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लिमऊ अउ मिरचा के पीरा

locationरायपुरPublished: Jul 12, 2019 05:16:21 pm

Submitted by:

Gulal Verma

गुने के गोठ

cg news

लिमऊ अउ मिरचा के पीरा

ब रहों महीना बड़े बिहनिया किंजरे फिरे के मोर आदत हावय। ऐकर ले तन ल ताजा हवा अउ मन ल किसिम-किसिम के बने-बने बिचार तको मिलथे। काली के बात आय। मेहा रोज कस बिहिनिया चार बजे किंजरे बर निकले रेहंव। उही बेरा म किंजर- किंजरत ककरो सिसक-सिसक के रोये के आवाज सुने म अइस। मेहा वो कोती गेंव त एकठिन धागा म गुथाये लिमऊ अउ मिरचा ल रोवत देखेंव। वोमन ल देख के मोर मन म दया आगिस। अपन दूनों हाथ के अंजरा म वोमन ल उठायेंव अउ पूछेंव- का पाय के तुमन अतेक रोवत हो?
मोर सुवाल ल सुनके लिमऊ ह भड़क गे अउ गुस्सा म थरथर कांपत बोलिस- मनखेमन के करतूत ल भोगत -भोगत हमन रोवत हंन। सूजी धागा म भोंगाय, गुंथाये हमन ल देखथस न । तुहींमन लिमऊ-मिरचा ल सूजी धागा म गुंथ के घर-दुकान के दुवारी अउ गाड़ी-घोड़ा म लटका देथो।
हां बात तो तोर सही आय कहत मेहा लिमऊ अउ मिरचा ल सहलावत बोलेंव -बने हरियर-हरियर अउ लाल-लाल मिरचा के संग म परियर-परियर लिमऊ ह धागा म गुंधाये रइते त देखबे त अइसे लागथे जानो-मानो नवां-नवां दूल्हा-दुल्हिन के गंठजोड़ होय हवय। मोर ए बात ल सुनके मिरचा ह भडग़ गिस अउ बोलिस- दूसर के दुख-पीरा म हंसइया अउ दूसर ल गिरत देख के हंसइया मनखे तुमन तो अइसने सोचबे करहू। फेर, कभु सोचे हो कि खुद के गोड़ म कांटा गड़थे त कतका पीरा होथे। इलाज कराय बर डाक्टर करा जाथो त सूजी लगाय के बेरा तुमन के पुठेरा कांप उठते।
अउ हां, एक बात अउ कान खोल के सुन लो तुमन। भूत-परेत, जादू -मंतर के चक्करर म पड़के अपन सद्गति के आस म मिरचा अउ लिमऊ ल घर- दुकान के दुवारी म टांगथव अउ दूसर दिन उतार के वोला फेंक देथव। कभु सोचे हव कि ए लिमऊ अउ मिरचा ह किसान के पसीना ओगरावत मेहनत के बल म उपजे हावय। ऐला उपाजाय खातिर, पाले-पोसे बर पानी, खातू पलाय हे। ए सब काम बर बिजली तको खरचा हो हे। तुमन अइसन कीमती जिनीस ल अपन सुवारत अउ अंध बिसवास म परके पहिली मोहाटी म टांगथव, फेर दूसर दिन सड़क म फेंक देथव। इही पाय के तुंहर दुरगति होवत हे।
मिरचा के गोठ ल सुनके हुकारू भरत लिमऊ ह बोलिस -हव मिरचा बहिनी, सही काहत हस। मनखेमन सोचथे कि लिमऊ अउ मिरचा टांगे ले दुख-पीरा दूरिहा जाही। फेर, थोरकिन हिरदय म हाथ रखकर सोचय कि अइसन काम करे ले तो उल्टा मनखेमन ल सराप मिलथे। भुइंया के भगवान किसान के करम के फल ल मनखेमन कचरा पेटी, सड़क, नाली म फेंक देथें। रद्दा म परे-परे कतकोझन के जूता-चप्पल अउ गाड़ी-घोड़ा म हमन ल रमजाय बर पऱथे। ए अरथ म मनखेमन हमन ल कतका दुख-पीरा पहुंचाथव।
लिमऊ के गोठ ल बीच म टोंकत मिरचा ह बोलिस- लिमऊ भइया मनखेमन के तो आदतेच आय काम निकलत ले मीठ-मीठ अउ काम निकलते साठ करु-करु। अपन सुवारत ल साधे खातिर मनखे जात जीव -जन्तु ल बलि देहे म तको दया नइ करंय। मेबा तो कहिथंव- पढ़े-गुने मनखेमन ल अंधबिसवास म परे के छोड़ मेहनत के मरम ल समझे बर चाही। लिमऊ – मिरचा लटका दे ले सद्गति नइ मिलय। सद्गति, परगति तभे मिलही जब मनखेमन जीव-जन्तु के उपर दया करहीं। अपन कमई के पाई-पाई ल दीनहीन, गरीब, असहाय मनखे सेवा साधन कस सही काम-काज म लगाहीं।
हां, हां मिरचा बहिनी, बने कहिथस। लिमऊ ह थोरकिन जोरहा आवाज म बोलिस- अरे मनखे के जात, लिमऊ- मिरचा लटका देय म चार के चैसठ नइ मिल जाय। मोर तो इही कहना हे कि अगर लिमऊ- मिरचा रोज खरीदव, संझा बिहिनिया खरीदव, काबर की ऐकर बेचइया के इही ह सहारा आय। फेर, खरीदे लिमऊ- मिरचा ल दुवारी म टांगे बर छोड़ दव। ऐला कोनो गरीब, मजदूर ल दान देवव। ऐकर से दू झीन ले आसीस मिलही। पहिली तो जउन ह लिमऊ- मिरचा बेचत हे तेकर से अउ दूसर जउन गरीब ल ऐला तुम दान देहू वोकरे से आसीस मिलही। अउ हां, तुमन ल सांति तको मिलही। ए सोच के कि हम अपन कमाई ल रद्दा म, नाली म, कचरा म नइ फेंके हन, बल्कि बने काम म लगाय हन। कइसे मिरचा बहिनी बने काहत हंव न।
हां, हां लिमऊ भइया, सही काहत हस। मनखेमन ल अपन सोंच ल बदले बर चाही। मिरचा ह गुरारवत बोलिस- अरे मनखेमन थोरकिन आंखी ल तो खोल के देखव। दुनिया कहां ले कहां पहुंच गे हवय अउ तुमन घर-दुवारी, गाड़ी-घोड़ा म लिमऊ- मिरचा टांग के अपन समे, पइसा ल गवांवत,मन ल कमजोर बनावत हो। जम्मोझन आंखी खोलव अउ बता दव कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा, अंध बिसवास के चक्कर म पढ़ही ते बनही पक्काा कोढिय़ा।
लिमऊ अउ मिरचा के गोठ ल सुनत-सुनत अंजोर होगे।। मेहा वोमन से बिदा ले के घर कोती लहुटत रहेंव। तभे देखेंव के एकझिन डोकरी दाई ह सड़क म परे लिमऊ अउ मिरचा ल बीनत अपन टुकनी म सकेलत जावत हे। बीच-बीच म मुच-मुचावत हांसत तको हे। वोकर तीर म जाके पूछेंव- सड़क म फेकाय, रमजाय लिमऊ- मिरचा ल काय करथस ओ दाई?
वो दाई ह बताइस की ऐला धोके सुखो देथो अउ तहां ले दार सांग म फोरन दे के बेरा, आमा, आवंरा, करोंदा के चटनी संग पिसथंव अउ अड़बड़ मजा लेवत हमन माई पिल्ला ऐला खातन। वोकर गोठ ल सुन के मोर आंखी फाट गे। मेहा पूछेंव, फेर लिमऊ -मिरचा ल बीनत-बीनत मुचमुचावत हांसथस काबर? मोर सुवाल सुनके वोहा ठठाके हांसिस अउ बोलिस- असल म लिमऊ- मिरचा कस कीमती जीनिस ल फेंकइयामन के बुद्धि ऊपर मोला हंासी आ जाथे। अइसनमन के अकल म पथरा पर गे हे अउ अकल के दुसमन ऐमन बनगे हवय, तइसे मोला लागथे।
महतारी संग गोठ-बात ल आगू बढ़ावत मेहा पूछेंंव- कस ओ दाई, लिमऊ- मिरचा ल तो फेंकइयामन भूत, परेत अउ जादू-टोना भगाय के टोटका करके फेंके रहिथे। ऐला बीनत अउ खाय के बेरा डर नइ लागय? मोर ए सुवाल ल सुनके डोकरी दाई फेर मुचमुचाइस अउ बोलिस- देख बेटा मेहा किंजर-किंजर के रद्दा म परे लिमऊ-मिरचा ल बीनथंव। काकरो संग लूट-खसोट, चोरी-चमारी तो करंव नइ, त फेर का के डर। अइसे हे बेटा, ईमानदारी से काम करइया मनखे के तो भगवान ह तको कुछु नइ बिगाड़ सकय। मेहा तो ईमानदारी ले मेहनत, मजूरी करथंव। भला भूत, परेत के टोटका ह मोर का बिगाड़ही। तें अब बात-बात म मोला झन बिल्होर। अपन काम ल करन दे।
डोकरी दाई के गोड़ ल छूके पांव परेंव अउ मनेमन म सोचत घर लौटेंव कि लिमऊ ह काली माई के गहना आय, कतको पूजा-पाठ म चढ़ावा चढ़थे, अइसने मिरचा ह अमीर-गरीब के निवाला के सुवाद बढ़इया आय। अइसन जीनिस ल फेंकई ह अपन पांव म कुदारी मरई कस बूता आय।
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