भोजली बने फसल के परतीक
परब बिसेस

छ त्तीसगढ़ राज म लोक संस्करीति, लोक परब अउ लोक गीत ह हमर जिनगी म रचे-बसे हाबय। इहां हर परब के महत्तम हे। भोजली घलो ह हमर तिहार के रूप म आस्था के परतीक हावय। भोजली ह एक लोकगीत हे। सावन के अंजोरी पाख के पंचमी तिथि ले के राखी तिहार के दूसर दिन याने भादो के पहिली तिथि तक हमर छत्तीगढ़ राज म भोजली बोथें। बड़ सरद्धा भगती भाव ले माइलोगनमन भोजली गीत गाथे।
असल म ये समे धान के बोआई अउ सुरुआत के निंदाई-गोड़ाई के काम ह खेत म खतम होत्ती आये रहिथे। किसान के बेटीमन बने बरसात अउ बने फसल के मनोरथ मांगे के खातिर फसल के परतीकात्मक रूप म भोजली के आयोजन करथे।
सावन के दूसर पाख याने पंचमी याने नागपंचमी के दिन गहूं या जवा ल चिखला के माटी ल लाके वोकर ऊपर राख ल छिंच के गांव म माता चौरा, ठाकुर देव या फेर घर के पूजा-पाठ वाले जगा म जिहां अंधियार रहय तिहां बोय जाथे। हरदी पानी छिंच-छिंच के बड़े करथे। घर म कुंवार बेटीमन ऐकर बड़ सेवा-जतन करके पूजा करथें। जइसन देवी मां के जसगीत नवरात म गाथें, वइसने भोजली बोय के बाद वोकर सेवा म सेवा गीत, सिंगार गीत जुर-मिल के गाथें। माइलोगनमन अपन भोजली दाई ल जल्दी-जल्दी बाढ़े बर अरज करथें अउ कहिथें-
देवी गंगा, देवी गंगा लहर तुरंगा।
हमरो भोजली देवी भीजे आठो अंगा।
माड़ी भर जोंधरी, पोरिस कुसियार हो।
जल्दी बाढ़ौ भोजली, होवौ हुसियार।
अंधियार जगा म बोय भोजली ह सुभाविक रूप ले पिंवरा रंग के हो जाथे। भोजली के पिंवरा होय के बाद माइलोगनमन खुसी परगट करथे अउ भोजली दाई के रूप ल गौर बरनी अउ सोना के गहना ले सजे बता के अपन अरा-परोस के परिस्थिति ल घलो गीत म मिलाथे।
गये बजार, बिसाई डारे कांदा।
बिसाई डारे कांदा।
हमरो भोजल रानी, करे असनांदा।
ह हो देवी गंगा।
देवी गंगा, देवी गंगा, लहर तुरंगा।
हो लहर तुरंगा।
तुहरो लहरा भोजली, भिजे आठो अंगा।
ह हो देवी गंगा।
भादो के पहिली तिथि के भोजली माता बिसरजन बर कुंवारी नोनीमन टुकनी म लेके मुड़ी म बोह के एक के पाछू एक करके गांव के तरिया म ले जाथे। फेर भोजली दाई ल बने फसल के मनोरथ के साथ तरिया के पानी म बिसरजन कर देथें। भोजली के बिसरजन के बेरा थोरकन भोजली ल गांव के मनखेमन भगवान म चढ़ाथे अउ सियानमन ल येला देके गोड़ ल छू के आसीस लेथे। भोजली के दू-चार पउधा ल बेटी-माईमन एक-दूसर के कान म खोंच के तीन-तीन पीढ़ी बर मितान, गिया बदथें अउ सगा जइसे मानथे।
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