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दहेज बैरी होगे मुड़ पीरा

locationरायपुरPublished: Oct 19, 2020 04:49:52 pm

Submitted by:

Gulal Verma

नाटक

दहेज बैरी होगे मुड़ पीरा

दहेज बैरी होगे मुड़ पीरा

बुधारू (सुवारी ले) – नोनी के दाई सुनत हस ओ। काली जुहर नोनी ल देखे बर सगामन अवइया हे। भगवान ह कहूं बने-बने जांवर-जोड़ी मढ़ा देतिच त असो नोनी के हाथ पिंवरा कर देतेन। मोर गरीब बाप के छाती जुड़ा जातिच।
सुवारी- हवजी, देख तो हमर नोनी ह देखते-देखत बिहाव के सिरजोर होगे। कतका मया अउ दुलार ले पाल-पोस के राखे रहेन। अब पर घर के हो जही हमर नोनी ह।
बुधारू- हां नोनी के दाई, ये तो संसार के रित हरे। बेटी के जात अउ पूस के रात सदा दिन नइ रहे कहिथें।
बेटी- दाई-बाबू मंय तुमन ल छोड़ के कहूं नइ जावंव।
आघू दिन
नोनी के दाई सगामन आ गे हे ओ। नोनी ल तियार करके चाय-नास्ता धरा के लानबे।
सुवारी- हहो, मेहा जम्मो जतन ल करत हंव। ले जा सगा- पहुना मेर बइठव तुमन।
बेटी- चाय-नास्ता देके घर भीतरी चल देथे।
पहुना- हमन ल तो पसंद हे भई तुंहर बेटी ह। हमर डहर ले रिस्ता पक्का हे। आपमन जउन दिन बोलहू, तउन दिन लगन तिथि ल बांध देबो हमन। ले फेर हमन चलत हन समधि महराज। हमन अउ सोर-संदेस ल भेजबो…जोहार।
थोकिन दिन के बाद
बुधारू कहिस, नोनी के दाई नोनी के बिहाव ह रामनवमी बर माढ़ गे हे। फेर संसो लागथे के हमन गरीब मनखे, कइसे करके अतेक बड़का बुता ले उद्धार होही कहिके।
सुवारी- संसो झन कर जी, कोनो डहर ले कइसनो कर के भगवान ह पार लगाही। घर म एकठन डोली के थोर बहुत ओनहारी धान ह हे अउ कोनो डहर ले उधार बाढ़ही करके पार लगही जी।
दू चार दिन बाद
बुधारू कहिथे- सुनत हस ओ नोनी के दाई। नेवता पहन ह सबो डहर नेवता गे हे। गांव -बस्ती जम्मो कोती चेता डारे हंव।
सुवारी- हवजी नेवता पहन घलो होगे। लेनी-देनी जम्मो चीज घलो होगे। फेर लेनी-देनी के जिनिस ह जांगर टोर डारिच।
बुधारू- का करबे नोनी के दाई। सियानमन कहिथें – बिहाव करके अउ घर बना के देख।
बिहाव के एक दिन पहिली
बेटी के ससुराल वालेमन घर आथें। समधि महराज हमन एकठन बात फरी-फरी करे बर आए हंन भई। वोकर बाद ही ये बिहाव ह हो पाही।
बुधारू- बताव न समधि महराज। हमर ले कुछु काहीं गलती होगे का?
ससुराल पक्छ- हमन दहेज़ के बात करे बर आए हन समधि महराज। हमरमन के कुछ मांग हे। जइसे दहेज म फटफटी, फ्रिज, कूलर, अलमारी अउ अभी के जमाना के नवा-नवा जम्मो जिनिस दे पाहू तभे बिहाव हो पाही, नइते नइ हो सकय।
बुधारू (रोवत-रोवत)- अइसन झन करव समधि महराज। मोर इज्जत अब तुंहरे हाथ म हे। मोर नाक ल कटाये ले बचा लेवव। गांव-बस्ती, सगा-पहुना जम्मो कोती नेवता पहन नेवता गे हे। मेहा गरीब मनखे। इसन जिनिस कहां ले दे पाहूं!
ससुराल पक्छ- हमन कुछु नइ जानन जी। कहूं तुहर मन आवत होही त रतिहा-बिहनिहा जुहर ले बता देहू। अइसन बोल के वोमन चल देथें।
बेटी (रोवत-रोवत)- दाई-बाबू तुमन संसोझन करव। तुंहर दु:ख-पीरा के सबले बड़का कारन मेहा हरंव। भगवान ह मोला जनम दे के पहिली काबर नइ मार डारिच।
बुधारू (रोवत-रोवत) – नइ बेटी, तंय अइसन झन गोठिया ओ। मोर करम अउ मोर गरीबी ह मोर ले खेलवाड़ करत हे। ऊपर ले ये दहेज बैरी ह मोर बर मुड़-पीरा होगे, बेटी।
बेटी (मनेमन म सोचत-सोचत)- भगवान अब ये गांव-बस्ती, समाज म मेहा का मुंह देखाहूं। अब मेहा अपन दाई-ददा के अउ जादा बोझा नइ बन सकंव। उंकर दु:ख पीरा के कारन बन के मेहा बिहाव नइ कर सकंव भगवान। एकठन मोर आखरी बिनती हे भगवान तोर से। सबो जनम तंय देबे भगवान, फेर गरीबी जनम झन देबे। अइसे जनम देय के पहिली तंय जीव ल मोर हर लेबे। अइसे कइके रातकन छानही के पटिया म फांसी ओरम जाथे।
बिहनिया बेरा
बुधारू (रोवत रोवत)- मोर बेटी तंय का कर डारे ओ। तंय का कर ले ओ मोर बेटी, तंय का कर डारे ओ।
दाई (रोवत-रोवत) – मोर दुलौरिन बेटी, तोला का होगे बेटी। आंखी खोलना ओ मोर बेटी। तोर सेती मोला मार डारतिच भगवान ह ओ, मोर दुलौरिन बेटी।
बुधारू (रोवत रोवत)- मोर बेटी, मोर गरीबी तोर जीव ल ले डारिच ओ। मोर नोनी मेहा का करंव बेटी। ये दहेज ह जीव के जंजाल होगे ओ बेटी। ये दहेज बैरी मुड़ पीरा बनगे बेटी। दहेज बैरी मुड़ पीरा होगे ओ। मुड़ पीरा होगे। दूनों परानी बिलख-बिलख के रोवत -रोवत परान तियाग देथें।
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