रायपुर

छत्तीसगढिय़ामन देखहीं, तभे छत्तीसगढ़ी फिलिम चलहीं!

का-कहिबे…

रायपुरJul 12, 2019 / 05:28 pm

Gulal Verma

छत्तीसगढिय़ामन देखहीं, तभे छत्तीसगढ़ी फिलिम चलहीं!

क ज ब हमन छत्तीसगढ़ी के बात करथन, त बात छत्तीसगढ़ी फिलिम के घलो होथे। छत्तीसगढ़ के फिलिम बनइयामन म हिम्मत हे, ऐला सबो देखत हें। परदेस म छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी फिलिम के हालत जइसन भी हे, फेर बनइयामन बनावत हें। कलाकारमन सिरजन करत हें। फेर, इहां के लोगनमन म दिनोदिन ए आदत बाढ़त जावत हे, वोमन छत्तीसगढ़ी फिलिम के तुलना हिंदी फिलिममन से करथें। फेर, जादाझन छत्तीसगढिय़ामन तो छत्तीसगढ़ी फिलिम तको नइ देखंय। बगैर देखेच अपन बिचार थोपथें।
कतकाझन छत्तीसगढिय़ामन छत्तीसगढ़ी फिलिम देखत होहीं, बड़ मुसुकल से सौ म एकझन। बाकी 99 झन के का? जउन देखथें वोकरमन के दिल म छत्तीसगढ़ बसथे। छत्तीसगढ़ी से परेम करथें। देखे अउ सुने म फरक होथे। सबो छत्तीसगढिय़ामन फिलिम देखहीं त फिलिम ल सुफल होय ले कोन रोक सकथे! एदे ‘हंस मत पगली नइते फंस जबेÓ फिलिम ह ऐकर सबले बड़का उदाहरन हे।
सौकिया फिलिम बनई एक अलग बात ए, जेकर छत्तीसगढ़ी भासा अउ संस्करीति के भलई से कुछु मतलब नइये। फिलिम बनइयामन ल छत्तीसगढ़ के संस्करीति अउ संस्कार के सम्मान के खिलाय रखे बर चाही। इहां हिंदी अउ दूसर भासा के फिलिममन के नकल तो करे जा सकत हे, फेर अस्लीलता, फुहड़ता अउ दुअरथी संवाद के कोनो जगा नइये। छत्तीसगढ़ के जनता ल का दिखाय बर चाही, ऐकर जानबा तो छत्तीसगढ़ी फिलिम बनइयामन ल होय बर चाही। कतकोन अइसे फिलिम बनाय हें, जउन ह छत्तीसगढ़ी संस्करीति ले मेल नइ खाय। छत्तीसगढ़ी लोकगीत-संगीत के मिठास नइ रहय। छत्तीसगढिय़ामन ल अपन संस्करीति, लोकगीत, लोकसंगीत, लोक बेवहार ले हटके दूसर जिनिस देखे-सुने बर होही त कतकोन हिंदी, अंगरेजी अउ दूसर भासा के फिलिम हे।
इहां के दरसकमन के पसंद म छत्तीसगढ़ी फिलिम सबसे आखिरी म हे, अइसन काबर हे? भोजपुरी अउ दूसर भासा के फिलिम म बालीवुड के बड़े-बड़े कलाकारमन अभिनय करथें, त छत्तीसगढ़ी फिलिम म अइसन काबर नइ होवत हे? का इहां के निरमातामन नइ चाहंय? जब बड़का-बड़का कलाकारमन काम करथें त दरसकमन फिलिम ल देखथें। इहू कोती सोचे-बिचारे बर चाही। जरूरत इहू बात के हावय के कलाकारमन के सीखे बर संस्था अउ सिखोइया हो। बढिय़ा कहिनी, लोक संस्करीति, गीत, संगीत हो।
जब छत्तीसगढिय़ामन ल न अपन छत्तीसगढ़ी भासा के फिलिम के कदर हे, न अपन कलाकारमन के। कतकोन फिलिम निरमातामन ल न छत्तीसगढ़ी संस्करीति, संस्कार, परंपरा, रीत-रिवाज के चिंता हे, न लोक गीत-संगीत के। हिंदी अउ दूसर भासा के फिलिममन के नकल करत हें। दुअरथी गीत, संवाद, बिदेसी संस्करीति के भेड़चाल म मुड़ी गडिय़ाय चलत हें, त अउ का-कहिबे।

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