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मनखे अमर हो जही त बड़ दिक्कत होही!

locationरायपुरPublished: Sep 04, 2019 05:30:24 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

मनखे अमर हो जही त बड़ दिक्कत होही!

मनखे अमर हो जही त बड़ दिक्कत होही!

मि तान! नानपन ले मोला सरग देखे के इच्छा रिहिस। फेर, सरग ल देखे तो नइ जा सकय। त मन ल मढ़ावत रहिथंव, दिल ल समझात रहिथंव के फिकर करे के का जरूरत हे। मरबोन तब सरग ल घलो देख लेबोन।
मितान! कका गालिब ल कहे हावंय – ‘हमको मालूम है जन्नत की हकीकत, लेकिन दिल को बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।Ó यदि ‘ख्यालÓ याने ‘कल्पनाÓ नइ होही त मनखे ह चार दिन के जिनगी म दू दिन नइ गुजार सकय। ए कल्पनेच ह हे, जउन भिखमंगामन ल राज-पाठ के, बुढ़वामन ल जवानी के, मुरखमन ल बुद्धिमानी के अउ हारत मनखे ल जीते के सपना देखाथें। जब कोनो नवा सरकार बनथे तहां जनता ह बड़े-बड़े सपना देखे म मगन हो जथे।
मितान! मरे के बाद सरग तो देखबोन। फेर, एकठिन समाचार पढ़ के चिंता म पर गे हंव। समाचार ए रिहिस के दूझन जैनेटिक इंजीनियरमन अइसन नैनो तकनीक बनाय हे जउन ह मनखे ल अमर बना दिही अउ मनखे ह पराकरीति मउत नइ मरय। कसम से समाचार पढ़तेच सबसे बड़का चिंता ए होगे हे के यदि मनखे मरही नइ त घरवालेमन के सुते बर खटिया का अमरीका तक बिछाय बर परही! अब्बड़ दिक्कत हो जही।
सिरतोन! आज भुइंया म अतेक परानी हावंय के वोमन ल बड़ मुसकुल ले खाय बर मिलत हे। खाय के ल छोड़व, पहिली पीये के सोचव। गरमी म पीये के पानी के अब्बड़ेच किल्लत रहिथे। अभी जतेक अबादी हावय वोकरमन बर सरकारमन तो पीये के पानी के बेवस्था तको नइ करा पावत हें।
सिरतोन! कतकोन सहरमन म तो हफ्ता-हफ्ता ले पानी नइ आवय। नहाय बर तरस जथें। नानपन के सुरता करतेच हमन ल बड़े-बड़े भांठा, घनोघर जंगल, बड़े-बड़े रुख, कुआं के जुड़ पानी के सुरता आ जथे। अब तो सबो नदा गे हे।
मितान! ए हाल तो तब हावय जब मनखे रोज मरते हें। यदि मरई बंद हो जही त…। गउकीन सांस लेय बर हवा तको नइ मिलनी। वइसे मनखे के मन म अमर होय के इच्छा अनंतकाल से रहे हावय, तभो ले वोहा मरत रहिथे। फेर, मरई ह बंद हो जही त सरग देखे के का होही! सरग देखे के साध ह, साधे रहि जही!
मितान! धरती के सरग ल तो हमन ‘नरकÓ बना के रखे हन। कुछु होवय, फेर मोर समझ म तो मरे बर जरूरी हे। वइसे घलो हमर सास्त्रमन म आत्मा ल अजर-अमर कहे गे हे। फेर, यदि मरबोन नइ त का ए सब सुवारथी, लालची, लबरा नेतामन ल झेलतेच रहिबोन। सोचतेच जी ह कांप जथे।
सिरतोन! जनता ह कोनो भी नेता के वादा म आके अपन सुग्धर भविस्य के सपना देखे बर धर लेथे। गरीबी मिटही, बिकास होही, खाता म लाखों रुपिया आही सोचके फरेब के जाल म फंस जथे। अउ जब सपना पूरा नइ होवय त जिनगी ह ‘नरकÓ लागथे। अइसन गोठियावत दूनों मितान अपन-अपन काम-बुता म चलते बनिन।
जब सरग सरीखे सुख के कल्पना ह मनखे के दिमाग म अतेक बइठ गे हे हावय कि वोहा ‘परम सुखÓ के इच्छा म जिनगी के नान-नान असल सुख ल बिसरा देथे। जनता ह अपन भोलापन के सेती ठगावत रहिथे, त अउ का-कहिबे।
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