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देस के अजादी ल अपन ‘जागीरÓ समझे के समे!

locationरायपुरPublished: Aug 13, 2019 04:37:04 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

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देस के अजादी ल अपन ‘जागीरÓ समझे के समे!

च उंरा म मुड़ धरे सियान ह अपनेच-अपन बड़बड़ावत रहय। आज देस म सबले बड़का सुवाल ए हे, का ‘बेंदरा के हाथ म उस्तुरा (छुरा)Ó कस किस्सा होगे हे, ‘अजादीÓ ह? का अजादी के मायने ‘जेकर लउठी, वोकर भइंसÓ होके रहि गे हे? या फेर, ‘कुकरी के एक टांगÓ, बरोबर समझथें अजादी ल लोगनमन। आज समे तो अपनेच मनमरजी-मनमानी करइयामन के हे। हमर देस म अइसन मनखे जादा हावंय, जउनमन समझथें के वोमन ल कहुं भी, कभु भी, कुछु भी ‘करे-बोलेÓ के अजादी हे।
चउंरा ले उठके गांव के गुड़ी म बइठ के सियान ह गुने लगिस। गली सबो के, सड़क सबो के। अउ, गांव-सहर ह। उहू तो सबो रहवइयामन के ए। परांत अउ देस घलो ह त सबो के आय। त का देस के अजादी ह अपनेच-अपन बर मिले हे? गली-नाली म कचरा फेंकई, सड़क, भाठा, समसानघाट, तरिया-नरवा म कब्जा करई। दूसर मरत हे त मरन दे, कोनो ल दुख- तकलीफ होवत हे त होवन दे। बस, हमर बनउकी बने बर चाही। हमर सुवारथ सधे बर चाही। अरे! हमर पुरखामन सबोझन संघरा मिल के तो देस ल अजाद करइंन। त फेर, लोगन ल अलग-अलग अजादी कइसे मिल सकथे? कोनो अपनेच भलई कइसे सोच सकथे? ‘सबो के भलई म देस-समाज के भलई हे।Ó त फेर, सुवारथी-मतलबीमन ल रोकय कोन? बरजय कोन?
गुड़ी ले उठके इस्कूल डहर रेंगत सोचे लगिस सियान ह। ये दे फेर आ गे हमर अजादी के तिहार। काम-बुता बंद रइही। दिनभर मनखेमन छुट्टी के मजा लिहीं। इस्कूल के लइकामन बिहनिया-बिहनिया परभात फेरी निकालहीं। एनसीसी, स्काउट-गाइड, पुलिस अउ सेनिकमन परेड करहीं। नेतामन झंडा फहराहीं। भासन झाड़हीं। सहीदमन के अमर होवय के नारा लगाहीं। देसभक्ति गीत बजहीं। सांस्करीतिक कारयकरम होही। मिठई खाहीं। तहां ले चल दिहीं अपन-अपन घर। जइसे सबो एक पइत फेर अजाद होगे तइसे! अइसे लागथे जइसे एक मनखे ल दूसर ले काहिंच मतलब नइ रहि गे हे।
इस्कूल के परदा म ओध के सियान ह बादर कोती देखत सोचे लगिस- अजाद होय के मायने असाद होवई हे का? गड़बड़ी फइलई हे का? अपन संस्करीति, संस्कार अउ सभ्यता ल बिसरई हे का? सबोझन चाहथें के वोकरमन के होवय। का देस के अजादी बर जान कुरबान करइया, अंगरेजमन के लउठी-गोली खवइया, जेल म कतकोन बछर ले दुख-पीरा सहइया अजादी के दीवानामन ऐकरे सेती अजादी चाहत रहिन? का वोमन अइसने भारत के सपना देखे रहिन?
जब अजादी ह असादी बनत जावत हे। जेती-देखबे ओती छल-कपट, अनियाय, अपराध होवत हे। जनतंत्र म जनतेच ह दुख-पीरा सहत हे। आम जनता बर अजादी ह घलो गुलामी कस लागत हे, त अउ का-कहिबे।
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