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बरसात ह ककरो बर मजा ए, त ककरो बर सजा!

locationरायपुरPublished: Aug 08, 2019 04:55:05 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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बरसात ह ककरो बर मजा ए, त ककरो बर सजा!

मि तान! मूूसलाधार बारिस होय ले सिरिफ किसानमन भर खुस नइ होवंय। पानी गिरे ले धरती के सबो परानी के मन ह अलग-अलग कारन से मयूर कस नाचथे। परसासन ह बाढ़ ले निपटे बर जउन इंतजाम करे रहिथे, वोकर हब ले पोल खुल जथे तहां ले बिपक्छी नेतामन दांत निपोरथें। सरकारी इस्कूलमन म खस्ताहाल, टूटे-फूटे छत के तरी बइठे अपन भविस्य संवरइया लइकामन ए मौसम म रोज-रोज होवइया छुट्टी ल लेके बहुचेत उत्साहित रहिथें।
सिरतोन! जहां एक कोती कालेजमन म गियान अरजित करइया नौजवानमन बर ‘भीगा बदन जलने लगाÓ टाइप गीतमन के सच जांचे, जाने, परखे के घड़ी आ जथे।। उहें छाता के मान-सम्मान, परतिस्ठा दांव म लग जथे। छाता ह पहिली मनमाने गरमी झेल के लोगनमन ल बचाथे। तहां वोकर सामना बारिस के बड़का-बड़का बूंद से होथे।
मितान! गरमी के मौसम म बिजली ह जब पाथे तब गुल हो जथे। उमस अउ गरमी से लोगन के बारा हाल हो जथे। दुकानदार के गराहकी घलो चौपट हो जथे। घोसित-अघोसित कट के बिरोध म लोगनमन गरमीभर अब्बड़ धरना-परदरसन करथें। बिजली बिभाग अउ सरकार ल अब्बड़ कोसथें। फेर, जब जोरदार बारिस होथे तहां ले बिजली बिभाग के अधिकारी-करमचारीमन जाके राहत के सांस लेथें। इंद्र देवता के मेहरबानी होथे तहां बिजली संकट ले जूझत कतकोन राज के सरकारमन फजीहत ले बांच जथें। एक तो बरसात म गरमी के मौसम ले कमती बिजली खरचा होथे। उपराहा म बिजली गुल होथे त वोतेक हल्ला-गुल्ला नइये होवय। काबर के आंधी-तूफान म बिजली तार म पेड़ गिरे, गाज गिरे, बिजली खंभा उखड़े जइसे कतकोन समस्या ल बिजली बिभाग वालेमन आगू कर देथें। अइसे म लोगनमन के मुंह घलो बंद हो जथे।
सिरतोन! अब्बड़ समे ले पराकरीति आपदा-बिपदा के अगोरा म हाथ म हाथ धरे बइठे कुछ दुस्ट किसम के आत्मामन के मुरझाय उम्मीदमन के पौधा ल बरखा रानी ह फेर संजीवनी बूटी सुंधा देथे। गरमी के मौसम म आइसकरीम के दुकान म उमड़े भीड़ ल देख-देख के मनेमन जल-भुन के राख होवइया भजिया वाला ह मौसम बदलतेच गुनगुनाय बर धर ले थे – ‘दुख भरे दिन बीते रे भइया, अब गराहिक आयो रे!Ó
मितान! सरकार घलो ह राहत के सांस लेथे के मानसून सत्र से पहिली देस म जोरदार बारिस होगे। नइते सूख्खा परे ले संसद के मानसून सत्र म बढ़ बदनामी होतिस। बिपक्छी दलमन हो-हल्ला, हंगामा करतिन। संसद के काम-काज ठप करके बहिस्कार करतिन।
‘पानी रे पानी तोर रंग कइसन, जेमा मिझांर दे, वोकरे जइसनÓ, गीत गावत दूनों मितान खेत कोती चलते बनिन। जाड़, गरमी, बरसात कोनो मौसम रहय मरना तो सिफिर गरीबमन के रहिथे। दुख-पीरा सहई, तकलीफ उठई तो गरीबमन के भाग बन गे हे। तभो ले देस-राज म कोनो छाप वालेमन के सरकार रहंय हालात जस के तस बनेच रहिथे, त अउ का-कहिबे।
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