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राउत नाच अउ दोहा

locationरायपुरPublished: Oct 22, 2019 05:34:31 pm

Submitted by:

Gulal Verma

हमर संस्करीति

राउत नाच अउ दोहा

राउत नाच अउ दोहा

रा उत नाचा ह छत्तीसगढ़ के संस्करीतिक कला के पहिचान बन गे हे। छत्तीसगढ़ म यदुवंसी (राउत, अहीर, रावत, ग्वाला, गोपाल) मन ल बीर-बहादुर अउ जुझारू मनखे माने जाथे। गांव-गंवई ले सहर म हर बछर राउत बजार अउ मड़ई-मेला लगथे। राउत नाचा कब ले सुरू होइस, ए बताना कठिन हे। फेर, भगवान किरिस्न के समे म दुवापर जुग ले ए सल्लगहा परम्परा ह चलत आवत हे। जब गंड़वा बाजा के संग नचकरहा ह गीत गाथे अउ यादवमन बीच-बीच म परिवार, समाज अउ देस सुधारे बर जोस-खरोस के संग ‘दोहाÓ पारथे त रूंआ-रूंआ खड़ा हो जाथे।
सदा भवानी दाहिनी, सन्मुख रहे गनेस हो, पांच देव मिलि रक्छा करंय, बरम्हा, बिसनु, महेस हो।
एही जनम अउ वोहू जनम, फेर-जनम-जनम अहीर हो, चिखला कांटा मं माड़ी गड़े, दूध मं भींजे सरीर हो।
राउत-राउत का कइथव संगी, राउत गाय चरइया रे, दुरपति के लाज रखइया, बंसीवाला कन्हइया रे।
बइरी सन्मुख देख के काबर जी डराय हो, परान हथेली म राउत के, छाती रहय अड़ाय हो।
नारी के झन निंदा कर भइया, नारी नर के खान रे, नारी नर उपजावय भइया, धुरूव-परहलाद रे।
सुमिरन कर ले दाई-ददा के, गुरु के चरन मनावेंव हो, चउंसठ जोगिनी पुरखा के, जिनगी पार लगाए हो।
कनवा होगे कानून ह संगी, भइरा होगे सरकार हो कउन देखय दुखिया ल, कउन सुनय गोहार हो।
रूख-राई ल झन काटव, मुनगा ल देहा बचाय हो, मुनगा के फर हे पुस्टई, जेला छेवरहिन खाए हो।
बर काटे बेईमान रे संगी, पीपर काटे चंडाल हो आमा-लीम ल जेन काटय, अपन बढ़ावय काल हो।
हमर देस के धजा तिरंगा, तोला नवावंव सीस हो, देस के खातिर जान गंवाबो, मन भर देबो असीस हो।
पंच-परमेस्वर बनिन अनियायी, मचगे हाहाकार हो, जनता होथे अनजान रे भाई, नेता बनिन बेईमान हो।
कारज धीरे होथे संगी, काहे होत अघीर हो, समे आए रूख-राई फरय, कतको सींच नीर हो।
जइसे तंय लिए-दिए, तइसे देबो असीस हो, नाती-पूत ले तोर घर भरय, जियव लाख बरिस हो।
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