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छत्तीसगढ़ म बेरा फुलफुलाय दिखत हे

locationरायपुरPublished: Sep 04, 2019 05:44:44 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

छत्तीसगढ़ म बेरा फुलफुलाय दिखत हे

छत्तीसगढ़ म बेरा फुलफुलाय दिखत हे

तिजहारीनमन निरजला उपास रेहे के पहली घरो-घर भात खाय बर जाथें। दूसरइया दिन उपास, फेर बिहानभर सरी-सरी लुगरा। संत पवन दीवान ह तीजा ऊपर कविता लिखे हे। वोमा एक लाइन हे- Óचुर्रूस ले बाजय करेला के बीजा, करू भात खाके रहि जावो तीजा।Ó हमर छत्तीसगढ़ म धीरे-धीरे दूसर प्रदेस के तिहार अउउत्सवमन मनाय जाथे। करवा चौथ ल हमर सियानमन जानत नइ रिहिन। माने के बात तो बहुत दूर के बात ए। अब नवा बहू-बेटी सिनेमा देख के चलनी म अपन पति के मुंह ल करवा चौथ के दिन देखे के कोसिस करथें।
दे स-दुनिया म तेजी से बदलाव होवतहे। संचार के साधन के सेती देस- विदेस के मनखे एक-दूसर के तीर आवत जात हे। हमर तीज-तिहारमन एक-दूसर के राज म जाने जात हे। महारास्ट्र म गनपति पूजा के सुरुआत तिलक महराज ह सुरू करइस। बड़े रूप म गांव -गांव सहर-सहर पूजा उहां सुरू होइस। आज देसभर म गनपति बप्पा मोरया मंत्र ह गूंजत हे।
हमर छत्तीसगढ़ म कईठन तिहार ह नवा उदगर गे। राखी उही म एक ठक नवा तिहार ए। हमर लइकई म गांव के पुजेरी महराज ह राखी बांधे बर आवय । बड़का दाऊमन ल रेसमाही डोरी वाला राखी बांधय अउ गकीबहामन ल पटवा के सस्ताहा राखी। जइसन सेर सीधा तैसन राखी के रूप रंग राहय। बहिनीमन तब भाईमन ल राखी नइ बांधय। हमर फूफू, मामी, दाईमन अपन भाईमन ल राखी नइ बांधिन। फेर जाने कहां ले धीरे-धीरे समे बदलिस के घरों घर राखी बंधन सुरू होगे। बड़े नेता प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रीमन कोहनी के जात ले राकी बंधवाथें। ब्रहमकुमारीमन जाने-माने मनखेमन के घर जा के राखी बांधथें। अब नौकर-चाकर तक काम छोड़ के अपन बाई के राखी धरके ससुरार जाथें राखी पहुंचाय बर। काम वाली बाई दू दिन काम म नइ आवय। राखी अतेक बड़ तिहार होगे हे। देखते-देखत छत्तीसगढ़ राखीमय होगे।
चालीस बछर पहली दिल्ली, भोपाल कोलकता ट्रंककाल लगय। मंय टेलीफोन ऑपरेटर के नौकरी करे हंव। लाइटनिंग काल लगावंय तब कहूं घंटाभर म बड़े सहर म फोन लगय। राजीव गांधीजी संचार क्रांति करिस। आज बात कहत दुनियाभर म बात हो जथे। दुनिया कइसे बदल जथे तेकर इहू ह एकठन नमूना ए।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेस बघेल ह हरेली म गेंड़ी चढ़के अपने संस्कार अउ सोच ल जन-जन ल जानबा करा दिस। छत्तीसगढ़ के असली रंग ल हम हरेली म देखेंव। छत्तीसगढ़ म बिहार, उत्तरप्रदेस, बंगाल, पंजाब साही बड़े-बड़े नदी कम हे। इहां नरवा-ढोंडगा जादा हे। पहली नरवा म पानी बारो महीना राहय। अब कुंवार म नरवा पियास मरे लगथे। मुख्यमंत्री ह एक हजार नरवा ल फेर बरमसी पानी वाला बनाय के संकल्प ले हे। इहू बड़े बदलाव ए। सहर म जनमें सियान रिहिन तेमन गांव ल ए ढंग ले नइ देखे सकिन। गांव के गली-खोर के धुररा -माटी म सना के बड़े बने नेतामन छत्तीसगढ़ के गांव ल सरग बनाय के उदिम करत हें। बदलाव धीरे-धीरे होथे, फेर दुनिया के तस्वीर बदलथे जरूर। छत्तीसगढ़ के किसानमन कभु नइ सोचे रिहिन के करजा माफ हो जही।
धान के भाव बढ़वाय बर डॉ. खूबचंद बघेल अनसन करिस। तब बड़े-बड़े राइस किंगमन के राज रहाय। सरकार नइ मानिस त एक बोरा धान ल छत्तीसगढ़ ले बाहिर बाघ नदी के ओ पार लेग के डॉ. खूबचंद बघेल नियम के धज्जी बिगाड़ दिस।
बदलाव खाली खान-पान, तीज-तिहार, बात- बेवहार म नइ होवय। नाचा-गाना, भजन-भाव तक म बदलाव हो जथे। तिहारमन बदलते हे। परंपरा बदल गे। हमर छत्तीसगढ़ म मंगलसूत्र पहिने के पंरपरा नइ रिहिस। सिनेमा ह राखी अउ मंगलसूत्रा लान दिस। तीजा के हमर छत्तीसगढ़ म गजब महत्तम हे। फेर दूसर प्रान्त के देखा-देखी छत्तीसगढ़ म हरियाली तीज मनाय के चलन चल लगे हे। तीजा म बहिनीमन मइके आथें। निरजला उपास रेहे के पहली घरो-घर भात खाय बर जाथें। दूसरइया दिन उपास, फेर बिहानभर सरी-सरी लुगरा। जइसे रोजा रहइयामन बर इफ्तार पाल्टी दे जाथे उही किसिम ले उपसहिन बहिनीमन ल आदर देके मइके गांव के नाता-रिस्ता वाला घर म भोजन कराय जाथे। दसों घर म थोर-थोर खाके उपास रहांय अउ तीजा के बिहान दिन बासी खाय के दिन घरों-घर जांय।
‘जातपात के करव बिदाई छत्तीसगढिय़ा भाई-भाई ए नारा खूबचंद बघेल के नाती के संगठन ह दे हे। जब खाना-पीना, पहिरना-ओढऩा जिनगी के रंग ढंग बदलगे तब जीवन साथी चुने के ढंग कइसे नइ बदलही। ‘दुनिया चरदिनिया बजार रे. उसलजाही दुनिया कागज के पहार रे हे उफल जाही, ऐहा डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा के कविता ए। चरदिनिया दुनिया म बदलाव कतेक धीरे-धीरे भीतरे-भीतरे होय लगथे। ऐला देखके गुंसाई तुलसीदासजी के सुरता आ जथे, जउन ह लिखे हे –
केसव कहिं न जाई का कहिए,
देखत तव रचना विचित्र यह।
समुझि मनहि मन रहिए,
केशव कहि न जा का कहिए।
आज कई समाज म अंतरजातीय बिहाव ल मान्यता दे जाथे। सत्तर बछर पहिली डॉ. खूबचंद बघेल ह फिरका टोर के बेटी के बिहाव अपने कुरमी समाज के भीतर करिस तभो ले वोला दांड़ दीस समाज ह। आज फिरका तोड़े के चलन चलगे हे कुरमी समाज म । डॉ. बघेल छत्तीसगढ़ के बाहिर बिहार अउ उत्तरप्रदेस म बेटी देके सगा बनइस। आवइया समे के आवाज ल जउन पहिचानथे वोहा एक दिन पूजे जाथे। छत्तीसगढ़ म बदलाव सुरू होगे हे। हम सब ल ऐकर महत्तम समझे-जाने बर परही। डॉ. खूबचंद बघेल अउ हमर सबो सियानमन के बताय रद्दा म रेंग के आगू जाय बर परही। सुरुआत ह बने होगे हे। बेरा फुलफुलाय ***** दिखत हे।
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