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ठेठरी-खुरमी अउ जोहार

locationरायपुरPublished: Jul 26, 2019 04:18:20 pm

Submitted by:

Gulal Verma

हमर संस्करीति

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ठेठरी-खुरमी अउ जोहार

छ त्तीसगढ के मैदानी भाग म परचलित संस्करीति म वइसे तो किसम-किसम के रोटी-पिठा बनाय जाथे, फेर ठेठरी अउ खुरमी के अपन अलगेच महत्तम हे। इहां के जम्मो तीज-तिहार म इंकर कोनो न कोनो रूप म उपयोग होबेच करथे। ऐकर असल कारन का आय? सिरिफ खाए-पीए के सुवाद, के अउ कुछू बात। असल म ए इहां के मूल आध्यात्मिक संस्करीति के भावनात्मक रूप आय। जेला हम भुलावत जावत हन। ए बात ल तो हम सब जानथन के छत्तीसगढ मूल रूप ले बूढादेव के रूप म सिव परिवार के संस्करीति ल जीअइया अंचल आय। ऐकरे सेती इंकर हर रूप म इहां भावनात्मक दरसन देखे ले मिलथे।
इहां एक ‘जोहारÓ सब्द के परचलन हे। हमन ल कोनो ल नमस्कार करे बर हे, मेल-भेंट करे बर हे, त वोला ‘जोहारÓ कहिथन। ए ‘जोहारÓ का आय? इहू ह इहां के मूल संस्करीति के एक भावात्मक रूप आय। जइसे के ठेठरी-खुरमी आय।
जोहार ह ‘जयÓ अउ ‘हरÓ सब्द के मेल ले बने हे। जेकर मूल भाव भगवान संकर के जयकार करई होथे। ‘हर सिवजी ल ही कहे जाथे। ए बात ल आप सब जानथव। वोकरे सेती जय अउ हर के मेल ले बने ए सब्द आय जोहार। अभी ऐला बिगाड़ के लोगन ‘जय जोहारÓ बोले ले धर ले हें। जेहा असल म ऐकर गलत रूप आय।
ठेठरी अउ खुरमी घलो अइसने इहां के मूल आध्यात्मिक संस्करीति के भावनात्मक रूप ल उजागर करे के माध्यम आय। ठेठरी ह जिहां सक्ति के परतीक स्वरूप रूप आय त खुरमी ह सिव के। आपमन जानत हवव के पूजा-पाठ म जब ठेठरी-खुरमी चघाय जाथे त ठेठरी जेन जलहरी के आकार म बने रहिथे वोकर ऊपर सिव परतीक (लिंग) के रूप म बने खुरमी (मुठिया वाला) ल रखे जाथे। तब दूनों मिल के एक पूरा सिवलिंग (जलहरी सहित वाला) बनथे।
पहिली खुरमी ल मुठिया के आकार म बनाय जाय। जेहा सिव परतीक के रूप होय अउ खुरमी जेला जलहरी के रूप म बनाय जाय वोहा सक्ति के परतीक होय। फेर, अब बेरा के संग हमन अपन मूल आध्यात्मिक संदरभ ल भुलावत जावत हन। आने-आने छेत्र ले आए लोगन अउ उंकर चलन के मुताबिक रेंगई म अपन मूल पहिचान अउ स्वरूप ले भटकत जावत हन। ऐकरे सेती ठेठरी अउ खुरमी ल घलो जलहरी अउ मुठिया के आकार देय बर छोड़ के आनी-बानी के रूप अउ आकार म बनाय लगे हन। जरूरी हे, अपन परंपरा अउ संस्करीति के मूल भाव ल जाने के, तभे हमर अस्मिता के मानक अउ सुुद्ध रूप बांचे रहि पाही। हमर छत्तीसगढिया होए के सांस्करीतिक चिन्हारी तभे सुरक्छित रहि पाही।
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