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हमर देस म रोज्जेच लूटत हावय नारी-परानी के अस्मत

locationरायपुरPublished: Oct 01, 2019 05:18:16 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

हमर देस म रोज्जेच लूटत हावय नारी-परानी के अस्मत

हमर देस म रोज्जेच लूटत हावय नारी-परानी के अस्मत

‘अ म्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती। तेरे भक्तजनों पर मैय्या भीड़ पड़ी है भारी, दानव दल पर टूट पड़ो, मां करके सिंह सवारी, सौ-सौ सिहों से भी बलशाली, दस भुजाओं वाली, दुखियों के दुखड़े निवारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।Ó
पता नइ मनखेमन सभ्य समाज के संस्कार ल भुला गे हावंय या फेर अपन पुरखा जानवरमन के गुन ल अपनाय बर धर ले हावंय। दुराचारीमन ल अतको खिलाय नइये कि हमर भारतीय संस्करीति, संस्कार, वेद-पुरान, धारमिक ग्रंथ, साधु-संत, रिसि-मुनिमन नारी ल ‘देवीÓ कहे हें। सक्ति के देवी दुरगा, गियान के देवी सरसती, धन के देवी लछमी अउ न जाने कतकोन देवी बताय हें। एक पइत दिमाग लगाके बिचार करंय, देवी मइयामन ल दिल से सुरता करंय त छनभर म अपन करनी उप्पर पछतावा हो जही। आज देसभर म माइलोगिनमन उप्पर आए दिन अब्बड़ जुरुम होवत हें। तभो ले अपराधीमन ल बचाय बर कोनो न कोनो वोकरमन के हितवा आके खड़े हो जथें। कोनो ल वोट के चिंता हे त कोनो ल बदमानी के।
सरकारमन महिला उत्थान के नगाड़ा बजात हें। अखबार म बड़का-बड़का बिग्यापन देके नारी सुरक्छा के लम्बा-चउड़ा वादा करत हें। फेर, देसभर म कोनो जगा नारी सुरक्छित नजर नइ आवय। अरे! चलती बस-कार म दुस्करम होवत हे। एक जगा तो छेड़छाड़ के विरोध करइया महतारी-बेटी ल चलती रेलगाड़ी ले फेंकदीन। ऐ घटना ह अखबार, टीवी म छागिस, तेकर सेती लोगनमन ल पता चलगे। नइते देसभर म अइसने हाल हे। नारी ह न घर म सुरक्छित हे, न बाहिर म। सरकार ह अपराध रोके के दावा कतकोन करय, फेर सिरतोन बात ये हे कि अपराधीमन के मन ल पुलिस अउ कानून के चिटिकभर भय नइये। वोमन जानथें के गलती से खुदनखास्ता पकड़ा गें त कानून म छेदा के चलत बच निकलहीं।
देवतामन के भुइंया भारत देस म नारीमन उप्पर अतिचार, अनाचार खूब होवत हें। अइसन कोन करत हे? का मनखे ल अपन बनमानूस होय के सुरता आ गे हावय? बहुचेत सोचे के बाद घलो ऐ समझ नइ आवत हे के जानवर ह मनखे बनत हे के, मनखे ह जानवर। अब तक जानवर के मनखे बने के बात म दुविधा रहिस, फेर धरम-करम के मनमाने मनइया देस म नारीमन के होवत दुरदसा ल देख-सुन के लागथे जानवरेच ह मनखे बने हे, तभे अपन गुन ल नइ भुलावत हें। कहिथें के रंग-रूप भले बदल जाए, फेर जानवर के बेवहार कभु नइ बदलय! पुरुस परधान समाज म नारी ल पांव के भंदई समझथें।
माइलोगिनमन के सम्मान से होवइया खिलवाड़ ल रोके बर सरकार ह कानून ल कड़ा बनावत हे। अलग अदालत घलो बनत हे। कभु-कभु हब ले मामला के निपटारा घलो हो जथे। फेर देस म दुराचार नइ रुकत हे। अब पास्चात्य संस्करीति के परभाव ल रोके के जरूरत हे। स्कूल से लेके कालेज तक लइकामन ल चरित्र, नैतिक, अउ आध्यात्मिक सिक्छा देय के जरूरत हे। फेर अइसन नइ होवत हे, त अउ का-कहिबे।
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