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लोक जीवन म पितर पाख के महत्तम

locationरायपुरPublished: Sep 17, 2019 05:30:13 pm

Submitted by:

Gulal Verma

परब बिसेस

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लोक जीवन म पितर पाख के महत्तम,लोक जीवन म पितर पाख के महत्तम

कुवांर महीना के अंधियारी पाख ल पितरपाख या फेर सराध पाख कहिथें। पखवाड़ाभर पितरमन ल बलाय, वोकरमन के सुरमन, सुरता करे, वोकर तरपन अउ सराध-करम करे जाथे। लोगनमन के मानना हावय के पितर पाख म पितरमन मध्याह्नकाल (दोपहर के समे) होथे। मध्याह्नकाल ह भोजन के समे होय के सेती पितरमन ल आहार देय के (भोग लगाय के) परंपरा हे। छत्तीसगढ़ म पितर पाख के पहिली दिन ल पितर बइसकी कहिथें। अइसे हमर पितरमन जेन तिथि म सरग सिधारे रहिथें उही तिथि सराध बर तय करथें। सराध याने सरधा भाव।
पुरखामन बर सरधा भाव ले जउन काम करे जाथे उही सराध ए। सराध के अंजली के अरपन होथे, उही सराध कहाथे। जेन पुरखामन जिनगीभर हमरमन बर मेहनत करिन, खून-पसीना बोहाइन अउ हमन ल जीये के रद्दा बताइन, वोमन कोनो योनी म समाय रहय, वोमन ल कोनो किसम के दुख-पीरा झन होवय। वोमन तिरिप्त रहंय। ऐकर खातिर पिंडदान अउ तरपन सराध करे जाथे।
सराध काबर जरूरी हे? सराध काबर जरूरी हे?
पुरान कहिथे के सराधकरम करे ले मरइया ल मोक्छ के गति मिलथे। रिसि-मुनिमन कहिथें के सराध करे ले जीव ह फिर से जनम लेय के चंगुल ले मुक्त हो जथे। कतकोनझन बिद्वानमन कहिथें के सराध करे ले जीव के दुख-पीरा दूरिहाथे। मनखे के जनम ह कतकोन परकार के करजा ले मुक्ति पाय बर मिले हावय। देवता, पितर, रिसि के हमन करजदार हंन। ऐकरमन के हमरमन ऊपर अब्बड़ उपकार हे। सराध पाख म ये तीनों के करजा ले मुक्ति पाय बर भरपूर उपाय करे जाथे। देवता के करजा वोकर पूजा अउ साधना करके चुकाय जाथे। रिसि के करजा चुकाय बर वोकर बिचारमन ल अपनाय बर परथे अउ पुरखामन (पितरमन) के करजा ल उतारे बर तरपन, सराध करे जाथे।
दान-धरम : मरनकाल म 8 महाकाल परचलित हावंय। जउन हें- तिल, लोहा, सोना, पोनी, नून, सातधान्य (धान, जौ, गहूं, मूंग, मक्का, काकून) गाय, अउ भुइंया। लोगनमन के मानना हावय के दान से धरम मिलथे अउ धरम से कामना अउ मोक्छ मिलथे। जउन पितरमन के सराध अउ तरपन करथें, वोकर कमाय धन-दौलत, जमीन- जाइदाद, संपत्ति के बउरे के अधिकार उही ल मिलथे। पितर पाखभर माइलोगिनमन के सबले जादा जिम्मेदारी अउ काम रहिथे। पहिली तरिया म नहाय के संस्करीति रहिस। जब नहा-धोके तरिया ले लहुटंय त आवत-आवत गोबर चोता म दूठिन तरोई पान रखके, वोकर ऊपर मूंठाभर उरिद दार रखंय। ये परंपरा ह कतकोन जगा अभु घलो चलन म हावय। तरिया ले आके माइलोगिनमन बरा-सोंहारी रांधथें।कुस अउ दुबी के उपयोग घर के मुखिया करथे। दुबी लेके वोहा नहाय बर तरिया जाथे। नहात समे वोहा सात पीढ़ी ल आचमन-पानी देथे। फेर घर म आके पूजा करथे। पूजा के समे तरोई के सात पाना के जरूरत होथे। सातों पाना म बरोबर-बरोबर भोजन (भोग) रखे जाथे।
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