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जनतंत्र के मायने जनता उप्पर राज करई नोहय

locationरायपुरPublished: Jan 22, 2020 04:59:50 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

जनतंत्र के मायने जनता उप्पर राज करई नोहय

जनतंत्र के मायने जनता उप्पर राज करई नोहय

हर बछर जइसे इहू बछर गनतंत्र दिवस आ गे। हमन ल खुसी हावय के हमर गनतंत्र 70 बछर के होगे। याने के बुढ़वा होगे। काबर अतेक उमर के मनखेमन ल सियान माने जाथे। करमचारीमन ल घलो बुढ़वा मान के रिटायर कर देथें। ये अउ बात हे के हमर नेतामन कभु रिटायर नइ होवंय। बुढ़ापा म वोकरमन के पूछ-परख अउ बढ़ जथे। जतके जादा उमर, वोतके बड़का पदवी घलो मिल जथे!
वइसे हमर गनतंत्र म सबले जादा बेकदरी ‘गनÓ के होवय हे। गन माने आम मनखे। आम मनखे ह ‘ढोलकÓ होगे हे। नेतामन तो आम मनखेमन के अड़बड़ बाजा बजाथें। ऐकर कारन घलो हे। जउन नेता अउ वोकर पारटी वालेमन आम मनखे के जतके हित के गोहार पारथें, वोकरमन के वोतके फाइदा होथे। आम मनखेमन गरीब ले अउ गरीब होत जाथे। फेर, नेतामन के धन-दउलत ह मड़माड़े बाढ़त जाथे। वोकर सेती जउन पारटी ह सत्ता पा लिस, कोनो नेता लकुरसी मिल गिस, मंतरी बन गिस, तहां ले झन पूछव। कुरसी ले उतरे के नामेच नइ लंय। फेर, ये देस म नेतामन ले कोनो पूछइया नइये के तुंहर तीर अतेक संपत्ति कहां ले आइस? कइसे आइस? कोन दिस? काबर दिस? बदला म का देव? कइसे देव? काकर अहित करके देव? जनता के हक मारेव, के देस ल बेच के देव? आपमन देस अउ जनता के दुरदसा ल देखव। गरीबी, महंगई, असिक्छा, बेरोजगारी, भरस्टाचार, मिलावट, अपराध, आतंकवाद, माओवाद बाढ़त जावत हे। चरित, नैतिकता, ईमानदारी, सुभिमान, अच्छाई, भाईचारा, सद्भावना, इंसानियत, देसपरेम, मानवता कमतियात जावत हे। पानी, बिजली, सड़क, सिक्छा, सुवास्थ, सफाई, रोटी-कपड़ा-मकान अउ नियाव बर आम मनखे आजो तरसत हें।
कानून ल अपन खिंसा म लेके चलइया मनखे के घलो कमी नइयेे। इहां पइसा म ईमान-धरम, कानून- नियाव सबो जिनिस बेचावत हे। अपन सुवारथ बर देस अउ समाज के आन-बान-सान ल बेचइया देस के दुस्मन बाढ़त जावत हें। (देखे-सुने हव न कइसे जम्मू-कस्मीर म जइसे एकझन पुलिस अधिकारी ह दूझन आतंकवादीमन ल अपन गाड़ी म बइठार के दिल्ली लानत रिहिस।) देवतामन के भुइंया म माइलोगिनमन के इज्जत रोज्जेच लुटावत हे। संविधान बनइयामन के मंसा पूरा नइ होवत हे। जनता के भलई ल ताक म रखके नेता, मंतरी, साहब, बेपारी, उद्योगपति, पूंजीपतिमन मजा उड़ावत हें। राजा-महराजा अउ अंगरेजमन के राज चलदिस, फेर वोकरेमन कस राज आजो चलत हे, तइसे दिखई देथे।
हद तो ये हावय के जब ‘जनता बर, जनता के दुआरा, जनता के राज मÓ, जनता ह ‘परजाÓ अउ सरकार चलइयामन ‘राजाÓ आजो बने हें। कानून के रखवारमन कानून तोड़त हें। नियाव मिले म गरीब अउ अमीर म भेदभाव होवत हे। जादाझन मनखेमन गनतंत्र दिवस ल सिरिफ छुट्टी मनाय, घूमे-फिरे, मउज-मस्ती मनाय के दिन समझथें, त अउ का-कहिबे।
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