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महतारी भाखा के मान करव

locationरायपुरPublished: Jan 13, 2020 05:12:52 pm

Submitted by:

Gulal Verma

हमर भाखा

महतारी भाखा के मान करव

महतारी भाखा के मान करव

छत्तीसगढ़ राज बने उन्नीस बरस होगे। फेर अब तक महतारी भाखा के मान -सनमान बरोबर नइ होत हे। जतका जादा पढ़े लिखे मनखे होवत जात हे वोतके मान कमती होत हे। काबर के वोमन ल छत्तीसगढ़ी अनपढ़, गंवइया अउ अंगूठा छापमन के भाखा लगथे। आज हमर छत्तीसगढ़ के मनखेमन ल अपन भाखा-बोली के गियान नइये अउ दूसर के भाखा ल अपनात जात हे। ऐहा कोनो डहर ले ठीक नइये। येती स्कूल म लइकामन ल घलो हमर राजभाखा ल पढ़ाय-लिखाय के बने जुगत नइ होत हे। साग के फोरन डारे कस 3-4 पाठ ल सामिल करके अपन काम पूरा करे सही अब्बड़ सोरियात रइथे। ऐकर ले हमर भाखा पोठ नइ होय। ऐकर बर बने कछोरा भीर के भिड़े ल लगही।
28 नवम्बर 2007 के सरकार ह हमर भाखा ल राजभाषा के दरजा देके बिल पास करिन अउ छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म सामिल कराय के गोठ-बात घलो होय रिहिस। तब ले राजभासा दिवस ल मनात भर आवत हंन। दीया- बाती बार के एके दिन दिवस मनाथन अउ दिनभर छत्तीसगढ़ी म गोठियाथन। बिहान दिन ले नसा उतर गे, हिंदी म गोठ-बात चालू अउ बछरभर ल फुरसर होंगे फेर। अब कोन जनि आठवीं अनुसूची म सामिल कब होही वोला ऊपर वाले ल जानही। हमर ले नान्हे-नान्हे राज के भासा सामिल होगे त हमन आज ले देखत हन। आज ले हमरो भाखा ल हो जाना रिहिस।
हमर भाखा जइसन मिठ अउ कोई भाखा नइये। जेकर म अनजान अउ दूसर राज के मनखे ल घलो मोहे के सक्ति हाव। हमर भाखा के बियाकरन घलो हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा 1888 म बनके तैयार होगे हे। साथ म बोली, कोस, लोकोक्ति, मुहावरा सब्दकोस के कईठन किताब आ गे हे। कांति कुमार, संकर सेस, पालेस्वर वरमा, नरेन्द्र देव वरमा, रमेसचंद्र महरोत्रा, मन्नूलाल यदु, साधना जैन, गीतेस अनरोहित जइसे बड़का साहित्यकारमन के किताब ल सबोझन ल पढे के आज खचित जरूरत हे। जेकर ले हम अपन भाखा-बोली के बारे म बने असन ले जान सकत हंन। वइसे तो हमर बोली घाते नीक हावे जेकर बर कथे घलो..तोर बोली लागे बड़ मिठास रे छत्तीसगढिय़ा। फेर इहां के लोगनमन तो हिंदी अउ अब तो मोबाइल के जमाना म अउ दूु कदम आघु खस मिंझरा भाखा बना डारिन हे, तेला हिंग्लिस भाखा कहे जात हे। अइसने म भाखा समरिध कइसे बनही। अपन छोड़ के दूसर के बोली-भाखा ल पोटारत हे। आज के मनखेमन ल छत्तीसगढ़ी गोठियाय, लिखे, पढ़े बर लाज लगथे। देहाती अउ जंगलीमन के भाखा हरे कहिथेें। कोनो ल गोठियात देखही-सुनही त वोहा निचट अनपढ़ गंवार समझे ल लगथे। ए नइ कहय की अपन महतारी भाखा म गोठियात-बतरात हे जी। इही पाय के हमर भाखा ह आज पिछवाये हे जेकर बर ये राजभर के मनखेमन जिम्मेदार हे।
आज महतारी भाखा के मान-सनमान ल कोनो करत हे त वो गांव के अनपढ़, गंवारमन करत हें। अउ हमर पहली के नाचा, गम्मत, कलाकर, पंडवानी, भरथरी, गायक-गायिकामन हमर राजभाखा के मान-सममान ल देस-बिदेस म पहचान देवइन। जुन्ना कवि, साहित्यकारमन अउ अभी जेमन ल अपन भाखा के गियान अउ भाखा के सेवा करे के सनंसो हे वोमन छत्तीसगढ़ी बोलत, लिखत, पढ़त हें। फेर, अतकी ले हमर भाखा पोठ नइ होय। ऐकर बर सब छत्तीसगढ़ीवासीमन ल आघू आय ल पड़ही, तभे हमन सही मान -सममान कर सकबो।
आज के हमर नवा पीढ़ीमन ह तो हिंदी, हिंग्लिस, अंगरेजी ल झाड़े ल धर लेहे। अइसने म तो करलई हो जही। माने गांव म ही भाखा जीयत हे, सहर म तो कब के बीमारी के खटिया म परे हे। अधिकारी, कर्मचारी, बाबू, साहब, नेता, मंतरीमन ल अउ जादा लाज लगथे। छत्तीसगढ़ी समझ नइ आय कहिथें। हां एक बात ठउंका हे, नेता अउ मंतरीमन चुनई के पइत जरूर महतारी भाखा म गांव के मन संग गोठियाथे। सिरिफ नारा लगाय ले नइ होय..छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। ऐकर बर जम्मोझन ल भिड़े ल परही। छत्तीसगढ़ी म लिखन, गोठियान, पढऩ अउ वो भाखा ल आघू डहन बढ़ाय के कोनो बड़े-बड़े जतन करन।
हमर भाखा अभी के नोहे हे। वोहा अब्बड़ जुन्ना भाखा हरे। खैरागढ़ रियासत के राजा लछमीनिधि रॉय के दरबारी अउ चारन कवि रिहिन दलपत राव जेहा बछर 1494 में अपन साहित्य रचना म सबले पहली छत्तीसगढ़ी भाखा ले काम करिस।
लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित दे।
गढ़ छत्तीसगढ़ में न गढ़ैया रही।
पीछू कलचुरी राजा राजसिंह के दरबारी कवि गोपाल मिस्र ह बछर 1746 म अपन रचना ‘खूब तमासा मं हमर भाखा के उल्लेख करिन। ऐसे तो पहली ब्रज, अवधि, भोजपुरी भासा जेमे सुर, तुलसी के काव्य रचना हावे उहंा छत्तीसगढ़ी के सब्दमन अब्बड़ मिल जथे। रामचरित मानस म कतको छत्तीसगढ़ी सब्द भरे पड़े हे। ऐहि पाय से अवधि ल छत्तीसगढ़ी के सहोदरा कहे जाथे।
जेला अपन भाखा ल गोठियात लाज आवत हे वोहा का अपन भाखा के मान – सनमान करही। हमन खुद अपन भाखा के अपमान करे के जिम्मेदार हंन।

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