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का करंव

locationरायपुरPublished: Oct 12, 2020 05:08:52 pm

Submitted by:

Gulal Verma

बिचार

का करंव

का करंव

का करंव? ये सुवाल हर नवजवान टूरा के मन म जरूर आथे। फेर, ये सुवाल मोर मन म कभु नइ आइच। एक दिन मेहा कबड्डी खेलत रहेंव। मोर संगवारी ह आके कहिस – राम तैं 12वीं पास होगेस। तोर बाबू ह बलात हे। मंय घर गेंव त कहिस- आईटीआई जा। मंय चल देंव। फेर, एक दिन प्रेक्टिकल म करेंट मारिस, तहां दुबारा नइ गेंव। बाबू ह खिसियाइस अउ कालेज भेज दिस। उहां घूमे के चक्कर म फेल होगेंव। अब बाबू-दाई दूनों बौरागे।
दाई कपड़ा धोय बर बंद कर दिस। बाबू खेत म काम कराय। फेर, मंय काम नइ कर सकेंव। बाबू ह किराना दुकान म काम करे बर भेज दिस। एक दिन एकझन गुरुजी ह सामान लेय बर आइस। तब दूझन चोरमन वोकर पइसा ल लूटत रहंय। मेहा दूनों चोर ल पक लेंव। गुरुजी मोहा कहिस- कबड्डी खेलबे। मेहा तुरते हव कहिदेंव। काम छोड़ के घर गेंव त बाबू ह मोला दू थपरा दे दिस। दाई घलो अब्बड़ खिसियाइस।
पहिली पइत मेहा बाबू ल जवाब देंव। सब काम ल तो तुहंर मन के करें हंव। एक घंव मोला मोर मन के करके देखन दव। बाबू कुछु नइ कहिस- फेर, मंय कबड्डी खेले जाए लगेंव। उहां मोर खेल ल देख के सब खुस होगिन। मोला तो पता घलो नइ रिहिस के मेला अतेक बढिय़ा कबड्डी खेलथंव। धीरे-धीरे मेहा बड़का खिलाड़ी बन गेंव। बाबू ह मोर ऊपर गरब करथे। अब दाई ह नइ, नौकरानी ह कपड़ा धोथे।
संगवारी हो, हर मनखे के भीतर कलाकार होथे। फेर, कला के पता घर म बइठ के नइ चलय। मैदान म जाए ल परथे। मंय सब काम करेंव, फेर मोर काम कबड्डी रिहिस। घर म बइठ के सोचबे त मंजिल बस दिखथे अउ घर ले निकल के चलब तो रद्दा दिखथे।

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