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अनपढ़ के पीरा

locationरायपुरPublished: Mar 08, 2019 07:13:29 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहिनी

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अनपढ़ के पीरा

बुधियारिन अउ नकछेड़ा दूनो परानी बड़े फजल ले गोदी खने बर झऊंहा, गइती ल धर के खेत डाहर चल दे रहाय। गरमी के मउसम दस बजिस ताहन ले भूइयां लकलक ले पीते ल धरलीस। भूख तको लागत रहाय। घर जाबो कहिके निकल गे। आके भीतरी मं सुखरत कपाट ल ओधाइस। पठेरा मं मढ़ाय मुखारी ल बुधियारिन घर के बखरी डाहर कुवां तीर जाके चीरी करत रहाय। ओतकी बेर कपाट के सकरी बाजे के आवाज ल सुन के लकर-धकर मुहूं ल पोछत अइस। ते देखथे, खाकी-खाकी रंग के कुरता, पइजामा पहिरे डाकिया बाबू चिट्ठी ल धरे पूछथे तही बुधियारिन हरस का ओ। बुधियारिन कथे- महि लाव गा, का बात ये तेला बता डार। डाकिया चिट्ठी ल हाथ म धरा देथे अउ रंगते बनथे। वोला देख के बुधियारिन चिल्लाथे- सुन तो बाबू ये चिट्ठी कहां ले आय हे तेला पढ़ के सुना दे न। बुधियारिन अड़ही फेर वोकर गोसइया नकछेड़ तक अनपढ़। दूनोझन बर तो करिया अक्छर भइस बरोबर हे। जिनगी भर इसकुल के देरौठी ल नइ खूंदे हे। का जाने पढ़ई- लिखई के मरम ल।
डाकिया बाबू ह मोर मेर बेरा नइये दूसर जगा पढ़ा लेबे, मोला अड़बड़ अकन चिट्ठी बांटना हे कहिके चलदीस। जिनगी मं पहिली बार हाथ म चिट्ठी ला देख के बुधियारिन बड़ मगन हो गे रहिस। बिना खाय-पिये चिट्ठी ल पढ़ाय बर गांव के गौटिया बिसन दाऊ जगा चलदीस। दाऊ धोती बंगाली पहिरे कांध मं साफी ल डारे हासत कहिस- आ बुधियारिन घातेच दिन मं दिखेस बइठ। बुधियारिन लूगरा के ओछी मं गठियाय चिट्टी ल खोलत येदेला पढ़के सुना के देतेस दाऊ कहिस। त दाऊ ह मोर मेर बेरा नइये, मोला जल्दी ईंटाभट्ठी जाना हे कहिके अपन टूरा कुलदीप ल पढ़के सुनाये बर कहिके चलदीस।
कुलदीप ह ठट्ठा मढ़ात बुधियारिन ल कथे- चिट्ठी पढ़े के पईसा लागही काकी। लाने हस ते बता अउ चिट्ठी ल दे। फेर ओतकी जुवार मोबाइल के घंटी बाजगे। फोन म गोठियात-गोठियात कुलदीप बाद मं पढ़हूं काकी कहिके फटफटी के कूची ल घूमइस अउ भुर्ररर के चलते बनीस। दस ले गयारा बजगे घाम अडरावत रहाय। बुधियारिन गौटिया घर ले बाहिर पार निकल गे। रेंगत-रेंगत गोपाल गुरूजी घरगीस। गुरूजी मन कोन्हो नइ रहाय। घर मं तारा लगे रहिस। पूछित त पता चलिस के मास्टर अऊ मास्टरिन दूनोझन गांव चल देहे। उहूंचों ले दूच्छा बुधियारिन ह कोसभर दूरिया अपन पहिचान के डाक्टर सरमा के दवाखाना मं गीस। मरिज मन के भीड़ ल देखके बिचारी के हुक्का चलीस न बुक्का। सोचे लागीस मरिज ल छोड़ के मोर चिट्ठी ला थोरे पढ़ही, कहिके दू घंटा ल बईठिस फेर उना नइ होइस। तब अपन कस मुहूं करे लहुटत उही रद्दा ले घर आवत रहिस। त एकझन पढ़े-लिखे खिशा मं पेन धरे सइकिल के केलियर मं कापी ल दबाय जवनहा पढ़हनता कस दिखीस। त कहि परिस- रूक तो बेटा, एकठन तोरेच लइक बुता हे। ये चिट्ठी ल पढ़ देतेस कहिके गिलौली करे लागीस। फेर का मजाल वोहर चिट्ठी ल पढ़ देतीस। मोरकन टाइम नइ हे कहिके सइकिल के पाइडिल ल जोर से गोड़ म मारिस अउ चलदीस। आज भगवान सहिच मं बुधियारिन बर रीसा गे रिहिस। काली रतिहा के खाय बुधियारिन के आंखी कान खूसरगे हे। दिनभर घामे-घाम मं रेंगई, गरमा दिही तइसे लागथे। कोन्हो एको कलम पढ़े रतिस त ऐ दिन देखे बर नइ मिलतिस। हमन कथन के विकास करत हन। चारों डाहर मइनखे मन काम बुता मं अइसे लग गे हे के अपन संसकिरीती ल भुलावत हे। नइ त एक-दूसर के सहयोग करे मं बहुत बड़े पुन मिलथे कहिके आदमी मन बात-बात मं बिगारी करतीस। फेर अब उहूं नंदात हे। कहात हन के पढ़व अउ आगू बढ़व। पढ़त तो हे, आगू तको बढ़त हे। फेर खुद बड़हत हे। हमर छत्तीसगढ़ी कवि लछमन मस्तुरिया के गोठ ह सुरता आथे के-
मोर संग चलव रे, मोर संग चलव गा, परे-डरे अउ हपटे मन, गिरे-थके मइनखे मन, मोर संग चलव न मोर संग चलव रे, मोर संग चलव न। अमरइया कस जूड़ छाव म, मोर संग बइठ जुड़ा लव, पानी पी लव, मय सागर अंव, दूख-पीरा बिसरालव, नवा जोत बर, नवा गांव बर, रद्दा नवा गढ़व रे।
वहू पढ़हंता टूरा मोला देरी हो गे हे कहिके सइकिल ल रेस चलात भाग गे। चिट्ठी ल हाथ मं धरे-धरे बुधियारिन के मन ह लोझोल खागे। आखी डाहर ले आंखू निकल गे। गिरत-हपटत गांव तीर अइस त संझौती हो हे रहाय। बरदी ओझ्ल गे रहिस। अपन-अपन घर सबो झन दीया बाती कंडील अउ लट्टु जलात रहाय। बोरिंग मं पानी पीहूं कहिके जात रहिस तब पनिहारिन के भीड़ ल देख के सोज्झे गली मेर अपन किसमत ल कोसत रेंगत रिहिस। हे भगवान कभू काल के आज एकठीन चिट्ठी आय हे, तेकर बतइया कोन्हो नइये। कहां ले आय हे अउ येमा काय लिखा हे तेकर पढ़ के सुनइया एक्कोझन नइ मिलत हे। कहूं महूं पढ़े गुने रतेव त ये भोगना भोगे ल नइ पड़तीस। अनपढ़ ल न जाने कता मुसीबत उठाय ल पड़थे। गऊरा चौक मं सेखर दुकान ल देखिस त भीतर मं जा के कथे- येदे चिट्ठी ल पढ़ देतेस का बाबू। आज मेहा बड़ भुगत गेंव। बाप-पुरखा इकर मरम ल नइ जाने रहेंव, तेला जान डारेव।
उही बेरा नून-तेल लेवइया गिराहीक आ गे। एक के बाद दूसर-तीसर करके घातेच भी हो गे। बुधायारिन के दाल यहू मे नइ गलिस। आधा घंटा भर बइठिस तहान उठ के घर डाहर रेंगिस। बड़ मुसकुल मं घर पहुंचिस। ढ़ेरौठी मेरगीस तहान चक्कर खाके गिरगे। तभो ले चिट्ठी ल हाथ मं धरे रिहिस। जम्मो मनखे जुरियागे। देखो-देखो हो गे। गोसइया नकछेड़ा पानी ल लान के छितिस। हाव ल धूकिस। कोन्हो पाव ल लगरिस त कोन्हो जुड़ तेल लगइस। पनदरह मिनट असन मं थोरकन चेत अइस त बने लागिस। जुरियाय मइनखे मं रमेस नांव के सरकारी नौकर दरोगा बाबू ह हाथ के चिट्ठी ल देख के कथे- हाथ मं धरे हस ते काय हरे भऊजी। बुधायारिन ह कहिस- भइगे देवर बाबू इही चिट्ठी के नाम लेके मेहा आज मरत-मरत बाचे हव। मोर सबो रेगड़ा टूट गे। पढ़ के सुना देतेस का। दरोगा बाबू चिट्ठी ल पढ़हीस त लिखाय रहाय के वोकर बेटा भुवन ह सहर म पढ़-लिख के नौकरी पा गे हे। अउ पहिली तनखा के पइसा ल दस तारिक के भेजहूं। डाकिया ल पूछ लेबे। अउ लिखाये रहाय के अब हमर गरीबी के दिन दूरिया गे हे। ऐला सुनीस त दिन-भर के थकान ह डोकरी-डोकरा के मिटा गे। ताहन फेर मगन होके नाच पडि़स।
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