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लछमी महतारी तोर सवारी ‘उल्लूÓ बने बर तइयार हंव!

locationरायपुरPublished: Oct 23, 2019 05:24:00 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

लछमी महतारी तोर सवारी 'उल्लूÓ बने बर तइयार हंव!

लछमी महतारी तोर सवारी ‘उल्लूÓ बने बर तइयार हंव!

येदे इहू बछर देवारी मनाबोन। सक्ति के मुताबिक लछमी दाई के सुवागत करबोन। फेर, छिमा करहू लछमी महतारी, महंगई के सेती देसी घी के जगा डालडा के दीया जलाबोन। देसी घी ह अमरीत बरोबर होगे हे। अतेक महंगी के वोला बिसई ह हमर बस के बाहिर हे। दाई आपमन अंतरयामी अउ चंचल हव। फेर, एक बेर मोरो ऊपर किरपा कर देतेव। मेहा आपमन के वाहन ले कम नइअंव। आप चाहव त मोला अपन सवारी बना लेवव। अइसन करहू त मेहा आपमन ल घुमा-फिरा के अपनेच घर लाय करहूं।
घर के डेरौठी म बइठे गरीबहा ह मनेमन गुनत रहिस। हे दाई! ये सहिच बात आय के, देवारी म आपमन ल अपन घर लाने बर कतकोझन जुआ खेलथें। लाटरी बिसाथें। बड़का मनखेमन सेयर अउ सोना-चांदी बिसाथें। फेर, मोर गरीब करा अइसन साधन बर सक्ति नइये। काबर के मेहनत अउ ईमानदारी ले जतका कमाथंव वोतका म लट्टे-पट्टे घर-परवार के गुजारा हो पाथे। मेहा आपमन के मोर घर आए के अगोरा करत रहिथंव। फेर, हे दाई आपमन सदा मोर से मुंह फेर लेथव। हे महतारी, मोर अउ मोर लइकामन के गरीबी बर तरस खा अउ धन-धान्य के बरसा कर। आपमन मोर परोसी अमीरचंद के घर आके अब्बड़ धन-दउलत दे हव। फेर, मोर घर आए बर हिचकथस। मेहा अइसे का करेंव हंव? पापी, बेईमान तो मोर परोसी हे जउन ह कालाबाजारी, जमाखोरी अउ तस्करी करथे।
डेरौठी ले उठ के चउंरा म बइठ गे गरीबहा ह। तहां फेर दिमाग घूमे लगी। बुदबुदाय लगिस- दाई, मेहा रोज्जेच हलवा-पुरी खाय अउ नवा-नवा कपड़ा पहिने बर चाहथंव। फेर बेईमानी करई, लबारी मरई, धोखा देवई, लूटखसोट करई ह मोर वस के बात नोहय। मेहा तो चाहथंव के ईमानदारी अउ मेहनत से हमर किसमत बदल जाय। चउंरा ले उठ के रेंगान म माढ़े खटिया म ढलंग के सोचे लगिस गरीबहा ह। नेता, साहेब, बेपारी, उद्योगपति सबो जनता ल ‘उल्लूÓबनावत हें। हे दाई, अइसन म आपमन के वाहन बने से हो सकत केआपमन के मन ह मोर बर पिघल जाय। का अतेक बछर ले आपमन के पूजा करके, आपमन ल सुमर के, सादा जीवन-उच्च बिचार के पालन करके, सत के रद्दा म रेंग के गलती करत हंव? का आज ईमानदार, चरितवान होवई ह पाप होगे हे? अइसे लागथे के ये जमाना म बेईमानेचमन ल सुख भोगे के ‘बरदानÓ मिले हे! आपमन ल अपन घर लाय बर अधरम के काम करई जरूरी होगे हे! मोर बात ले आपमन के भावना ल ठेस पहुंचत होही त छिमा करहूं, लछमी दाई!
आजकाल ईमानदार मनखे ल बेवकूफ, मेहनती ल गदहा अउ सिधवा ल उल्लू समझे जाथे। पइसा, पद, ताकत वालेमन के सम्मान-गुनगान होवत हे। चाहे वोमन अधरमी-कुकरमी राहय, चाहे चोरहा-लबरा। जमाना उल्टा चलत हे, त अउ का-कहिबे।
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