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करजा ले छुटकारा

locationरायपुरPublished: Mar 07, 2019 07:24:39 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहिनी

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करजा ले छुटकारा

रामजी ह करजा लेवइ अउ करजा छुटइ म हलाकान होगे राहय। वोहा सोचय के अतेक मिहनत करथंव फेर मोर तीर फूटी कउड़ी घलो नइ बांचय। ये बच्छर तो भगवान ह घलो रूठगे हावय। पानी गिराय बर भूलागे। धान ह आधा होय हावय। नोनी के बिहाव घलो करना हे। साहूकारी करजा घलो चुकाना हे। मोला तो समझ नइ आवत हे के का करंव? वोती घरवाली ह साग-भाजी, तेल-नून नइ हे कहिगे बखानथे। लुगरा, टिकली, फुंदरी, इसनो, पाउडर बर तरसंथ कहिके उटकथे। मोर ददा-दाई मन कहां धकेल दीस कहिके कोसथे। इही बात मन ल गुनत-गुनत रामजी ह अंगना मं बइठ सोचतथें कि मोर जीना बेकार हे। मेहा ये सब हलाकान ले छुकराना पाय बर जहर ली लेथंव। कहां ले साहूकार के डांट ले अउ बाई के ताना ले छुटकारा मिल जही। ये सबला सोचके रामजी ह जहर ल घोर के पियेबर धरे राहय। तइसना म जोहतू ह का करथस रामजी काहत पहुंचगे।
रामजी ह माली के जहर ल अेती-ओती करेल धर लेथे। फेर लुकाय नइ पइस। जोहतू ह माली म सादा-सादा दूध समझ कथे आजकाल चाय के जगा म तेहां दूध पियथस जी। बने हे, जादा चाय पीना बेकार हे। जिही घर मं जाबे तिही घर म चाय ताय। तहां ले भूख घलो नइ लागे। अतका बात ल सुनके रामजी ह फफक-फफक के रो परथे। जोहतू ह कहिथे- अरे का होगे जी मेहा तोला ताना तो नइ मारत हंव। रामजी ह अपन अंतस के सब बात ल जोहतू ल बताइस। जोहतू ह कहिथे- अरे निच्चट लेड़हा हस संगवारी। तोला अकल से काम ले बर परही। संसो करय ले काम नइ बनय। जहर महुहा पीये से मुक्ति नइ मिलय। ऐकर से जग हइस होथे। बाई अउ लोग-लइका के जिनगी ह बिगड़ जथे। बने बता तोर साहूकारी करजा कतका अकन हे? रामजी कहिथे- बीस हजार। तोर खेत कतका अकन हे? पांच एकड़। त जोहतू ह समझाथे- देख रामजी सासन ह एक एकड़ किसान करेबर दस-बारा हजार रुपिया के करजा देथे। तोर पांच एकड़ म पचास-साठ हजार रुपिया करजा मिलही। तेहा साहूकारी करजा ल दे-देबे। बाचही तेमा तेहा अपन नोनी के बिहाव कर देबे। जादा होही ते तोर नोनी के जयमाला बिहाव करा देबो जी। अतका बात ल सुनके रामजी कथे मेहा बेंक म करजा नइ लेवंव, काबर करजा नइ पटही तहां ले सरकार ह कुड़की- डिगरी करेबर आ जथे। अतका बात ल सुनके जोहतू ह कहिथे- कुटकी डिगरी नइ होय। तोला अतके करे बर परही के हर बच्छर धान कटई के बाद ऐला पटादेकर। तीन रुपिया सलाना बियाज लगही बस। साहूकारी म कतका बिजाय देथस। रामजी कहिस चार रुपिया सइकड़ा ताय भइया। हतरे भकला तेहर अपन जिनगी ल चलावतहस के साहूकार ल पालतहस। अइसना मं नइ बने। डिमाक ले काम ले बर परही अउ साहूकार से छुटकारा पाय बर लगही। सासन के योजना के लाभ लेना चाही। एक बात अउ हे जेन साल पानी नइ गिरय अउ अकाल परथे तेकर बीमा बइंक ह घलो होथे। ऐकर मुआवजा किसान मन ल मिलथे। रामजी ह जोहतू के बात सुनके गद्गद् हो जथे अउ तुरते करजा लेबर बइंक चल देथे। साहूकार के करजा चुकाय के बाद मं बांचे रुपिया ले घर के खरचा हंसी खुसी चलाथे अउ जिनगी के आगे पहर मं दु:ख के गम तिनका भर नइ करय। इही ल कहिथे- घुरवा के दिन बहुर गे।
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