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घर- परिवार बर समे निकालव

locationरायपुरPublished: Jun 14, 2019 05:27:18 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

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घर- परिवार बर समे निकालव

प इसा कमाय के दऊड़ म सब कुछ पीछू छूट जावत हे। गोठियाय के समे नइये मनखे करा। एक जमाना रहिस जब गोठियात गोठियात मुंह ह घलो नइ पीरात रहिस। दिनभर संगी साथी अउ अपन परिवार करा हांसत- गोठियात समे बीत जाय। मनखे करा सब काम बर पूरा समे रहय। खाय तभो बरोबर पलथिया के चार घव परोसा लेके अउ संग म खवइया ल अगोर-अगोर के खाय। संझा काम-बुता करके संगी जवरिहा करा हंसी-मजाक करत रहय। कुछु बर समे कम नइ परत रहिस। बरात घलो जाय त गाड़ा म चार दिन पहिली ले। फेर, आज पइसा कमाय अउ आघू बड़े के चक्कर म मनखे अपने बर समे नइ निकाल पात हे।
लइका जवनहा सियान तीनो3 करा समे नइये। अब तो जब ले मोबाइल आय हे सियानमन घलो ब्यस्त रइथें। संगी हो हांसी आथे आज के लइका कई पइत अपन ददा घलो ल नइ चिन्ह पाय। काबर के लइका जब तक सूत के उठथे ददा आफिस चल दे रहिथे अउ ददा जब आफिस ले आथे त लइका सूत जाय रहिथे। अइसन ह तो जीते जी मरे के समान ए।समे रहत तैं हांस ले, समे रहत गोठिया। होत बिहान जलाय तंै, का मतलब के दीया।
मनखे के दिनचरया अतेक बदल गे हे के आन के सुख-दुख तो दूरिहा अपन घर-परवार बर समे नइ दे पावत हे। एके घर म रहिके दू सदस्य आपस म वाट्सअप म बात करत हे। गोसाइन -गोसइया एके कुरिया म रहिके फेसबुक म कमेंट करत हें। कोकरो गोठ सुने के बेरा नइये। बेटा कथे मोर करा समे नइये बाप के गोठ सुने बर। बाप कथे मोरो करा समे नइये बेटा के गोठ सुने बर। सास करा बहू के गोठ अउ बहू करा सास के गोठ सुने के टाइम नइये।
आन के न तो दुख म जावत हे न तो सुख म। त का भगवान ह आके सबला समे देवय। लइका के ऊपर पढ़ई के अतेक बोझा डार दे जावत हे के खेलकूद बर समे नइ निकाल पात हे। खाय-पीये म कोकरा धियान नइये। खड़े-खड़े हड़बडात खात हे। जाना माना जिनगी के रेल छूटत हे। पानी घलो सुभित्ता बइठके नइ पियत हे। लचार ददा-दाई के सेवा करे बर घलो समे नइये। वोकरो बर नौकर लगाय हे। सेवा अउ पूजा बर कम से कम समे निकालव नौकर झन लगाव।
मरनी-धरनी एके दिन म हो जावत हे। बर-बिहाव झट-पट निपट जावत हे। सही-गलत सोचे के घलो के बेरा नइये। मनखे दू मिनट म नहा डारत हे। पूजा के नाव म दूठन अगरबत्ती जलात हे। जेमा एकठन ह बने ढंग ले जलत घलो नइये। धियान तो करबे नइ करय। योग करे के तो बाते नइये। मन बहलाय बर मुड़पिरवा मोबाइल हे। मनोरंजन करय चाहे झन करय आंखी, कान ल जरूर खराब करथे।
समे निकालके बुढुवा ददा-दाई के सेवा करव। स्वास्थ्य के परति सजग होवव। इतमिनान बइठके खावव- पीवव। धरम -धियान बर समे निकालव। परवार म सबके गोठ सुनव -समझव। सबके दुख म सामिल होवव। सुख म आनंद मनावव। अइ ह सही मायने म जिनगी कहाथे।
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