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देवतामन के भुइंया म रोज लूटावत हे नारी के अस्मत

locationरायपुरPublished: Apr 15, 2019 06:24:14 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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देवतामन के भुइंया म रोज लूटावत हे नारी के अस्मत

प ता नइ मनखेमन सभ्य समाज के संस्कार ल भुला गे हावंय या फेर अपन पुरखा जानवरमन के गुन ल अपनाय बर धर ले हावंय। दुराचारीमन ल अतको खिलाय नइये कि हमर भारतीय संस्करीति, संस्कार, वेद-पुरान, धारमिक ग्रंथ, साधु-संत, रिसि-मुनिमन नारी ल ‘देवीÓ कहे हें। सक्ति के देवी दुरगा, गियान के देवी सरसती, धन के देवी लछमी अउ न जाने कतकोन देवी बताय हें। एक पइत दिमाग लगाके बिचार करंय, देवी मइयामन ल दिल से सुरता करंय त छनभर म अपन करनी बर पछतावा हो जही। आज देसभर म माइलोगिनमन ऊपर आए दिन अब्बड़ जुरुम होवत हें। तभो ले अपराधीमन ल बचाय बर कोनो न कोनो वोकरमन के हितवा आके खड़े हो जथें। कोनो ल वोट के चिंता हे त कोनो ल बदमानी के।
सरकारमन महिला उत्थान के नगारा बजात हें। अखबार म बड़का-बड़का बिग्यापन देके नारी सुरक्छा के लम्बा-चउड़ा वादा करत हें। फेर, देस के राजधानी से लेके सहर, कस्बा, गांव-गंवई कोनो जगा नारी सुरक्छित नजर नइ आवंय। अरे! चलती बस म दुस्करम होवत हे। एक जगा तो छेड़छाड़ के विरोध करइया महतारी-बेटी ल चलती रेलगाड़ी ले फेंकदीन। ए घटना ह अखबार, टीवी म छागिस, तेकर सेती लोगनमन ल पता चलगे। नइते, देसभर म अइसने हाल हे। नारी ह न घर म सुरक्छित हे, न बाहिर म। सरकार ह अपराध रोके के दावा कतकोन करय, फेर सिरतोन बात ए हे कि अपराधीमन के मन म पुलिस अउ कानून के चिटिकभर भय नइये। वोमन जानथें के गलती से खुदनखास्ता पकड़ा गें त कानून म छेदा के चलत बच निकलहीं।
देवतामन के भुइंया भारत देस म नारीमन ऊपर अतिचार, अनाचार अब्बड़ होवत हें। अइसन कोन करत हे? का मनखे ल अपन बनमानूस होय के सुरता आ गे हावय? बहुचेत सोचे के बाद घलो ए समझ नइ आवत हे के जानवर ह मनखे बनत हे के, मनखे ह जानवर! अब तक जानवर के मनखे बने के बात म दुविधा रहिस, फेर धरम-करम के मनमाने मनइया देस म नारीमन के होवत दुरदसा ल देख-सुन के लागथे जानवरेच ह मनखे बने हे, तभे अपन गुन ल नइ भुलावत हें। कहिथें के रंग-रूप भले बदल जाए, फेर जानवर के बेवहार कभु नइ बदलय! पुरुस परधान समाज म नारी ल पांव के भंदई समझथें।
ऐला हमर देस के बदकिस्मती माने जाही कि नेतामन हमर भगवान बन बइठे हें। अपराधीमन ल बचाय बर दउड़ परथें। अपराधीमन कोनो न कोनो राजनीतिक दल से जुड़े रहिथें। नइ जुड़े रहंय तेकरमन बर समाज अउ जात वालेमन आगू आ जथें। नेतामन ल दल, समाज या फेर जात के बदमानी के फिकर परे हे। नारी-परानी के चिंता करइया कोनो नइये।
माइलोगिनमन के सम्मान से होवइया खिलवाड़ ल रोके बर कानून ल अउ कड़ा बनाय के जरूरत हे। अलग अदालत बनई ह तो अउ घातेच जरूरी हे। अइसन अदालतमन म दू-तीन महीना म मामला के निपटारा हो जाए अउ अपराधी ल कठोर से कठोर सजा मिल सकय। अइसन होवई ह मुसकुल नइये। बस, राजनीतिक फायदा-नुकसान ल एक कोटना म फेंक दंय। फेर, देस म अइसन होवत नइ दिखत हे, त अउ का-कहिबे।
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