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दुनिया म बदनामी ल ‘नाव होवई समझे के समे

locationरायपुरPublished: Sep 16, 2020 05:08:39 pm

Submitted by:

Gulal Verma

का- कहिबे

दुनिया म बदनामी ल 'नाव होवई समझे के समे

दुनिया म बदनामी ल ‘नाव होवई समझे के समे

समारू कहिस- संगी, मेहा दुकान ले एक जोड़ी पनही बिसा के लानेंव अउ पहिन के दिनभर गांव में किंजरेंव। दूसर दिन वोला लहुटाय बर गेंव। मेहा दुकानदार ल कहेंव, ये पनही ह मोर पांव ल चाबत (काटत) हावय। वोहा बोलिस- ऐमा पनही के कोनो दोस नइये, तोर पांव के हे। जरूरी नइये के पनही के बिचारधारा ह तोर पांव के चाल-चलन ले मेल खावय! मेहा ऐकर बर कंपनी ल जिम्मेदार बतायेंव। मेहा जोर देके कहेंव कि कंपनी खराब हे, तेकर सेती मेहा ये पनही लहुटाय बर आय हंव। दुकानदार बोलिस, ऐमा का फरक परथे कि पनही कोन कंपनी हे आय। पनही तो पनही ए। फेर, वोहा चमड़ा के होवय, के कपड़ा के।
मोला लगिस के दुकानदार पढ़े-लिखे अउ बने जानकार किसम के मनखे हे। मेहा जोर देके कहेंव, ये पनही ल अब मेहा अपन तीर नइ रख सकंव। ऐहा मोर कोनो काम के नइये। दुकानदार बोलिस- भइया, ऐहा पनही आय, कोनो राजनीतिक पारटी नोहय। जेला, जब मन चाहिच छोड़ देच। दूसर पारटी बना लेच या दूसर पारटी म चल देच। पनही बिसाय के समे अइसन कोनो सरत नइ रहिस कि पनही ल पहिरे के बाद लहुटा सकथव। सबो गराहिकमन अइसने करे बर धर लिहीं त हमर दुकानदारी के का होही?
दुकानदार सुझाव दिस। पनही जेन जगा काटथे, वो जगा म तेहा कोनो फिरिया या पोनी लगा ले। दू-चार दिन बाद म पनही के कटई ह नइ जनावय। तहां इही पनही तोला सुख देही। वो दिन ल तेहा सुरता कर, जब ऐला बिसाय बर आय रहेस त कतेक खुस रहेस। समझ म नइ आवय कि ये पनही ह तोर बर परेसानी कइसे बनगे? कहुं, कोनो ल पारटी छोड़त देखके तहुं ह पनही ल लहुटाय बर तो नइ आय हस? अइसे लागथे तोला पनही ले जादा रिस कंपनी बर हावय। पनही ह कंपनी के करनी ल काबर भुगतही?
समारू के पनही के किस्सा ल सुनके तिहारू कहिस, संगवारी! अब तेहा ‘पनही पुरानÓ सुन। चोर-चंडाल कस मनखेमन नवा पनही बिसाय बर दुकान नइ जावंय। सिद्धो मंदिर पहुंचथें। भगवान के दरसन करके पूजा-पाठ करथें। हूंम-जग देथें। अगरबत्ती जलाथें। नरियर चघाथें, तहां ले मंदिर म अपन टूटहा जुन्ना पनही ल छोड़ के दूसर के चमचमावत नवा पनही ल पहिर के लकर-धकर घर लहुट जथें। अइसे तो बीच-बीच म देस-दुनिया म पनही के महत्तम अड़बड़ बाढ़ जथे। नेतामन उप्पर पनही फेंकथें त नेतामन के संगे-संग पनही फेंकइयामन के नांव ह घलो चारोंमुड़ा बगर जथे।
समारू कहिस- संगी! कतकोन गरीब मनखेमन ल जिनगीभर पनही पहनई नसीब नइ होवय। बिन पनही के खुररा रेंगत रहिथें। तभो ले पनही के भाव ह बाढ़तेच जावत हे। दुकानमन म पनही बिसइयामन के भीड़ लगेच रहिथे। लागथे पनही पहिने बर कम, दूसर उप्पर फेंके बर जादा बिसावत हें।
जब समाज म नैतिकता नदावत हे। चरित गिरत हे। बेईमानी, सुवारथ बाढ़त हे। जेन थारी म खावत हें, उही थारी म छेदा करत हें। नेतामन के पारटी बदलई ह पनही बदलई बरोबर होगे हे। बदनाम होवई ल नाव होवई समझत हें, त अउ का-कहिबे।
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