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भाईचारा के परतीक ‘सोनपत्तीÓ

locationरायपुरPublished: Oct 08, 2019 04:57:08 pm

Submitted by:

Gulal Verma

हमर संस्करीति

भाईचारा के परतीक 'सोनपत्तीÓ

भाईचारा के परतीक ‘सोनपत्तीÓ

सोना पान, सोनपत्ती या फेर समी-पत्ता ह सौहार्द अउ भाईचारा के भावना ल उजागर करथे। विजयादसमी के दिन रावन के पुतला ल जलाके सोनपत्ती बांटे ले परकीति ह गद्गद् हो जथे। लोगनमन सोनपत्ती ल एक-दूसर ल देके परेम अउ उच्छाह जताथें। गला मिलथें, हाथ मिलाथें अउ खुसी मनाथें। सोनपान पाके मनखे भाव-विभोर हो जथे।
छत्तीसगढ़ म समी-पत्ता ल सोनापाना या सोनपत्ती कहिथें। ऐकर मतलब ये हावय कि समी- रूख के ये पत्ता ह सोना जइसे कीमती अउ गुनी हे। बुराई ऊपर सच्चाई के जीत के परतीक दसहरा गांव-सहर मन म अइसने मनाय जाथे। कहिथें के- लंका विजय के बाद म सिरी रामचंद्रजी ह जब अयोध्या पहुंचिस त परजा ह सोना जइसे समी पत्ता ल एक-दूसर ल भेंट करके खुसी मनाय रहिन। खजाना ल खोल दे दीस अउ सोन के सिक्का गरीब मन म बांटे गिस। बाद म इही सोना के सिक्का के परतीक के रूप म समीपत्ता एक-दूसर ल लेय-देय के परंपरा सुरू होइस। कहिथें के समी रूख ह हर हालत म मुड़ी ताने खड़े रहिथे। ऐकर सेती ऐला कल्प-वृक्छ घलो कहे ले धरलीन। पांडवमन घलो समी-रूख के महत्तम अउ गुन ल जानत रहिन। बाढ़ म घलो समी-रूख ल कांही नुकसान नइ होवय। ऐकरे सेती अग्यातवास के समे पांडवमन समी-रूख के खोलखा म अपन अस्त्र-सस्त्र ल लुका के रखे रहिन।
छत्तीसगढ़ के लोक संस्करीति म सोन-पत्ती रच-बस गे हे। दसहरा के दिन बिहनिया ले जंगल जाके समी-रूख के पाना लाथें। समी-रूख के पाना नइ मिलय त वोकरे जइसे सेहरा या दूसर रूख के पाना से काम चल जथे। समी-रूख ल वनस्पति सास्त्र म बाहिनिया रासीमोसा नांव दे गे हे। कतकोझन ऐला प्रासोविस सिनोकिया कहिथें।
वटपुन्नी म बर पेड़, तुलसी बिहाव म आंवला पेड़ अउ गुड़ी पाड़वा म लीम पेड़ के जउन महत्ता हे, वोइसने दसहरा परब म समी-पत्ता ल परस्पर बांटे के परंपरा हे। समी-पत्ता ह जोड़ी म रहिथे। बारिस म पत्ता निकलथे, जड़काला म फूल फूलथे। फूल ल हथेली भर लंबा होथे। जुन्ना समे म ये पेड़ के रक्छा बर कतकोन बेर पराथना करे गे हे- ‘त्रायन्तां च इमं देवा: त्रायन्तां मरूतां गणा:, त्रायन्तां विस्वभूतानि यत अयमस्या वसत्।Ó हे भगवान ये रूख के रक्छा कर। पंचमाभूत रक्छा कर।

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