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बिहनिया राम-सीता भाई-बहिनी

locationरायपुरPublished: Jan 18, 2021 04:25:50 pm

Submitted by:

Gulal Verma

कहिनी

बिहनिया राम-सीता भाई-बहिनी

बिहनिया राम-सीता भाई-बहिनी

मदन अपन गांव के बड़े मनखे रिहिस। वोहा सिरिफ, चीज-बस, घर-दुवार, पइसा-कउड़ी म बड़े मनखे नइ रिहिस, बल्कि गियान अउ बेवहार म घलो बड़े रिहिस। वोकर हिरदे अतका बड़ रहय के बिरोधीमन तको वोमा असानी से जगा पोगराये रहय। गांव के कोई भी काम-बूता ह मदन के गैरहाजिरी म होइच नइ सकय। मदन के सिरिफ हुंकारू ह गांव म होवइया हरेक बूता के सफलता के गारंटी रिहिस।
मदन के रूपेस नाव के एकझन बेटा रिहिस। रूपेस ह सुरू से सहर म रहिके पढि़स-लिखिस। वोला गांव ह बने नइ लागय। सहर के चकाचौंध ह वोकरमन ल मोह डारे रहय। पढ़ई -लिखई पूरा होय के पाछू गांव वापिस जाय के समे वोकरमन ह गवाही नइ देवत रहय। फेर, मदन के इकछा के सम्मान करत वोहा अपन गांव लहुंटगे। खेतखार म रूपेस के मन रमय नइ। राम रमायन म कभु आवय जावय नइ। समाज सेवा ल जानबे नइ करय। गांव म दू चारझिन लइकामन ले दोस्ती होगे। वोमन वोकर पइसा के सेती पीछू-पीछू किंजरंय। रूपेस ह गांव के बदमास टूरामन के नेता बनगे।
एक कोती नेक दिल इनसान मदन त दूसर कोती भटके रूपेस। घर म दूनों के तारी नइ पटय। रूपेस के महतारी ह रूपेस ल समझा-समझा के थक गे। मंद-मउहा ह नदिया खंड़ जनगल मैदान होवत घर तक पहुंचगे। महतारी ह रूपेस के ददा ला पता झन चलय सोच के लइका के दोस ल लुकावय। एक दिन मदन ल पता चलगे। वोहा रूपेस ल अब्बड़ बरजिस। लइका नइ मानिस। तब मदन सोचिस के लइका के गोड़ म बेड़ी डार देबो तहन सुधर जही। रूपेस के बिहाव के तियारी सुरू होगे। एक दिन संगवारीमन संग गुलछर्रा उड़ावत रूपेस ह पकड़ागे। सिहरत ले मार परिस। संगवारी मन वोकर संग छोड़दिन। मदन के बहुतेच बदनामी होइस।
मदन के बेटा संग अब कोनो नइ रहय। वोहा घर ले बाहिर नइ निकलय। धीरे-धीरे आदत सुधरे कस लगिस। मदन ह बेटा म होवत सुधार देख खुस रहय। बाप ल अइसने म खुस देख बेटा ह वोकर देखावटी म रमायन पढ़े बर धरलिस, गीता पाठ म लगगे। धीरे-धीरे मदन ह बेटा डहर ले निस्चिंत होय लगिस। एक दिन घर के गोबर-कचरा करइया सग्यान छोकरी ऊपर रूपेस के नजर गडग़े। गरीबीन छोकरी ह अपन बाप ल बता दिस। सियान मनखे कुछ कर नइ सकिस। फेर, ठकुरइन ल वोकर बेटा के करनी के भंडा फोर करिस। ठकुरइन ह गरीबीन ल अपन बेटा के नीयतखोरी के कीमत अदा करे बर चाहिस। बपरी ह ठकुरइन के बेवहार देख काम छोड़ दिस।
महतारी ह बेटा ल रो-रो के समझाय लगिस। बपरी ठकुरइन ह मदन ल बता नइ सकत रहय। इही बीच वोकर घर म आय ठकुरइन के ***** बेटी बैसाली ह रूपेस के दुसकरम के परयास के भंडाफोर दिस। वोहा वापिस जाय के इकछा जतइस। महतारी ल काटो तो खून नइ। पहिली रूपेस ल अड़बड़ समझइस। रूपेस कहिथे- बदनामी बदनामी कहिथस तेकर ले बैसाली संग मोर बिहाव कर दे। महतारी भडक़गे -तोला सरम नइ लागे। बहिनी संग बिहाव रचाहूं कहिथस। हमन ल मुरकेट के मार डर अउकर ले बिहाव। तोर बाबू सुनही त तोला आज घर ले निकाल के रइही। कहूं सहींच म बाप सुन पारिस अउ घर ले निकाल दिस त कहां जाहूं सोच-सोच के रूपेस ह रोय लगिस। महतारी के पांव पर के माफी मांगे लगिस। बैसाली के पांव परगे माफी मागिस। दूनों के हिरदे पसीज गे। रूपेस ल एक बेर अउ माफी मिलगे।
मदन के घर सवनाही रमायन चलत रहय। आखिरी सोमवार। रातभर बेटा ह रमायन पढि़स। बिहनिया नहा-धो के खेत जाय बर तियार होवत रूपेस ह बैसाली ह अपन घर जाय बर तियार देखिस। रूपेस ल लगत रिहिस के बैसाली ह वोला माफ नइ करिस। वोहा बैसाली ल कहत रहय- तैं मोला माफ नइ करेस का या बहिनी। मंय कसम खा डरे हंव। भगवान कसम, अब गलत काम कभुच नइ करंव। हमन अब राम-सीता कस भाई बहिनी रहिबो।
रातभर भले रमायन पाठ म लगे रिहिस। फेर रूपेस के दिमाग म वो अउ बैसाली भाई-बहिनी आवन, उहीच चलत रहय। उही बात ह मुंहु ले निकलगे। परछी म दाड़ी बनवात ददा अउ नाउ दूनोंझन राम-सीता कस भाई बहिनी सब्द सुन के अब्बड़ हांसिन। ददा ह रूपेस ल बला के पूछथे- काली खेत म का काम करे हस जी? ददा कहत रहय – को जनी कब सीखही येहा।
नौकर कहिथे- बिगन धियान-बिगनचेत के मनखे बर काम ह घला वोइसनेच ताय मालिक, जइसे – ‘रातभर रमायन पढ़, बिहनिया राम-सीता कोन आय, त भाई-बहिनी।

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