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दुनिया म मनखे के इच्छा के न ओर हे, न छोर

locationरायपुरPublished: Jul 06, 2020 06:19:09 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का- कहिबे

दुनिया म मनखे के इच्छा के न ओर हे, न छोर

दुनिया म मनखे के इच्छा के न ओर हे, न छोर

माटी से सबसे जादा परेम लइकामन करथें अउ नफरत बड़ेमन। नानकीन लइका ल माटी म छोड़ दव। कभु माटी के घर बनाही, कभु मुड़ म डार लिही। कभु माटी म घोलंड जही। अइसे खेल ल देख के लइका के दाई-ददा चिल्लाहीं अउ लइका ल माटी म खेलत देख के लजलजहा हो जही। अइसे तो माटी म खेलई ह लइका के पराकरीतिक गुन आय। अब तो माटी अउ लइका ऊपर सोध करके बिग्यानिकमन तको कहिथें के जउन लइका माटी म खेलथे, वोमा रोग-राई, बीमारी ले लड़े के सक्ति याने परतिरोधक छमता जादा होथे।
फेर, पता नइ वो कोन मूरूख रिहिस जउन ह हमन ल माटी से घीन करे बर सिखाइस। राजनीति अउ साहित्य म तो एक जोरदार मुहावरा हे- ‘अपन माटी से जुड़व।Ó कईझन नेतामन तो ये मुहावरा ल अतेक जोरदरहा अमल करथें के जब मौका मिलथे अपन नानपन के दिन ल सुरता करके आंसू बोहाथे। वो अपन बालपन के दुख-पीरा, तकलीफ ल अइसे बताथे के मतदातामन ह वोकर डहर खिंचाजय। कतेक दुख पाय हे बेचारा ह कहे बर धर लंय। वोइसने कतकोन साहित्यकारमन अपन नानपन के सुरता म कविता-कहिनी लिख डरथें।
हमर सियानमन कहे हावंय के इच्छा के कोनो अंत नइये। अइसन म गालिब के एकठिन सेर सुरता आवत हे – ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।Ó यानी हरेक इच्छा ह मनखे के परान ले सकत हे। इच्छा के मायने का हे? ये कि जउन हे वोमा मोला मजा नइ आवत हे, आनंद-सुख नइ मिलत हे अउ जउन मिलही वोमा मोला मजा आही, आनंद-सुख मिलही। अउ जब वोहा मिल जही, तब वोमा मोला न मजा आही, न आनंद-सुख मिलही। अउ जादा, अउ दूसर मिले बर चाही।
जब मनखे रेंगत-रंेगत इहां-उहां जाथे तब सइकिल के इच्छा होथे। सइकिल आही त मोटरसाइकिल के मन। मोटरसाइकिल रिहिस त कार के इच्छा। ये इच्छा ककरो दूसर के नइ, हमर ए। एक इच्छा ह एकठिन भीख के कटोरा ए। वो इच्छा पूरा नइ होवय त मन म दूसर भीख के कटोरा आ जथे। ऐहा बड़ जोरदरहा बात आय के हमर भारत ह अइसन देस आय जिहां बड़े-बड़े राजा-महराजा, सम्राटमन सिंहासन ल लात मार के भीख के कटोरा हाथ म धर लिस। भरथरी राज छोड़के जोगी बनगे। राजकुमार सिद्धार्थ बुद्ध बनिस त महावीर ह राजकाज छोड़ दिस।
बुद्ध ह अपन संन्यासीमन ल भिक्छु (भिखारी) कहिस। एक पइत बुद्ध ह एकठिन गांव म भीख मांगत रिहिस। एकझन गौंटिया ह वोला देखके बोलिस- तोर जइसे सुग्घर, सुवस्थ मनखे भिखारी? चल मोर एकलौती बेटी के संग बिहाव कर ले अउ मालिक बन जा। बुद्ध ह हांस के बोलिस- कास, सच होतिस के मेहा भिखारी होतेंव अउ तेहा मालिक। तुंहरे जइसे लोगनमन ल अपनआप ल मालिक समझत देख के मेहा भीख के कटोरा ल हाथ म लेय हंव। जेन दुनिया म भिखारी अपन-आप ल मालिक समझथे, वो दुनिया म मालिकमन ल अपन-आप ल भिखारी समझइच ह बने हे। जब दुनिया म इच्छा के कोनो दाई-ददा नइये। कोनो ओर-छोर नइये। वोट के भिखारी नेतामन अपन-आप ल देस के मालिक समझथें अउ असल मालिक जनता भीख मांगत किंजरत रहिथे, त अउ का-कहिबे।

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