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मोर गांव म कब आबे लोकतंत्र

locationरायपुरPublished: Jan 20, 2020 03:56:07 pm

Submitted by:

Gulal Verma

गोठ के तीर

मोर गांव म कब आबे लोकतंत्र

मोर गांव म कब आबे लोकतंत्र

अंगना दुवार लीप बोहार के, डेरौठी म दीया बार के अगोरय वोहा हरेक बछर। नाती पूछय- कोन ल अगोरथस दाई तेंहा। ते नइ जानस रे, अजादी आय के बखत हमर बड़े-बड़े नेतामन कहे रहिन। जब हमर देस अजाद हो जही, त लोकतंत्र आही। उही ल अगोरत हंव बाबू। वोकर ले का होही दाई? लोकतंत्र आही न बेटा, त हमर राज होही। हमर गांव के बिकास होही। मनखे-मनखे म भेद नइ रही। गरीबी मेटा जही। जेकर पेट म एकठिन दाना नइये, तहू खावत-खावत अघा जही। जेकर करा पहिरे बर चेंदरा नइये, तेहा लुगरा-ओढऩा म लदा जही। जम्मो मनखे ल जिये के एके बरोबर अधिकार मिलही। एके बरोबर नियाव घला पाहीं जम्मो। गली-गली म रमायन के चौपाई, कुरान के आयात, सबद-कीरतन के गीत-संगीत सुनई दिही ।
वोला अगोरे बर दीया बारे के का जरूरत हे दाई? हत्रे भकाड़ू, काहिंच नइ जानस रे। इही दीया के अंजोर म लोकतंत्र ह रसता अमरही। दीया नइ बारहूं त बपरा ह कइसे जानिही, कोन गांव म समसिया हे। जउनला तैं अगोरत हावस न दाई, तेहा तोर गांव कभु नइ आवय। काबर नइ आही बेटा? हमर क्रांतिकारी नेतामन कहे हे ते लबारी थोरेन होही। अभु के नेतामन कस वोमन लबरसट्टा नइ होय बाबू। देस बर जान देवइया मनखेमन थोरेन लबारी मारही, तुंहर गांव म लोकतंत्र आही कहिके। बड़ बिसवास रहय वोला। कोनो बछर नइ छूटे। डोकरी दाई हरेक छब्बीस जनवरी के लोकतंत्र ल अगोरत अपन डेरौठी म दीया बारके बइठे रहितिस। वोकर नाती वोला रंग-रंग के समझाय, फेर वोहा गांठ बांध डरे रहय, के छब्बीस जनवरी आही तहां ले, लोकतंत्र आही। हमन राज करबोन। हमर भुइंया के भाग जागही।
डोकरी दई ल फेर चुलकइस, नाती ह। दाई, तेंहा बिसवास नइ करस। दिल्ली म उही दिन ले आ गे हे लोकतंत्र ह। फेर, इहां आय के नांव नइ लेवत हे। का? दिल्लीम आ गे हे, उही समे ले! देखे बाबू, मेहा कहे रहेंव न। हमर क्रांतिकारीमन लबारी नइ मारय। फेर, इहां काबर नइ हमाथे वोहा? डोकरी दाई सोचे लागिस। कोनो लोकतंत्र ल वोकर गांव म आयबर छेंकथे का? तभे लोकतंत्र वोकर गांव कोती निहारत नइये। हमर दीया के अंजोर कमती हो जथे का? तेकर सेती वोला दिखय नइ। अभु सुरहुत्ती कस दीया बरे लागिस चारों मुड़ा। अब कइसे नइ दिखही रे लोकतंत्र, मोर गांव के रद्दा ह तोला। फेर नइ अइस लोकतंत्र। नहाक गे उहू बछर। नाती फेर चुट ले कहि दीस-लोकतंत्र ह अंधरा हे दाई। तेंहा कतको कस दीया बार, वोला का फरक परही। हत रे बैरी! पहिली नइ बताय रहिते, अंधरा हे लोकतंत्र कहिके। काबर जगजग ले दीया बार के अगोरतेंन। जाथंव दिल्ली, देखहूं कइसना हे। गांव आय बर, नरियर, पान, सुपारी धरके मनाहूं।
चलदिस, न पता जानय न ठिकाना। कोन ल अउ कइसे पूछय। सुरता अइस, उंकर नेता रहिथे। इहां उही जानत हे लोकतंत्र ल। उही मिलवाही मोला। बड़ हांसिस नेता। फेर सोचिस, अतका दूरिहा ले आहे ममा दाई ह। एकर मांग पूरा करे लागही। इही लोकतंत्र हरे कहिके, भेंट करा दीस एकझन ले। डोकरी दाई वोकर दरसन करके बड़ खुस रहिस। बड़ सुंदर रहय। दग-दग ले सादा सुग्घर कपड़ा लत्ता पहिरे-ओढ़े बइठे रहय। दाई सोंचथे, लोकतंत्र के आंखी नइये, अंधरा हे वोहा कहिके, नाती टूरा कइसे लबारी मारिस तेला। जइसे गिस तीर म, तइसे वोहा उठे लागिस। दाई गोठियावत हे। वोहा दूसर डहर, अपन थोथना ल टेकाय मुचुर-मुचुर करत हे। थोरेच बेरा म टुंग ले उठिस। डोकरी दाई ल धकियावत, कोन जनी कते कोती मसक दिस। तुरते लहुटगीस डोकरी दाई ह। ऐहा अंधराच नोहे, भैरा अउ नकटा घला कस लागथे। भैरा हे तभे सुनिस नइ मोर एको गोठ ल।
आतेच साठ बड़ गारी बखाना करीस डोकरी दाई ह। मोर अतका बछर के तपसिया भोसा गे। मेहा जाने रहितेंव अइसने रहिथे लोकतंत्र, त कभु वोकर रद्दा नइ जोहतेंव। नाती बड़ हांसिस। तेंहा जेकर तीर गे रहे न दाई, तेहा लोकतंत्र नोहय। अभु तैं देखे कहां हस लोकतंत्र ल। वोहा कोनो मनखे थोरे आय, दाई। अई , मेहा मनखे हरे लोकतंत्र ह कहतर रहेंव, बेटा। दाई के भरोसा फेर जाग गे। मनेमन अपन गारी बखाना के सेती पछतावत रहय। अपन कलपना के लोकतंत्र ल देवता समझे अभु घला अउ काहय- मोर लोकतंत्र ल आवन दव, तहां ले बताहूं रे तुमन ल। मोला धकिया हस, तेकर भुगतना ल भुगता के रहूं।
समे नहाक गे। डोकरी दाई निच्चट सियान होगे। बीमार परगे। तैं कब आबे लोकतंत्र मोर गांव म? खटिया म पचत रहय, फेर उइसनेच रटय दिनभर। पान परसाद खवा डरीन । राम-राम बोल दाई, राम-राम। फेर वोकर मुहूं ले कहां निकलय राम-राम के गोठ। फकत लोकतंत्र बसे रहय, उहीच ल रटय। तैं आते, मोर जान बचाते। महू ल कुरसी म बइठारते। मोर गांव के भाग जगाते।
गीता के इसलोक सुनत, डोकरी दाई उदुप ले उठ के बइठ गे। जम्मोझिन सुकुरदुम होगे। दाई कइसे करथे? अभु तोला फुरसुत मिलिस लोकतंत्र, मोर गांव म आय के? मोर जाय के पहरो म आय त। मेहा काला देखहूं। पहिली आते त,महूं थोरकुन तोर मजा ले लेतेंव। तोर संग हांस लेतेंव, गोठिया लेतेंव। दाई ह पगला गे हे लोकतंत्र के पाछू। ऐकर भरम ल टोरना हे। लोकतंत्र के असलियत ल बताना हे। तभे ऐहा जाय के बेरा राम-राम बोलही। नाती कहे लागिस- तेंहा दिल्ली गे रहे, त जेन मनखे ले तोर भेंट होय रहिस, तउने लोकतंत्र आय। तोर भरोसा झन टूटे कहिके, झूठ बोलेंव। वोहा सहीच म अंधरा, कनवा अउ नकटा आय। इही लोकतंत्र के सेती तोर गांव म पक्की सड़क, नाली, इसकूल नइ बन सकिस। ये लोकतंत्र तोर देस ल बेचत हे, दाई । बने करीस तोर तीर म नइ ओधीस। नइते तहूं ल बेंच देतीस। तेहा ये लोकतंत्र के मोह ल छोड़, जाय के बेरा म राम-राम बोल। जइसे दाई ल हलइस, दाई ल नइ पइस। दाई के जीव कोन जनी कतेक बेर उडिय़ागे। डोकरी दाई चल दिस। अइसने कतको झिन आवत-जावत हें दुनिया म। हमेसा धोखा खावत हें । फेर, दीया बार के अभु तक अगोरत हें, अपन सपना अउ कलपना के लोकतंत्र ल।
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