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ए राजनीति खेल-तमासा, मुफत के माल बांटना

locationरायपुरPublished: May 13, 2019 07:30:55 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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ए राजनीति खेल-तमासा, मुफत के माल बांटना

ए कठिन जुन्ना फिलिम हे, ‘लाखों में एक।Ó ऐकर गाना हे – ‘एक मजे की बात सुनो, एक यतीम सा लड़का। आज बना वो लखपति, कल तक था जो कड़का। ये दुनिया, ये दुनिया खेल तमाशा, ये दुनिया खेल तमाशा। अरे घड़ी में तोला, घड़ी में मासा, ये दुनिया खेल तमाशा।Ó जुन्ना समे ल छोड़व। अब तो ए गाना के एक-एक सब्द, एक-एक बोल ह आज के राजनीति, चुनई, राजनीतिक दल अउ वोकर नेतामन के कथनी-करनी, कसमें- वादे, घोसना-आस्वासन, चाल-चलन-चरितर ऊपर एकदेमच फिट बइठथे।
वइसे हवा अउ पानी ए दूयेठिन अइसे जिनिस हे, जउन ल भगवान ह सबला फोकट म देय हे। जब दुनिया म अतेक मारामारी नइ रिहिस त फल, साग-भाजी, अनाज घलो फोकट म मिल जावत रिहिस। खवइया कम अउ जिनिस जादा। एक समे तो जमीन घलो फोकट म मिलत रिहिस। तब लोगन ल जमीन के मोह नइ रिहिस। जउन जिहां चाहंय घर बनाके रहंय अउ जब मरजी अपन झोली-झंडा उठाकर दूसर जगा चल देवंय। कोनो ककरो से कुछु नइ कहत रिहिन।
ये दुनिया म अइसन लोगन घलो होय हें जउन कोनो अनजान मनखे ल जेवन कराय बगैर खुद जेवन नइ करत रिहिन। राजा रंतीदेव जइसे घलो लोगन होय हें जउन बिकट अकाल-दुकाल के समे घलो खुद भूखन रहिगे, फेर अपन दुआरी म अवइया कोनो मनखे ल भूखन नइ जावन दिस।
अब के ‘राजाÓ याने ‘नेताÓ घलो कम नइये। मुफत के माल बांट के अपन वाहवाही कराय बर चाहथें। पहिली नेतामन फोकट म लुगरा, चद्दर, कमरा बांटत रिहिन। चुनई म फोकट के दारू बांटत रिहिन। चुनई के बाद मुफत के अनाज बांटत रिहिन। कोनो-कोनो नेतामन तो मुफत म टेलीविजन अउ कम्प्यूटर बांटिन। अरे भइया, गरीबमन के छोड़व, खाये-पिये-अघायेमन ल मुफत के लैपटॉप घलो बांटिन। अब के सरकारमन मुफत म पइसा बांटत हे । (करजा माफी, बइंक खाता म सिद्धो पइसा जमा)
फोकटइया के जिनिस बर काकर मन नइ ललचाही। फेर, मुफत के जिनिस लेय के बाद म कतकोन मनखेमन ल भिखमंगा होय के अहसास होथे। अउ इही अहसास ह वोमन ल वोकरेचमन के नजर ले गिरा घलो देथे।
चलव, सरकारी मुफतबाजी के गुना-भाग समझिंन। सरकार कुछु जिनिस मुफत म देथे। वोकर बर पइसा कहां ले आथे? जनता से। जनता के खिंसा ले पइसा निकल के सरकार तीर जाथे अउ उही पइसा ल जिनिस के रूप म बांट देय जाथे। जइसे आपमन कोनो बाबा ल परसाद चघाथव, अउ वो परसाद म से थोकिन अपन तीर रखथे अउ उही ल बांटत रहिथे। यानी बाबा के खिंसा ले का गिस?
जब सरकारमन लोगनमन ल मुफत के आदत लगा दिही त देस के का हाल होही? मुफत के माल मनखे ल कामचोर बनाथे – ए बात ल बापू कहत रिहिस। फेर, आज कोनो बाबू के सिद्धांत, आचरण, बिचार ऊपर अमल करत दिखई नइ देवंय, त अउ का-कहिबे।
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