रायपुर

भोजली के मितान बदई

हमर संस्करीति

रायपुरAug 08, 2019 / 05:03 pm

Gulal Verma

भोजली के मितान बदई

छ त्तीसगढ़ म रंग-रंग के तिहार होथे। इही ह हमर संस्करीति अउ परंपरा के पहिचान-चिन्हारी हरय। आजकल पस्चिमी सभ्यता ह हमर ऊपर थोपावत हे। वेलेंटाइन डे, फ्रेंडसिप डे के चक्कर म हमन अपन असल परंपरा ल भुलावत हंन। सावन महीना म भोजली तिहार होथे। भोजली के मायने भुइंया म पानी रहय। इही बिसवास अउ आस्था के परतीक आय भोजली ह।
सावन के अंजोरी पाख के नवमी के दिन गहूं ल एकठन झेंझरी के माटी म बोथें। झेंझरी ल अंधियार म रखथे। नान- नान पौधा निकलथे उही ल भोजली देवी कहिथें। भोजली देवी के सेवा करत माइलोगिनमन गीत गाथे-
पानी बिना मछरी, पवन बिना धाने।
सेवा बिना भोजली के, तरसे पराने।
सात दिन सेवा करथे भोजली देवी के तहां ने राखी के दूसर दिन भादो महीना के लगती भोजली के बिसरजन के बेरा आ जथे। ठंडा करे के बेरा नान-नान नोनीमन भोजली ल मुड़ म बोह के रेंगथे अउ माइलोगिनमन गावत जाथें-
हो देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा, हो देवी गंगा।
हमरो भोजली देवी के, भीजे ओठो अंगा, हो देवी गंगा।
भोजली संग अबड़ गहरा नता हो जाथे। भोजली ल पानी म बोहा देथे अउ उहां के एककन भोजली ल संगी-जहूरियामन एक- दूसर के कान म खोंच के भोजली के मितान बदथें। ऐकर सेती ऐला ‘छत्तीसगढिय़ा फ्रेंडसिप डेÓ कहिथें। सीताराम भोजली कहत जिनगीभर ए मितानी ल निभाथें। एक-दूसर के परिवारमन घलो ए रिस्ता म बंध जथे।

Home / Raipur / भोजली के मितान बदई

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.