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कहां नदागे गुरु-चेला के सुग्घर संबंध के जमाना ह

locationरायपुरPublished: Jun 21, 2019 05:17:19 pm

Submitted by:

Gulal Verma

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कहां नदागे गुरु-चेला के सुग्घर संबंध के जमाना ह

मितान ! एक जमाना रिहिस जब पढ़हइया लइकामन अपन ददा ले जादा गुरुजीमन ल डररावत रिहिन। अउ, गुरुजीमन घलो वोमन ल अपन औलाद ले जादा मानत रिहिन। अब तो जमाना उलटा होगे हे। पढ़हइया लइकामन अपन गुरुजी ल दबकारत हें। हद तो ए होगे हावय के गारी-गल्ला, मारा-पीटी तको करत हें। ऐहा गलत संगति, आधुनिकता अउ बिदेसी संस्करीति के कुपरभाव के सेती होवत हे।
सिरतोन! संत कबीर के कविता हे – ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय।Ó इस्कूलमन म ए कविता ल पढ़ाय जाथे। गुरु ह भगवान ले बड़े होथे तेन ल बताय-समझाय जाथे। फेर, ए कविता के संगे-संग गुरु के मान-सम्मान ह अब सतयुग के नैतिकता, आदर्स कस जुन्ना परत जावत हे।
मितान! देस म गुरुजीमन के तनखा जइसे-जइसे बाढ़त जावत हे, वोइसने-वोइसने समाज म वोकरमन के दुरदसा, दुरगति, अपमान-अपजस ह घलो बाढ़त जावत हे।
सिरतोन! वोकरे चेलामन गुरुजीमन के ‘आरतीÓ उतारे के सुरू कर दे हें। अब चेला जब मरजी गुरु ल ऐसे पीट-पीट के पटक देथें, जइसे धोबी मइलाहा कपड़ा-लपता ल डंडा से पीटथे। असल म गुरुजीमन के ए हालत के जिम्मेदार खुदे उहीमन हावंय। बहुतेच-बहुचेत तनखा म वोकरमन के पेट अतेक भर गे हावय के अब वोमन ल अपन चेला-चपाटीमन ल पढ़ाय-लिखाय म अब्बड़ आलस आय बर धर लेहे। विस्ववविद्यालय के गुरु तो ए बात बर अपन पीठ ठोकत दिखई देथें के ए बछर वोहा कतेक कम क्लास ले हावंय। एक गुरुजी ह कमालेच कर दिस। एकझन लइका के उत्तरपुस्तिका ल जांचे-परखे बगैर वोला अंडा (सून्य) दे दिस। अब कोनो वोकर से पूछंय के भले मनखे हो का अब तुंहरमन के काम सिरिफ लाख-लाख रुपिया तनखा झोके-डकारे भर के रइ गे हे।
मितान ! एकठिन जुन्ना कहिनी हे। एकझन गुरु ह अपन राजकुमार चेला ल अब्बड़ मारय-पीटय। राजा ह ऐकर कारन पूछिस त गुरु बोलिस के मोर बेटा ह अप्पड़ (अनपढ़) रइ जही त सिरिफ एके घर के नकसान होही। फेर, तोर बेटा ल नालायक रइ जही त पूरा राज बरबाद हो जही।
सिरतोन ! अब तो गुरुजीमन के नजर अपनेच लइकामन उप्पर टिके रहिथे। अपन गदहा-नाकाबिल औलादमन ल जइसे-तइसे सिक्छा तंत्र म खुसेर के वोहा अब्बड़ खुस हो जथे।
पहिली जमाना के गुरु कम वेतन म अपन परिवार पालय-पोसय अउ समाज के लइकामन ल लायक बनावत रिहिन। अब के गुरुमन ल अब्बड़ तनखा चाही। वोकर घर भरे बर चाही। वोकरमन के बला से इस्कूल-कालेज- विस्वविद्यालय म पढ़हइया लइकामन के गियान जाय तेल लेय बर। ऊपर से जब-तब तनखा बढ़ाय पर धरना-परदसन, रैली-जुलूस निकाले ूूबर चेतावनी-धमकी देवत रहिथें। कक्छा के लइकामन ल कतेक पढ़हइस, ऐकर से वोमन ल कुछु लेना-देना नइ रहय।
जब गुरुजीमन बर सिक्छा देवई ह नौकरी करई अउ तनखा झोंकई भर रहि गे हे। समाज म दिनोंदिन नैतिकता गिरत हे। सबो जिनिस ले पइसा ह ऊपर होगे हे, त अउ का-कहिबे।
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