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मया के बंधना म बंधाय रहव

locationरायपुरPublished: Jul 19, 2019 04:34:56 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

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मया के बंधना म बंधाय रहव

जिनगी समझउता के नांव रहय। जइसन हालत आवय। वइसन-वइसन अपन आप ल ढाल लेय म ही समझदारी हे। जिनगी ल समझे बर कोनो पढ़े-लिखे के, डिगरी के जरूरत नइये। समझदारी तो अपन अंतस के पूंजी हरय। जेन ह हिरदे ले उपजथे। घर-गिरहस्थी के गाड़ी चलाय बर कोनो असान काम नोहय। सियानमन सहीच करे हे-
माछी खोजे घाव अउ बइरी खोजे दांव।
रिस खाये बुध, बुध खाये परान।
एक कनिक के रिस का नइ करा देवय। तरूवा के रिस मुड़ म चघ जाथे। त कुछु सुझय नइ। अपने ह बइरी कस दिखथे। गोस्वामी तुलसीदासजी सहीच कहे हे-
तब उर कुमति बसी बिपरीता।
हित-अनहित मानहु रिपु प्रीता।
अपन जिनगी ल अपन ढंग ले जीये के सबो ल बरोब्बर हक हे। कोनो बंधना कहुं छंदाय कस लागत हे, त वोला समझदारी ले ढिल कर के सुग्घर उदीम करे बर चाही। सांप घलो झन मरय अउ लउठी घलो झन टूटय। टोटा घलो झन कसाय। अइसन बखत म खूब्बेच सोच- बिचार करे बर चाही। हमर बेवहार वोइसने होय बर चाही, जइसन बत्तीस दांत के बीच म जीभ के होथे-
सुनहु पवन सुत रहनि हमारी।
जिभि दसन महुं जीभ बिचारी।
अलग-अलग जगा रेहे ले मया बाढ़थे अउ नांव घलो चलथे। बोहावत पानी ह फरियर होथे अउ उही पानी सकलाय रहिथे त मतला जथे। एक जगा रेहे ले बरतन-भाड़ा म ठुक-ठाक होई जथे। ऐकर मतलब ए नइये के वोकरमन के बीच म मया नइये। बियारी के बेरा म कतेक सुग्घर अपन-अपन जगा म सज-धज के काम करे बर जुरिया जथे। लोटा-गिलास म पानी, थारी म भात-दार, कटोरी म चटनी-पापड़। भुला जथें झगरा-टंटा के बात ल। जइसे चारो कोती ले नदिया बोहावत आथे अउ सागर म मिल जथे। वोइसने हाल परिवार के होथे। जिनगी ल उमंग-उछाह के संग म जीयव। तभे तो सियानमन घेरे-बेरी बरजथें-
आगी दुसमनी के फूकव झन,
मया के परवा-छानी म।
मरे के पहिली झन मरव,
चरदिनिया जिनगानी म।
रद्दा जोहत हे दाई-ददा,
बहिनी, सुआरी।
जुग-जुग जीये के असीस समाये,
लोटाभर पानी म।
बुढ़तकाल के आंसू नदिया के पूरा पानी ले घलो जब्बर होथे। झन देवव आंसू, हो सकय त पोछे के उदीम करव। एके लहू हरय बेटी अउ बेटा। हमर नान्हें सोच ह बड़े-छोटे बना देथे। आज के भागम-भाग जिनगी म काकर कर बेरा हे बइठे के-गोठियाय के। इही म जिनगी कभु-कभु नासमझी म भटक जथे। जरूरत हे अइसन बखत म पीरा ल समझे के। जिनगी कुबेर के खजाना ले घलो कीमती हवय अउ वोकर ले कीमती मया-परेम हवय। जेकर बंधना जीयत-मरत ले नइ टूटय। मया के बंधना ल जोरव-तोरव झन। भले दूरिहा-दूरिहा, अलग-अलग गांव-सहर म राहव, फेर मया के बंधना म बंधाय रहव। जावव हांसी-खुसी म जिनगी बितावव।
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