चलव कातिक नहाए
रायपुरPublished: Oct 16, 2019 04:28:25 pm
हमर संस्करीति
चलव कातिक नहाए,चलव कातिक नहाए
कातिक महीना म सिव पूजा के जेन इहां चलन हे तेला कातिक नहाना कहे जाथे। कातिक नहाए के सुरुवात लगते कातिक के एकम ले होथे। जेन पूरा अंधियारी पाख म गौरा-पूजा (गौरा-ईसरदेव बिहाव परब) तक चलथे।
गांव-गंवई म कातिक नहाए के उत्साह देखते बनथे। पाराभर के जम्मो नोनीमन एक-दूसर घर जा-जा के उनला उठाथें अउ तरिया जाथेंं। जिहां नहा के तरिया के पानी म दीया ढीलथें। बेरा पंगपंगाय के पहिली बरत दीया ल पानी म तउंरत देखबे त गजब के आनंद आथे। दीया ढीले के बाद फेर तरिया पार के मंदिर म भगवान भोलेनाथ के पूजा करे जाथे अउ ए आसीस मांगे जाथे के उहूमन ल भगवान भोलेनाथ जइसे योग्य वर मिलय।
कातिक नहाए के सुरुवात होए के संगे-संग इहां गौरा-ईसरदेव बिहाव के नेवता दे के संदेसा गीत, सुवा गीत के रूप म घलो सुरू हो जाथे। ऐकरे सेती जम्मो नोनीमन रोज संझा टोपली म माटी के बने सुवा ल मढ़ा के घरों-घर जाथें अउ वोला अंगना के बीच म राख के वोकर आंवर-भांवर घूम-घूम के ताली पीटत गीत गाथें।