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लबरामन, लबरामन से कहिन- लबरामन के जमाना हे!

locationरायपुरPublished: Feb 16, 2020 11:13:02 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का-कहिबे…

लबरामन, लबरामन से कहिन- लबरामन के जमाना हे!

लबरामन, लबरामन से कहिन- लबरामन के जमाना हे!

लबारी अउ सच म कतेक अंतर हे? साधु ह ए सुवाल अपन चेलामन ल सिक्छा देवत करिस। सबो चेला चुप। दूसर साधुमन घलो चुप। सबके बोलती बंद। तभे साधु के सेवा करइया नोनी ह कहिस- साधु बबा! लबारी अउ सच के बीच म सिरिफ वोतके अंतर हावय जतका आंखी अउ कान के बीच म। आंखी देखे सच अउ सिरिफ कान के सुने ह लबारी। साधु अकचका गे। जब एक नानकीन नोनी ह सच अउ लबारी ल समझ सकथे त फेर समझदारमन काबर बइहा जथें। काबर वोमन सच अउ लबारी के फरक ल नइ कर सकंय।
मितान! लबारी के फरेबी खेल बर एकझन कवि ह कहे हे – लबरामन, लबरामन से कहिन, सच बोलव। सरकारी ऐलान होय हे, सच बोलव। घर के भीतर लबरामन के एकठिन मंडी हे, बेस (दरवाजा) म लिखे हावय, सच बोलव। नदिया म बुडिऩ वोमन अपने रहिन, फेर डोंगा म छेदा कोन करिस, सच बोलव।
मितान! कभु-कभु तो लगथे के हमन लबरामन के मंडी म खड़े हंन। जिहां लबारी के बेचइया-बिसइया अउ वोकर कोचिया-दलाल मनमाड़े हल्ला-गुल्ला के संग सामान बेचत हावंय अउ वोकरमन के बीच फंसे एक सधारन गिराहिक कस हमन कुछु समझ नइ सकत हंन अउ ऐती-वोती देखत हावन के कउन सच काहत हे अउ कोन लबारी मारत हे।
मितान! जब बिदेसी एजेंसीमन के आंकड़ा ह हमर देस के पक्छ म होथे त सरकार ह चिल्ला-चिल्ला के ढिंढारा पिटथे। अपन पीठ ल अपनेच ह थपथपाथे। फेर, वोकरमन के आंकड़ा ह कहुं हमर देस के पक्छ म नइ रहय त फेर मुंह लुकाथें, बांचे बर कोलकी खोजथें। जइसे हाल सत्तापक्छ के रहिथे, उही हाल बिपक्छ डहर घलो रहिथे। लबरा ऐती घलो हे त वोती घलो हे। कभु-कभु तो अइसे लागथे के दूनों डहर म लबरा-लबरा के खेल चलत हे। कोन कतेक सफई से लबारी मार सकथे।
मितान! लबारी सुनइया याने आमलोगन के हाल घलो बने नइये। जनता ह घलो अपन बुद्धि, सोच ल कोन्टा म रखके अपन पसंद के मुताबिक सत्तापक्ष-विपक्छ के लबारी ल धर के वोला सच मान लेथें। ये जानत-समझत के वोहा जेन लबारी ल सच काहत हे, वोहा सच बिल्कुलेच नइये। अइसन म एकठिन गीत सुरता आवत हे – ‘सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला…। अब लबरा के राजा कोन ए, ऐला तो देस के जनता ह बताई, जानही, तय करही। हमन कोन होथन के कोनो ल लबरा कहइया।
मितान! जनता ह तो बने समझ के नेता चुनथे। फेर, आजकाल ककरो कुछु भरोसा नइये। ‘जेती बम- वोती हमÓ के जमाना आ गे हे। पद, पइसा अउ कुरसी के लालच म पारटी बदलत समे नइ लगय। चुनई कुछु अउ छाप वाले पारटी से लड़थे, फेर जीते के बाद जेन छाप वाले पारटी ल हराय रहिथे उही म जाके खुसर जथे। पानी पी-पी के कोसइयामन ह सबले बड़का हितवा-मितवा बन जथे।
जब सुवारथ के जमाना म ईमान-धरम कमतियावत हे। नैतिकता, चारित्रता, ईमानदारी गिरत जावत हे। लबारी मरइया, धोखा देवइयामन मजा मारत हें, मउज उड़ावत हें, त अउ का-कहिबे।
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