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मनखे अउ चिरई

locationरायपुरPublished: Sep 12, 2019 04:56:01 pm

Submitted by:

Gulal Verma

लोककथा

मनखे अउ चिरई

मनखे अउ चिरई

जं गल म बहुत अकन जीव-जन्तु राहय। एक समे के बात आय। उही जंगल म एकठन चिरई राहय। चिरई सुग्घर मीठ-मीठ बोले। वोकर बोली हर अतिक गुरतुर राहय कि कौने वोकर ले मितानी कर लंय। एक दिन एकझन मनखे ह वोकर ले मितानी कर लिस। दूनों एक संग घूमे-फिरे, एके जगा राहय। चिरई सुग्घर गाना गाए, मनखे हुंकारू भरे, मनखे कहिनी कहाय तब चिरई हुंकारू भरे। एक दिन चिरई ह मनखे ल कहिस- ‘चल मितान चिरई-जाम खाय बर।Ó
मनखे कहिस- ‘मेहा तो चिरई जाम खा के आगेंव हंव।
देखा तोर जीभ ला।
मोर जीभ ल तो गाय ह चांट डारिस।
चिरई कहिस चल गाय कर। दूनोंझन गाय कर गिस- चिरई ह गाय ल कहिस- तंयं मनखे के जीभ ल काबर चांटेस।
गाय कहिस -चारा नइ मिलिस।
चारा नइ मिलिस अइसे का?
गाय कहिस- हां।
चलो चारा कर जाबोन – चिरई कहिस।
चारा कर जा के चिरई कहिस- कइसे रे चारा, तंय काबर नइ बाढ़ेस।
चारा ह कहिस- पानी नइ गिरिस।
चल तो पानी कर जाबोन। पानी कर जा के फेर चिरई हर कहिस- कइसे पानी, तंय काबर नइ गिरेस।
बादर नइ गरजिस ना। मंय बादर के गरजे बिना कइसे बरसतेंव – पानी कहिस।
पानी के बात ल सुन के चिरई ह ठाड़ सुखागे। हां, पानी ले तो जीवन हे, बिन पानी के तो जग अंधियार हे। वोहा उड़त-उड़त बादर कर गिस अउ कहिस- कइसे जी बादर, तंय काबर नइ गरजेस
काबर नइ गरजेंव, मेचका नरियाही तब। मेचका ह नरियाबे नइ करिस। बादर के बात ल सुन के चिरई ह मेचका कर जा के घुसिया के कहिस- कस रे मेचका, तंय काबर नइ नरियायेस।
मेचका ह बिनती करत कहिस- कइसे नरियातेंव मेहा। नरियाथंव तब सांप आ जथे अउ मोला खा जथे। महू ल अपन परान ह पियारा हे। जइसे सब जीव ह अपन परान बचाय बर करथे, वइसे महू ह अपन परान बचाए बर नइ नरियांयेव।
सब के बात सुन के चिरई अपने सही मुंहू कर के अपन खोंधरा म जाके बइठ गे।
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