scriptनान्हे-नान्हे मनखे | chattisgarhi sahitya | Patrika News

नान्हे-नान्हे मनखे

locationरायपुरPublished: Jul 12, 2019 05:34:20 pm

Submitted by:

Gulal Verma

लोककथा

cg news

नान्हे-नान्हे मनखे

त इहा के बात आय। एक समे म पिरथी ले अगास ह थोरिक उप्पर रहिस। अतकी उप्पर की कोनों वोला हाथ ले छू सके। वो समे म मनखेमन नान्हे- नान्हे राहय। कोनो- कोनोमन थोरकिन ऊंच राहय। वोमन निहर-निहर के रेंगय। वो समे लोगन के जरूरत बहुत कम राहय। जतका रहय वोतके म गुजारा करंय। फेर जोर के राखे के का काम।
वो समे के मनखेमन अब्बड़ सिधवा रहिन। धरती ह अन्न उगले। रूख-राई ह फल-फूल ले लदे रहय। इन्दर देवता मनखेमन के जरूरत के हिसाब से पानी बरसावै। सुरूज देव सुग्घर अंजोर बगरा के मनखेमन के ऊपर उपकार करय। न तो जादा पानी गिरय न कम। चारों कोती सुख के राज रहे।
नान्हे-नान्हे मनखे, नान्हे-नान्हे रूख-राई, हरियर-हरियर खेत, अन्न के भरे कोठार सबोझन हिल-मिल के रहय। ऐकरे सेती जम्मो धरती म खुसहाली छाय रहय।
उही समे एक डोकरी राहय। वोहा चिढ़़चिढ़ही सुभाव के रहय। नान-नान बात म चिढ़़चिढ़ा जावै। वोहा बड़ घमंडीन घलो रहय। अगास ह गजब नीचे रहय। तेकर सेती मनखेमन ल निहर के काम करे बर परय। अइसने निहर के काम करई डोकरी ल बने नइ लागय।
जब डोकरी ह अंगना ल बहारे त वोकर मुड़ी ह घेरी-बेरी अगास म टुकठाक लागय तेकर सेती वोला बढ़ परेसानी होवय।
एक दिन के बात आय। डोकरी अपन अंगना ल बाहरत रहिस। बाहरत-बाहरत वोहा सोचिस, कतका अच्छा होतिस बैरी अगास ह उप्पर चल देतिस। घेरी-बेरी मुड़ी के टकराय ले वोहा बड़ गुसिया जाय। डोकरी ह गुसिया के अपने हाथ म बहरी ल धरीस अउ मुठिया म अगास ल जोर से मारिस। अगास ह गजब जोर से गरज के उप्पर उठ गे। सुरुज, चंदा, चंदैनी सब डररागे।
अगास ह उप्पर उठिस त देवतामन गुसियागे। सुरुज देवता ह अपन ताप ले पिरथी ल झुलसे लगिस। इंदरदेव घलो नराज होगे। वोहा कभु खूब पानी बरसाय, त कभु बरसाबे नइ करे। पिरथी म चारों कोती हाहाकार मचगे।
डोकरी ह सोचय लगिस कि कतेक अच्छा रहिस कि जब अगास ह तीर म रहिस। पानी के जरूरत परय त बादर ल थेरिक हटा देव त पानी मिल जाय। बादर ल थेरिक सरका देहे ले घाम मिल जाए। ए सब सोच के डोकरी ह गजब दुखी होगे। डोकरी ल अपन करनी के बड़ पछतावा होय लगिस। फेर अब का हो सकत रहिस।
आजो मनखे ह उही गलती ल घेरी-बेरी करथे। जेन चीज ह वोकर तीर हावय वोही ल वोहा अपन ले दूरिहा करत जात हे। भुइंया भीतर के पानी ल उत्ता- धुररा निकालत जावत हे। जरूरत ले जादा धरती भीतर के खनिज पदारथ ल खन के निकालत जावत हे। जंगलमन ल काटत जात हे। अउ एक तरह ले मनखे ह अपन विनास ल नेवत हे।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो