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संतान के खुसहाली बर ‘कमरछठ पूजा

locationरायपुरPublished: Aug 21, 2019 05:21:01 pm

Submitted by:

Gulal Verma

आस्था के परब

संतान के खुसहाली बर 'कमरछठ पूजा

संतान के खुसहाली बर ‘कमरछठ पूजा

कमरछठ के दिन सुहागिनमन गांव के चौपाल म सेकला के मिलजुर के पूजा-पाठ करथें। सबले पहिली महतारी पूजा के बिधान हे। चौपाल म एकठिन नानकीन गड्ढा खान के वोमा सिव-पारवती, गनेस, कारतिक के मूरति इसथापित करथें। लोक रीति के मुताबिक छत्तीसगढ़ म सुहागिनमन उपास रहिके देवी-देवता के पूजा-पाठ करथें। पलास अउ कुसा के तरी सिव, पारबती, गनेस अउ कारतिक के मूरति के इसथापना करथें।
सास्त्र म बताय हावय के कमरछठ उपवास करे के बाद एक दिन वोकर उद्यापन घलो करना चाही। वो दिन सोना, चांदी, गो, कपड़ा आदि दान देय के नियम हे। उतरा के गरभ से जन्म लेवई बालक ह वीर पराकरमी परीछित नांव से जगविख्यात होइस।
भा दो के अंधेरी पाख के छठ के दिन ह सुहागिन मन बर सौगात लेके आथे। वोमन ए दिन संतान अउ वोकर उत्तम सुवास्थ बर मनौती मांगथे। हमर छत्तीसगढ़ म ए दिन ह कमरछठ कहाथे। अइसे ऐला हलसस्ठी कहे जाथे। छठ के दिन सुभ मुहुरत म उठके मंगल पाठ करके गनेस आदि देवी-देवता के पूजा-अरचना करना चाही। छठ के उपास रखे ले गरभ के लइका के रक्छा होथे अउ समे के पहिली गरभ ह नइ गिरय। ए दिन नागर (हल) अउ कुदारी से उपजे अन्ना खाय के मनाही रहिथे। मनखे जीवन करम परधान होय के सेती ए बरत ल कमरछठ घलो कहे जाथे।
कमरछठ के दिन सुहागिन मन गांव के चौपाल म सकला के मिलजुर के पूजा-पाठ करथें। सबले पहिली महतारी पूजा के बिधान हे। चौपाल म एकठिन नानकीन गड्ढा खान के वोमा सिव-पारवती, गनेस, कारतिक के मूरति इसथापित करथें। लोक रीति के मुताबिक छत्तीसगढ़ म सुहागिन मन उपास रहिके देवी-देवता के पूजा-पाठ करथें। पलास अउ कुसा के तरी सिव, पारबती, गनेस अउ कारतिक के मूरति के इसथापना करथें। धूप, दीप, फूल, पान चढ़ाथें। ऊॅ नमो सिवाय: के जयकारा करथें। फरहर के रूप म अपने आप उगे भाजी, पसहर चाउर, दूध-दही, घी लेय के नियम हे। लाई अउ महुआ फर पूजा के समे देवता ल चघाय जाथे। ये उपवास ह कठिन होथे तभो ले माइलोगन मन जीयत भर रहिथें।
‘भादो महीना के छठ संगी,
देव दरसन बर आयेन हो
व्रत नेम कठिन हे संगी,
जीव रहे कि जाये हो।Ó
कमरछठ के कथा
किरिस्न ह राजा युधिस्ठिर ल एकठिन किस्सा बताय रहिस। जुना समे म सुभद्र नांव के महापरताबी राजा राज करत रहिस। वोकर रानी के नाम सुवरना रहिस। रानी के एकझन बेटा होइस तेकर नांव हस्ती रहिस। राजा ह अपन बेटा के नांव ले राजधानी के नांव हस्तिापुर रखदीस।
एक दिन राजकुमार ह अपन धातरी दाई के संग गंगा स्नान करे बर गिस। वोहा जइसे नहाय बर उतरिस एकठन बड़ा जनिक मगर ह वोला खींच के गहिरा पानी म लेगिस। धातरी दाई ह बचाव-बचाव कहिसे चिल्लइस। उहां कोनो नइ रहिस। वोहा दउड़त-दउड़त रानी तीर जाके जम्मो बात ल बताइस। रानी ल बड़ दुख होइस। वोहा आव देखिस न ताव धातरी के बेटा ल आगी म फेंक दीस। धातरी चुपचाप सब देखत रहिगे। आखिर म मन मसोस के धातरी दाई ह निरजन जंगल म चलदीस। उहां सुन्ना मंदिर म जाके सिव, पारबती, गनेस अउ कारतिक के मूरति के पूजा करे लगिस।
भादो के अंधियारी पाख के छठ के दिन धातरी के मरे बेटा ह आगी ले बाहिर आ गे अउ बोले लगिस। राजा-रानी उहें बइठे रहिस। वोमन ल बिसवास नइ होइस, फेर सच्चाई ह वोकर मन के आंखी के आगू म रहिस। वोतके बेरा दुरवासा रिसि पहुंच गे। वोहा राजा-रानी ल बताइस के यह सब धातरी दाई के भगती के चमत्कार हे। निरजन जंगल म चारों देवता के सरलग भजन गाके पूजा करत हें। वोकर बरत, पूजा-पाठ के फल आय के वोकर बेटा जिंदा होगे।
सच ल जानके राजा, रानी बाहमन मन ल लेके जंगल पहुंचिन। उहां देखिस के धातरी दाई ह पलास, कुस के तरी सिव, पारबती, गनेस अउ कारतिक के मूरति बनाके पूजा करत हे। राजा म तीर म जाके धातरी ल वोकर बेटा ल सउंप दिस। बेटा ल पाके धातरी धन्य हो गे अउ बरत के महत्तम ल सबोझन ल बताय लगिस। तहां ले रिसि दुरवासा ह सस्ठी बरत के नियम राजा-रानी ल बताइस। रानी सुवरना ह बरत के पालन करिस। सस्ठी के दिन सुवरना के बेटा हस्ती ह मगर के मुंह ले निकल के बोले लगिस। राजा-रानी के आनंद के ठिकाना नइ रहिस। कहिथें के राजा सुभद्र के राज म अकाल, दुकाल, महामारी, मारकाट, अतिचार कभु नइ होइस। अब्बड़ समे तक राज करिस अउ जनता ल सुख-सान्ति परदान करिस।
राजा युधिस्ठिर ह किरिस्न के लोकहितकारी बचन सुनके धन्य हो गे। रानी उतरा ह ए बरत ल हर बछर रखके सुखी, संतुस्टि होइस। वोकर गरभ म मरे संतान ह जिंदा होगे।
सास्त्र म बताय हावय के कमरछठ उपवास करे के बाद एक दिन वोकर उद्यापन घलो करना चाही। वो दिन सोना, चांदी, गो, कपड़ा आदि दान देय के नियम हे। उतरा के गरभ से जन्म लेवई बालक ह वीर पराकरमी परीछित नांव से जगविख्यात होइस। जउन मनखे ए बरत के पालन करथे वोकर सबो पाप नस्ट होथे।
‘तंय अन्नदाता सरी जगत के
तंय करथस पथरा ला पानी
तंय हांसे तौ सुरूज ऊये हे
तंय रेंगे, तौ डहर बने हे।Ó
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