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बाल बिहाव ह समाज बर कलंक ए

locationरायपुरPublished: Mar 13, 2019 07:07:01 pm

Submitted by:

Gulal Verma

ए सो गवन झन देबे ओ बूढ़ी दाई

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बाल बिहाव ह समाज बर कलंक ए

‘ए सो गवन झन देबे ओ बूढ़ी दाई, मंय बांस बिरहा कस डोलत हंव ना,Ó जइसे गीत ह समाज के सही हाल-चाल ल बताथे-दिखाथे-सुनाथे। कम उमर के नोनी ह अपन ददा-दाई, भइया-भउजी, बबा- बूढ़ीदाई जइसे परिवार के लोगनमन से बिनती करे हे के मोर बिहाव अभी झन करव, मोर उमर नइ होय हे। ऐहा बड़ दुख अउ चिंत-फिकर के बात आय कि जुन्ना समे ले चलत आवत ‘बाल बिहावÓ के परथा आज के सिक्छित, आधुनिक अउ भौतिक जुग म घलो चलत हे। कम उमर म बिहाव होय ले नोनी ल जादा तकलीफ सहे बर परथे। एक समे तो अइसे रिहिस के गरभ म लइका रिहिते रिस्ता जोड़ देवंय। नान-नान लइकामन ल कोरा म धरके, पररा म बइठार के मंडवा म घलो घूमंय।
पहिली लइका बिहाव होय के परमुख कारन लोगन के असिक्छा रिहिस। असिक्छित लोगन अंधबिसवास, रूढि़वादी परंपरा म जकड़े रहंय। आज बाढ़त सिक्छा के सेती बाल बिहाव बहुतेच कमतिया गे हे। कानून बन गे हे। कहुं बाल बिहाव होय के पता चलथे त पुलिस-परसान रोके बर पहुंच जथे। बाल बिहाव करइयामन ल जेल घलो होथे। बाल बिहाव ल चुम-चुम ले रोके बर चाही।

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