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ईमानदार हे त तकलीफ उठाय बर परही!

locationरायपुरPublished: Mar 13, 2019 07:00:42 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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ईमानदार हे त तकलीफ उठाय बर परही!

मितान! सिरिफ सच बात ह कभु नइ बदलय, नइते जमाना म सबो जिनिस बदलत दिखथे। अउ तो अउ नता-रिस्ता घलो बदल देथें। मउका परे म ‘गदहा ल बाप घलो बनाय बर परथेÓ- ए हाना ह आज जेती देखबे वोती सच होवत दिखथे। याने ‘बाप बड़का न भइया, सबले बड़का रुपइय्याÓ के जमाना हे।
सिरतोन! आजकाल बहुतेच गड़बड़-सड़बड़ होवत हे। लोगन ल घोर कलजुग आ गे तइसे लागत हे। डर लागथे के कहुं परलय झन आ जाए! ‘कहिथे न ‘पाप के मरकीÓ एक न एक दिन फूटबे करथे। एहू कहे जाथे के- ‘अति के अंत होबेच करथे।Ó फेर, सुनव गा, परलय तो नइ, फेर अतिचार, अनाचार, अनीति-अधरम के बाढ़ तो आइच गे हे।
मितान! अब कहइयामन के का हे- वोमन तो कहिबे करथें- पाप तो सबो जुग म होवत रहिस। तभे तो पापीमन ल मारे बर भगवान अवतरित होइस। बस फरक इही हे के पहिली राक्छस होवत रहिन। अब तो मनखेमन, धरम-करम के मनइयामन, नीति-नियाव के गोठ करइयामन, धरम के रद्दा बतइयामन, सच के रद्दा म चले के उपदेस देवइयामन तको राक्छसमन कस काम (पाप) करत हें।
सिरतोन! नारी-परानी कहुं सुरक्छित नइये। देखत हव ना नान-नान लइकामन सो कइसे अतिचार होवत हे। घोर पाप होवत हे। अउ का देखे-सुने बर बांचे हे कलजुग म। रोज के डरडरावन बात सुने बर मिलथे। जानवर ल मनखे बने म सदियों लग गे, फेर मनखे ल जानवर बने म दू घड़ी नइ लगत हे। बेटी तो बेटी होथे। फेर वाह रे सुवारथ के राजनीति! बेटी के इज्जत लुटइया हैवानमन ल बचाय खातिर ‘धरमÓ ल आगू करे बर घलो नइ चूकिन।
मितान! देस-समाज म सांति, भाईचारा, सद्भाव, एकता बनाय बर बछरों लग जथे। फेर, बिगाड़े म समे नइ लगय। समे ह उलट गे हे। बने ह गिनहा अउ गिनहा ह बने होगे हे। सियानमन तो नेकी करे बर कहिथें। फेर, कलजुग के अइसे छांव परत हावय के नेकी करइया ल नुकसान घलो उठाय बर परत हे। त अब का सियानमन ‘बने काम ह हरदफे बने नइ होवयÓ कहे बर धर लंय!Ó
सिरतोन! रेती चोरहामन के बड़ हल्ला मचिस त एकझन साहेब ह वोकरमन के धरपकड़ अउ मोटर-गाड़ी, मसीन के जब्ती करे के सुरू कर दिस। फेर, दू-चार दिन म सरकार ह वोला निलंबित कर दिस। फाइदा का होइस नेकी करे के! फेर, वोहा राजनीति म आ जही त वोकर भला हो सकत हे। काबर के चुनई लड़ के कोनो घाटा म नइ रहय, सिवाय जनता के। फेर, साहेब उप्पर ईमानदारी के ठप्पा लग गे। आज के समे म राजनीति म ईमानदार मनखे के भला का जरूरत हे!
मितान! ईमानदार ल ‘बेवकूफÓ समझत हें। ‘दू नंबरÓ के काम नइ करंय तेन ल ‘भोगवाÓ कहत हें। ‘पइसा फेंक, तमासा देखÓ के समे म ईमान-धरम के कुछु ‘मोलÓ नइ रहि गे। अइसे गोठियावत दूनों मितान घर डहर चलते बनिन।
जब पइसा अउ पइसावालेमन सबकुछ होगे हें। पइसावालामन के खोट ल देख के घलो लोगनमन आंखी मूंद लेथें। वोकरमन के बढ़ई मारथें, गुन गाथें, त अउ का-कहिबे।
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