परंपरा डाहर चलव
रायपुरPublished: Dec 03, 2019 04:13:03 pm
बिचार
हमर संस्करीति के अबड़ रूप हावय। मनखे, जीव जन्तु, रुख राई, तरिया, नदिया, पहाड़, परबत इहां तक नानकुन पथरा के घलो अबड़ महत्तम हावय। जइसे पारस पथरा, तुलसी चौरा म सालिकराम। फेर हमन अपन परंंपरा अउ संस्करीति ले अबड़ दूरियात हन। आज उही पारंपरिक जीनिस ल सरकार ह आपनावत हे। आगू सियारी पान, सरयी पान, फरसा पान के पतरी- दोना म खावन। जेकर ले पाना के पोसटिकता अउ सुवाद बने रहय अउ सरीर ह घलो सुवस्थ रहय। कही जिनीस पान अउ कागज़ म बांध के दे। अब तो जिहां देखव तिहां प्लास्टिक नजर आथे। घर म बहिर म हाथ म गोड़ म जम्मो जगह प्लास्टिक। ऐकर बिना कुछु बुता नइ होय
सरकार ह कतिक पाबंदी लगावत हे, तभो ले जइसे के तइसे। आनी-बानी के थारी, गिलास, कटोरी जम्मो प्लास्टिक के जेहा कभु नस्ट नइ होवय, न सरे-गले। ऐला गरवा घलो खाथे त बीमार होके मर जथे। तरिया, नंदिया के पानी ह परदूसित हो जाथे। प्लास्टिक से सिरिफ नुकसान होथे। मांजे धोये के डर ले हमर दाई- दीदीमन घलो प्लास्टिक के पतरी अउ गिलास के उपयोग करथें। ऐकर मिटाय बर सिरिफ सरकार ह पहल करथे। फेर आम मनखेमन घलो अपन तरीका ले ऐला बउरई नइ करे बर चाही। तभे पूरा तरीका ले प्लास्किट खत्म होही। वोकर जगा हमन अपन पारंपरिक तरीका ल अपनावन। पाना-पत्ता लें बने थारी अउ माटी ले बने गिलास अउ कप बउरन।