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गरब के गरेर म झन झपाय कलाकार

locationरायपुरPublished: Apr 03, 2019 04:39:47 pm

Submitted by:

Gulal Verma

लोककला

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गरब के गरेर म झन झपाय कलाकार

छत्तीसगढ़ के लोककला, संस्करीति, परम्परा ह कई किसिम के हावय। जेकर रंग-रूप, सुवाद ह सब्बो के मन ल मोह लेथे। इही पाय के गांव-सहर, देस-बिदेस म छत्तीसगढ़ के कला के खास पहिचान बने हावय। जउन ल बनाय अउ बढ़ाय के बने-बने बूता इहां के छोटे-बड़े कलाकारमन एके संघरा करत हावंय। अइसनेे कलाकार म अरुन यादव के नाव तको जुड़े हावय। जउन ह पाछू पैंतीस बछर ले लोकमंच म जुड़े हावय।
गुं डरदेही के तीर म बसे गांव देवरी के रहइया अरुन यादव (अरुण) ह अपन महतारी स्व. सरजा उमेदी यादव ल पहली गुरुमानथे। अउ महतारी के मया ल बगरावत कहिथे कि ‘मेरा आंसू सिर्फ पानी का एक कतरा था, मां के दामन में गिरा और गिरकर सितारा हो गया।Ó अइसन सुग्घर बिचार रखइया कलाकार अरुन यादव संग होय मुंहाचाही अइसे मजेदार हावय। वोकर जिनगी अउ कलाकारी ल लेके सुवाल घलो पूछेंव।
अरुन यादव बताइस- नानपन ले हमर छत्तीसगढ़ के लोकनिरित्य नाचा ह मोर हिरदे अउ आंखी म रचे-बसे हावय। जेला बचाय अउ बढ़ाय बर 1984 म अपन गांव देवरीकला म ‘झाझरÓ संस्था बना के अपन लोककला यातरा ल सुरू करेंव। तेन ल आज ले बनाय राखे हंव।
अरुन कहिस- कलाकार के असल कमाई मेहा वोकर कला म बढ़हर अउ निखार ल मानथंव। मेहा छोटे से गांव अउ बड़े-बड़े नगर-महानगर म अपन कला ल देखावत आज छत्तीसगढ़ के नामी लोक गायिका कविता वासनिक के संस्था अनुरागधारा म जुड़़ गे हंव। इहां तक पहुंचत-पहुंचत मोला केदार, साधन, जयंती यादव, बैतलराम साहू, कुलेस्वर ताम्रकार, पद्मसिरी ममता चंदराकर, रजनी रजक, दुरवासा टंडन, बिंदु देवांगन, परेमचंद माथुर जइसे नामी कलाकारमन के संग कला देखाय के मौका मिलिस। इही मोर असल कमाई आय।
अरुन बोलिस – मोला बड़े-बड़े कलाकारमन संग जोड़े के काम गुरु नीलमदास मानिकपुरी ह करिस। इहीमन मोला सिखाइन कि कला के दुनिया म उही कलाकार रचे-बसे पाही जउन ह भूख-पियास अउ नींद-अराम ल सहे के ताकत रखथे। खुद ल दुख म डार के घलो कलाकार ह दरसकमन ल हंसाय के हूनर रखथे। ए हुनर ह तियाग के ताकत म मिलथे। रियाज अउ अभ्यास करे म मिलथे। घर-परिवार ल तको छोड़े बर परथे।
अरुण कहिस – कलाकार जब घर ले निकलथे त पहिली तो घर के लोग-लइका सियानमन ल भगवान भरोसा छोड़ देथे। दूसर नवा जगा म जाके कारयकरम देय के डर तको मन म समाय रहिथे। काबर कि मान-अपमान कलाकार बर बड़ मायने रखथे। मेहा घर ल छोड़थंव त मोर मन म का पीरा रहिथे तेला ए ढंग ले बताय बर चाहंू- ‘रास्ते भर बस एक ही गम मेरे साथ था, जब मैं घर से चला तो मेरा बच्चा उदास था।Ó
अरुण कहिस- हमर छत्तीसगढ़ म कईझन नाटक लिखइया होय हें। फेर, मोला सबले जादा स्व. परेम साइमन के लिखे नाटकमन भाथे। उंकर लिखे छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी नाटक ह देखइयामन के हिरदे ल छूथे। आज हमर बीच म साइमनजी नइये, फेर वोमन अपन कला के बल म संदेसा छोड़े हवय कि कलाकार ल अपन किरदार अइसन सुग्घर निभाय बर चाही कि परदा गिरे के बाद घलो दरसकमन वोला सुरता करत ताली बजावंय।
अरुन बताइस- मोला सिवनाथ बने नदिया, जोगनी, कारबा बनता गया, दुलहन मांगे दहेज फिलिम, टेलीफिलिम म काम करे के मौका मिलिस हावय। जेमा महेस वरमा अउ उत्तम तिवारी के निरदेसन म अपन अभिनय कला ल मेहा देखाय हावंव।
अरुन कहिस- स्टेज म जादा मजा मिलथे। काबर कि अलग-अलग रूप देखाय के संगे-संग दरसकमन से सीधा जुड़़े के मौका स्टेज म मिलथे। फिलिम म काम करई ह स्टेज ले सरल लागथे। इही पायके मन म संतोस पाय बर अउ असल कलाकारी देखाय के असली मजा मेहा स्टेज ल मानथंव।
अरुन बताइस- बछर 1984 म रंग झाझर संस्था ले सुरू होय मोर कला यातरा गंवई के तिहार (हीरू खपरी), रस मंजरी (जोरा तरई), छत्तीसगढ़ के फूलवारी (आमा लोरी), मया के संदेस( दुरूग), छत्तीसगढ़ दरसन जंवारा (कलंगपुर), अनुराग धारा (राजनांदगांव) अउ लोक कला जत्था (गुंडरदेही) के मंच म मोला अपन लोक कला ल दिखाय के मौका मिलिस।
अरुन कहिस- अपन कलायातरा म मेहा कतको कलाकारमन संग काम करे हंव। वोकरमन संग मोला किसिम-किसिम के बेवहार देखे ल मिलिस। जेला सुरता करत मेहा बताय बर चाहत हंव के कतको बड़े कलाकार बने के बाद घलो गरब ले दूरिहा रहे बर चाही। गरब करइया कलाकार ल गरत म जावत देर नइ लागय। अउ ते अउ गरब करइया कलाकार ल मान-सम्मान तको लोगन नइ देवंय।
अरुन यादव से गोठ-बात करके बिदा ले के बाद मेहा मनेमन सोचेंव कि वोहा सही कहिस हवय कि कलाकार ल कभु गरब के गरेर म नइ परे बर चाही। काबर कि ‘इंसान के गुरुर की औकात बस इतनी है, न पहली बार खुद नहा सकता है न आखिरी बार।Ó
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