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समरथ को नहि दोस गोसाई

locationरायपुरPublished: Mar 05, 2019 07:11:35 pm

Submitted by:

Gulal Verma

महासिवरातरी

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समरथ को नहि दोस गोसाई

महराज हिमालय अउ माता मैना अपन बेटी गिरिजा के बिहाव बर बड़ फिकर करंय। एक दिन नारदजी वोकर दरबार म पहुंच के गिरिजा के हाथ ल देखके बिचारिस अउ बताइस के, जम्मो धरती म ऐकर लइक बर मिल पाना असम्भव नइये, फेर थोरकुन मुसकिल जरूर हे। ‘अगुन, अमान, मातु-पितु हीना, उदासीन सब संसय छीना। अउ जोगी जटिल काम, मन, नगन अमंगल दोस। ***** स्वामी एहि कंह मिलहि, परी हस्त असि देख।Ó याने ऐकर भाग म गुनहीन, मानहीन, बिगन दई-ददा के, उदासीन, लापरवाह, जोगी, जटाधारी, निस्काम हिरदे, नंगरा अउ अमंगल पहनइया पति हे। फेर ऐकर पाछू घला ‘समरथ कहुं नहि दोस गोसाईं।Ó ए मनखे समरथ होही। जेकर इच्छा ले चंदा, सुरूज, आगी अउ गंगा समरथ बन जही।
अब सवाल ए हे के ए समरथ कोन आय। जेकर करा ताकत हे या वो आय जेकर करा धन-दउलत, माल-खजाना हे। कुछ तो समरथ उनला घला कहिथें, जेमा कुछु दोस नइ रहय। फेर वाजिम म समरथ वो आए जेकर करा देबर कुछु दिखय निही, फेर अतका देथे जेकर सीमा नइये। भगवान सिव ही सिरिफ समरथ आय। काबर वोहा अपन परान के कुटका-कुटका करके हमर जीव के निरमान करिस अउ हमन ल जिनगी दिस। जम्मो जग म निवास करइया सिव भगवान ह अइसे देवता हरे जेकर अराधना, उपासना मसानगंज म तको होथे। कुछ मानसकारमन चंदा- सुरूज, आगी अउ गंगा ल घला समरथ मानथें। फेर, असल गोठ ए आय, ऐमन सिव के अंग के सिवाय अउ कुछु नोहय। सिव ऐकर नियंतरक अउ स्वामी घला आए। इहीमन सिव म समाए हें, तेकर सेती सिव ल संकर घलो कहिथें।
सिव ल समरथ कहे के अउ कतको कारन हे। जग के जम्मो विधा अउ विद्या के स्वामी घलो सिवजी हरय। इही ह पंचमहाभूत के नियंता घलो आय, जेकर अनुसासन ल दुनियाभर के चेतना ल स्वीकारे ल परथे। सिव पुरान के मुताबिक भगवान स्वयं सिद्ध अउ सर्वमान्य सच हे।
सागर मंथन ले निकले चउदा रतन म एकठिन रतन जहर घलो रहिस। चारों मुड़ा म हाहाकर मातगे। कोन ऐला अंगिया सकत हे, तेकर खोजा-खोज माचगे। बरम्हा अउ बिसनु जानय सिव के सिवाय ककरो म ऐला अंगियाये के सक्ति नइये। जम्मो झिन भगवान सिव ल सुरता करिन। सिवजी परगट होके गटागट लील दिस बिसम गरल ल।
तुलसी कहिथे- ‘जरत सकल सुर वृंद, विषम गरल जिन्ह पान किया। तेहि न भजसि मतिमंद, को कृपालु संकर सरिस।Ó
रहीम कहिथें- ‘मान रहित विष पान करि, सम्भु भये जगदीश।Ó
राक्छसमन के गुरु सुक्राचार्य, देवतामन के गुरुबृहस्पति अउ मनखेमन के गुरु वेदव्यास आय। फेर, ए तीनों के महागुरु सिवजी ए।
राक्छसमन के बइद सुखेन, देवतामन के बइद अस्वनीकुमार अउ मनखेमन के बइद धनवंतरी घलो ह सिवजी ल महाबइद कहिथें अउ बिपत परे म वोकरे सहारा लेथें। तभे इनला परल्या वैद्यनाथं घलो कहिथें।
वाजिम म हमर जीव ह सिव के सबले तिर होथे। तेकर सेती सुभाविक रूप ले सिव के सुरता जाने-अनजाने म अपने-अपन होवत रहिथें । हमर पुरखामन के इहां तक मानना हे कि सिव के ही अंस हरे हमर जीव ह। ऐकरे सेती जीव के नास नइ होवय। तभे भगवान अंस जीव ल अविनासी कहिथें । ऐकरे सेती लोगनमन कहिथें- जीव न पइदा होवय, न मरय, ऐहा परगट होथे। आखिर म सिव म मिल जथे।
सृस्टि ल सृस्टा ले, मैं ल तू ले, अहम ल परम ले, त्व ल स्वयं ले, पर ल अपर ले, अलख ल लख ले, चर ल अचर ले, जड़ ल चेतन ले मिलाके जीव ल सिवत्व के बोध करइया स्वयंसिद्ध समरथ सिव ही आय। जेमा कहिंच दोस नइये। तभे सिवजी खातिर रामचरितमानस म कहि गिस- ‘समरथ कहुं नहि दोष गोसाईं।Ó
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