रायपुर

गौरा के करसा रिग बिग- रिग बिग

परब बिसेस

रायपुरOct 22, 2019 / 05:29 pm

Gulal Verma

गौरा के करसा रिग बिग- रिग बिग

छ त्तीसगढ़ म तिहारे तिहार। उच्छा मंगल देखते बनथे। अक्ती, रथदुतिया, हरेली कमरछठ, आठे कन्हैया, पोरा, तीजा, नवरात परब, दसराहा, देवारी, होरी बड़े तिहार होथे। ए तिहारमन म अलग-अलग संदेस हे। छत्तीसगढ़ भगवान राम के माता कौसल्या के मइके ए। किसानी छत्तीसगढ़ के पहिचान ए। ऐला धान के कटोरा केहे जाथे। संत पवन दीवान काहय के छत्तीसगढ़ी ह माता कौसल्या के महतारी भासा ए। सिरीराम जब छत्तीसगढ़ अपन ममा गांव आवय त उहू ह छत्तीसगढ़ बोलत रिहिस होही।
तीजा, पोरा बहिनीमन के मान के तिहार ए। कमरछठ मातामन के विसेस तिहार ए जेमा अपन लइका बाला बर असीरवाद मांगे जाथे। देवारी सबले बड़े तिहार माने गे हे। देवारी तिहार के अगोरा बछरभर करे जाथे। गांव के जउन मनखेमन कमाय खाय बर बाहिर चल देथें वोमन देवरी तिहार म गांव आथें। देवारी तिहार तीन दिन के होथे। फेर तियारी महीनाभर पहली ले चलथे । खेत म धान भरे रहिथे। किसानमन आपसी बातचीत म कहिथेें – देवारी मान के खेत म हंसिया गिराबो। माने अन्न लछमी आय के पूरा तियारी हो जय रहिथे। पहली दिन सुरहुती तिहार मनाये जाथे।
सुरहुती तिहार गौरा-गौरी के बिहाव के तिहार ए। संकर- पारबती के बिहाव गोंड समाज ह करथे। गांव के तरिया ले बाजा -गाजा सहित कोड़ के कुंवारी माटी लाने जाथे। तब वो माटी से गौरा-गौरी बनाय जाथे। गोंड़ समाज म सुरहुती म बहिनी ल मइके बलाय के परंपरा हे। जउन गांव म गोंड़ समाज के मनखे नइयें उहों गौरा-गौरी के बिहाव के परंपरा सब समाज ह निभाथे।
हफ्ताभर पहली गौरा-गौरी म फूल कुचरे जाथे। फूल कुचरई माने बिहाव के तियारी करई। गीत गाय जाथे –
जोहर-जोहर मोर ठाकुर देवता हो।
सेवरि लागंव मय तोर।
ठाकुर देवता के मडि़ला छवायेंव ओ
झुले वो परेवना के हंस।
हंसा चरिथे ओ मुंगा मोती।
फुले चना के दार।
लाथें ये बात जाने बर जरूरी हे के राउतमन देवारी तिहार मनाय बर जउन गंड़वा बाजा लाथें, उही बजकरीमन गौर -गौरा के बिहाव म बाजा बजाथे। गौरा-गौरी के बिाहव बर अलग से बाजा नइ लगाय जाय। ये परथा के बहुत महत्तम हे। एक समाज ह दूसर समाज संग कब ले जुड़े हे ऐेला समझे बर ये बात ला जाने बर जरूरी हे। गीत हे –
भाई के बहिनी कलस बोहे जावत हे।
बिना भाई के बहिनी धरड़ -धरड़ रोवत हे । बिना भाई के बहिनी रोवत-रोवत जावत हे
काकर करसा रिग बिग- रिग बिग।
काकर बइला सिंघासन रे भैया।
गौरी के करसा रिग बिग-रिग बिग।
ईसर के बइला सिंघासन रे भैया।
माने पारबती माता के करसा रिग बिग रिग बिग हे अउ दूल्हा बनके पहुंचे ईसर राजा माने भगवान संकर के बइला के सिघासन हे।
गांव म बेटी, बहिनी, बह ूल लछमी माने के परंपरा हे । कोठा के गैया लछमी ए। खेत के धान लछमी ए। लछमी के पूजा के मतलब हे ए सब लछमीमन के पूजा । गौरी माता के पूजा सुरहुती म होथे। वोकर बिहाव संंकर संग गांव के गोंड़मन करवाथें। गोंड़ समाज जउन गांव म जादा हे उहां बरात के रंग देखते बनथे ।
दूसरइया दिन राउतमन के रहिथे। राउतमन काछन निकलथें। दोहा पारथे –
एक काछ काछेव भाई, दूसर दिये लगाई
तीसर काछ काछेंव माता, रहिबे मोर सहाई
इहां दोहा म माता ल सुमिरे गे हे,
उही ल गोहराय गे हे ।
राउतमन सालभर जउन गरवामन ल चराथे वो पसुधन ल लछमी माने जाथे। देवारी म कोठा के लछमी ल खिचरी बना के खवाय जाथे। सोहई बांधे जाथे। राउतमन बांख के सोहई बना के पहिराथें। दोहा समे के साथ बदलत जाथे। कोदूराम दलित के लिखे । दोहा गजब चलथे –
गांधीजी के छेरी भइया
मेरेर मेरेर नरियाय रे
वोकर दूध ल पीके भइया
बुढ़वा जवान हो जाये रे’।
‘नरवा, घुरवा, गरवा, बारी, गांव-गांव के सान रे। ऐेकर संसो करही तौने, बनही हमर सियान रे।गौरा के करसा, रिग बिग-रिग बिग, सबले बड़े तिहार देवारी।Ó देवारी के पहली दिन गोंड़मन के, दूसर दिन राउतमन के अउ तीसर दिन ठेठवारमन के माने जाथे। ठेठवारमन तिसरइया दिन खोड़हर गडिय़ाथें। भांठा म मालिकमन ल दूध पियाथें। अखाड़ा के करतब कतको गांव म होथे। गांव म गोबर घनघारी किसन-कन्हैया के लीला करे जाथे।
देवारी के दिन गोवरधन खुंदाय के परंपरा हे । गोबरधन खुंदा के गोबर के टीका एक-दूसर ल लगाय जाथे । छत्तीसगढ़ म भइसा बैर तो कमती होथे तभो सालभर के मुंह फुलाय मनखेमन गोबरधन ठौर म दुस्मनी भुला के मेल कर लेथें। देवारी आय के पहिली मौसम बदल जथे। ‘कुंवार गइस कातिक आ गे , बादर निच्चट फरियागे, देख देवारी लक्ठागे, धान लुवे के दिन आ गे ।Ó

Home / Raipur / गौरा के करसा रिग बिग- रिग बिग

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.