंवई के अस्पताल बंद होईस तहां वोहर अपन गांव चल दे रिहिस। त हिमत करके सिमरन ह डरावल के सीट म चघिस अउ आंगनबाड़ी वाली बहिनी अउ मितानिन ल संग धर के सहर के अस्पताल पहुचीन। डाक्टर मन किहिस बने करेस बेटी, ते हिमनत करके अतका दुरिहा अस्पताल ले आनेस। नइ ते काकी के सरीर के लहू ह पानी बरोबर जुड़ होवत रिहिस हावय। लकवा ह बीमारी नोहे, काम- काजी अउ खान-पान के लापरवाही के सेती होथे। खून के दउरा बरोबर सरीर म नइ होवय तेकर सेती कभू-कभार जान घलो चल देथे।
बिहान दिन मंथरा काकी ह बोले-चाले लागिस। अउ सिमरन ले हाथ जोर के मांफी मांगत गोहार पार के रोय लागिस। अस्पताल वाला मन घलो डर्रा गय। फेर सिमरन ह काकी के हिम्मत बढ़इस। अउ पोटार के कहिस- काली हमन गांव जाबो, अब तेहां बने होगे हस। चिनता-फिकर के बात नोहे। मंथरा काकी ह सिमरन ल पोटारत कहिथे- तोर असन बहुरिया गांव-घर मं रहि त काबर काखरो तबियत बिगड़ही दाई। काकी हर गांव लहुट के सबोल अपन दुलौहिन बहुरिया के जस के गुनगान करत दिन बिताथय अउ संझा बेरा अपन बेटी के हाथ के चाय पीये खातिर सिमरन ला सुरता करत वोकर मुहाटी म खच्चित जाथय। गंवई भर कहिथे- सिमरन ह वो जनम के मंथरा के बेटी आय। त मंथरा कहिथे- यहूं जनम म सिमरन मोर मयारूक बेटी आय।
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