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पौनी-पसारी योजना : रोजी-रोटी के ‘नवा बुता

locationरायपुरPublished: Jul 26, 2019 04:31:34 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

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पौनी-पसारी योजना : रोजी-रोटी के ‘नवा बुता

स रकार ह कुछ दिन पहली नरवा, गरवा, घुरवा अउ बारी के बिचार ल लागू करिस हे तउन ह जुन्ना समे के गांव के रचना ल सुग्घर बनाय के उपाय हे।
नरवा याने पानी के इंतजाम, गरवा याने मवेसी के सही उपयोग, घुरवा याने खातू के तैयारी अउ बारी याने साग-भाजी उगाये के साधन। ए सबके इंतजाम से गांव के काम-काज बने.-बने चलथे।
गांव के सुग्घर रचाना खातिर दूसर कड़ी हे ‘पौनी-पसारीÓ। गांव म अड़बड़ हुनर वाला मनखे रहिथें। लोहार, कुम्हार, नाऊ, धोबी, मोची अउ दूसर। छसीसगढ़ के पौनी-पसारी के काम ह रोजी-रोटी, धंधा-पानी चलाए बर बढिय़ा इंतजाम हे। ऐहा एक किसम के समाजवादी विचार हे। चइत- बइसाख के महीना म गांव वालामन बर कोनो काम-बुता नइ रहाय तो ठलहा के बेरा म पौनी -पसारी लगाथें। ऐहा गांव के कमइयामन बर एक अच्छा रिवाज हरे।
पौनी-पसारी काम-बुता जुटाय के एक सरल साधन हे। जेकर ले नाऊ, धोबी, लोहार, मोची आदिमन के बनी -भुती से करार होथे। घरों-घर अनाज या फेर रुपिपया ल इक_ा करे जाथे। गांव के सबो रहवइयमना अपन हैसियत के मुताबिक अनाज या फेर रुपिया देथें। ऐहा कमइयामन के बछरभर गुजर-बसर के लइक इंतजाम होथे। हमर छत्तीसगढ़ के खासियत हे कि कोनो मनखे गांव में भूखन नइ मरे। गांव वालामन मिलके कइसनो करके गरीब मनखे के इंतजाम पौनी-पसारी योजना : रोजी-रोटी के ‘नवा बुताÓ करथं,े फेर अनाज के बिना भूख नइ मरन देय।
छत्तीसगढ़ सासन ह इही बात ल धियान म रखके एक चिन्हारी के रूप म रोजगार व्यवसाय बर ‘पौनी-पसारीÓ योजना लागू करे के बिचार करे हे। ए योजना सिरतोन म बने रइही
पौनी-पसारी ह गांवेभर बर नइ, बल्किनं साहर वालामन बर घलो बने रइही। सहर म ए देखे जाथे कि सड़क म तीरे-तीरे नाऊ, लोहार, धोबी, कुम्हार बिचारामन छोटकिन चंउरा बनाके अपन धंधा करथें। नाली के ऊपर कोनो कोन्टा म घलो अपन दुकान लगाथे। ऐमन ल कोनो बने जगा म चबूतरा, गुमटी या फेर छोटे-मोटे दुकान देके सहूलियत दे सकथे, जउन ह मजबूत सहारा होही। हितग्राहीमन ल मोहल्ला या वार्ड के अनुसार जगा बांटे जा सकथे। ऐकर से मोहल्लावासीमन ल सबो कमइयामन अउ सबो सामान ह ऐके जगा म मिल सकत हे। मोहल्ला वालामन ल कोनो बुता बर भटके बर नइ परही। सबो सहूलियत ह ऐके जगा म मिल जाही। दू-तीन मोहल्ला के बीच म एकठन ठिहा बनाय बर चाही ताकि रहवइयामन ल आसानी होवय।
गांव हो या फेर सहर हमन बर मरदनिया, धोबी, लोहार, मोची, राउत के काम हमुख्य काम जइसे हे। तभो ले वो बिचारामन के इंतजाम बर बने असन कोनो नइ सोचंय। ते पाय के सरकार के धियान ह अब बारिकी से पौनी-पसारी डहर गे हे।
ए योजना म कम लागत म अड़बड़ झन ल काम-बुता म लगाय जा सकथे। गांव, सहर अउ कस्बा सबो जग म साप्ताहिक अउ दैनिक बाजार लगथे। जिहां लोगनमन सईकिल या रेंगत पहुंच के बजार करथें। इही बजार म खाली जगा म पौनी-पसारी के इंतजाम करे जा सकत हे। साग-भाजी, मनिहारी सामान वालामन चंउरा के बाजू म पौनी-पसारी बर घलो जगा बनाय जा सकत हे। जगा कम परही तो उही बजार म कोनो खाली जगा म दूमंजिला भवन बनाय जा सकत हे। जिहां तरी साग-भाजी के बजार अउ उप्पर म पौनी-पसारी के बजार लगाय जा सकत हे।
अइसन भवन म वोमन ल पानी, बादर अउ घाम ले भी बचत हो जाही। दुकान बनाय मजादा खरचा होही त उंकरमन बर चबूतरा म अलमारी या फेर रेक बनाय जा सकत हे। जेमा वोमन अपन सामान ल चोरी-हारी अउ गाय- गरवा से सुरक्छित रख सकही। सबो दुकानदारमन आपस म मि-जुल के साफ.- सफई, बिजली- पानी के इंतजाम कर सकत हें। फेर, नगर निगम ह साफ-सफाई, बिजली आदि सुरक्छा के सुविधा दे देही त अउ बने हो जाही। पौनी-पसारी नानमुन कमइयामन के धंधा-पानी हे। जउनमन बड़ मुश्किल से अपन गुजर-बसर करथे। 200-300 रुपिया लटे-पटे कमाथें। त वोकरमन से जादा पइसा के सुल्क (टैक्स) वसूलई बने नइ होही। कम से कम पइसा तय करे बर चाही। जादा होही त वोमन का कमाहीं, का बचाहीं अउ काला खाहीं।
हमर छत्तीसगढ़ ह खेती-बाड़ी अउ गंवई गांव के राज हे। ए बात ल सोच-समझ के योजना बनही तभे उचित होही। पौनी-पसारी योजना ल गांवेभर तक नइ, बल्कि सहर अउ महानगर तक बगराय बर चाही।
अइसने गांव के तरक्की के अउ कईठन बिचार होही जउन परगट नइ होय होही, तेला परगट करके हमर राज म तरक्की करे जाय।
द्य अरविंद मिश्र,
रोहिणीपुरम, रायपुर

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